बिलकिस बानो मामले में फिर शुरू होगी सुनवाई, अलग बेंच के गठन को तैयार हुआ सर्वोच्च न्यायालय
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर बिलकिस बानो मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई के लिए एक विशेष बेंच का गठन करने के लिए तैयार हो गया है।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी परदीवाला की पीठ ने बीते बुधवार, 22 मार्च को बिलकिस बानो की याचिका पर सुनवाई की।
लाइव लॉ के मुताबिक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने पिछले महीने भी कहा कि वह इस मामले को उठाने के लिए विशेष बेंच का गठन करेंगे।
The court had agreed to list the plea earlier as well after mentioning by Advocate Shobha Gupta before a bench led by CJI DY Chandrachud.
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— Live Law (@LiveLawIndia) March 22, 2023
उल्लेखनीय है कि बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले के सभी 11 दोषियों को पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था। सभी दोषी पिछले15 सालों से अधिक समय से गोधरा उप-कारागार में बंद थे। गुजरात में 2002 में हुए दंगों के दौरान बिलकिस बानो के परिवार के सात सदस्य भी मारे गए थे।
बानो की वकील एडवोकेट शोभा गुप्ता का दावा है कि इस मामले का पहले भी 4 बार उल्लेख किया जा चुका है, लेकिन प्रारंभिक सुनवाई और नोटिस के लिए इसे अभी तक नहीं लिया गया।
इस मामले का पहली बार 30 नवंबर, 2022 को उल्लेख किया गया, जिसके बाद इसे जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एन त्रिवेदी की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था।
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बुधवार को मुख्य न्यायाधीश ने कहा नई पीठ का गठन किया जाएगा। हम इस विषय पर विचार करेंगे। वहीं इससे पहले 24 जनवरी को गुजरात सरकार की सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषियों को माफी को चुनौती देने वाली बिलकिस बानो की याचिका पर एससी में सुनवाई नहीं हो सकी थी, क्योंकि बाकी जज पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा होने की वजह से इच्छा मृत्यु (पैसिव यूथेनेशिया) से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रहे थे।
गौरतलब है कि बिलकिस बानो के बलात्कारियों की रिहाई के बाद कई ट्रेड यूनियनों ने आरोपियों की गिरफ़्तारी की मांग की थी। एटक (All India Trade Union Congress – AITUC) और ऑल इंडिया वर्किंग वूमेन फोरम ने बिलकिस बानो के बलात्कारियों की रिहाई की कड़ी निंदा की थी और उनकी तत्काल गिरफ्तारी की मांग की थी।
ट्रेड यूनियनों का कहना था कि गुजरात एमनेस्टी पॉलिसी के तहत समिति द्वारा अनुशंसित रिहाई केंद्र सरकार के एमनेस्टी के दिशानिर्देशों का उल्लंघन है। ये दिशानिर्देश बलात्कार और हत्या के दोषी व्यक्तियों को माफी के लाभ से बाहर करते हैं। वे किसी भी तरह से इसके हकदार नहीं हैं।
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