गुड़गांव मज़दूरों के लिए कैसा रहा साल 2022 ?
By शशिकला सिंह
साल 2022 अपने अंतिम पायदान पर है और नई उम्मीदों के साथ साल 2023 आने वाला है। जहां एक तरफ देश बाहर के बड़े-बड़े पूंजीपति और बड़ी कंपिनयों के मालिक नए साल के जश्न की तैयारियों में लगे हैं, वहीं मज़दूर वर्ग आज भी नए साल में नए संघर्षों की चुनौतियों को लेकर चिंतित हैं। जाने वाला यह साल हर वर्ग के मज़दूरों के लिए संघर्ष और चुनौतियों से भरा रहा।
आइए इस रिपोर्ट में जानते हैं हरियाणा के गुड़गांव, मानेसर और अन्य औद्योगिक क्षेत्रों के मज़दूरों और मज़दूर संगठनों के लिए कैसा रहा साल 2022!
अगर गुड़गांव में सबसे जुझारू मज़दूर संगठन की बात करें तो इसमें सबसे पहले मारुति सुजुकी मज़दूर संगठन (MSMS) का नाम आता है। यह साल मारुति सुजुकी के मज़दूर संगठन के लिए पिछले कुछ सालों से थोड़ा बेहतर रहा।
ऐसा कहना है मारुति प्रोविज़नल कमेटी के अगुवा नेता खुशीराम का।
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कार्यबहाली के इंतज़ार में मज़दूर
खुशीराम का कहना है कि 2022 में जेल में आजीवन कारावास झेल रहे 13 मज़दूरों में से 11 मज़दूरों को जमानत मिल गयी है। दुःख की बात यह है कि दो मज़दूरों की जेल में सजा काटने के दौरान ही मौत हो गई।
उन्होंने कहा कि ये मारुति में मजदूरों के आंदोलन के बाद यह एक बड़ी जीत है। लेकिन दूसरी ओर 426 बर्खास्त मज़दूरों का केस अभी भी गुड़गांव कोर्ट में पेंडिंग चल रहा है। साल 2017 में गुड़गांव कोर्ट के आदेश के बाद बाइज्ज़त बरी हुए 117 मज़दूरों को आज 10 साल बाद भी कार्यबहाल नहीं किया गया है।
दरअसल, 18 जुलाई 2012 को मारुति के मानेसर प्लांट में आग लगने से एक मैनेजर की मौत के बाद कंपनी ने 546 स्थायी मज़दूरों और 1,800 ठेका मज़दूरों को बिना किसी जांच पड़ताल के, ‘लॉस ऑफ़ कांफिडेंस’ का हवाला देकर बर्खास्त कर दिया था। उस समय 13 मज़दूरों को कोर्ट ने गुनहगार ठहरा कर आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी।
ज्ञात हो कि मारुति आंदोलन की 10वीं वर्ष गांठ पर बीते 18 जुलाई को हर बार की तरह इस साल भी विशाल रैली का आयोजन किया था जिसके माध्यम से मज़दूर यूनियन में बहाल मज़दूरों को तत्काल कार्यबहाल करने की मांग भी की थी।
वहीं मारुति सुजुकी प्लांट से 2012 में गैर कानूनी रूप से बर्खास्त किए गए मज़दूरों ने बीते 11 और 12 अक्टूबर को दो दिवसीय भूख हड़ताल का आह्वान भी किया था।
जिसमें भूख हड़ताल के दूसरे दिन बर्खास्त मजदूरों ने पुनर्बहाली की मांग को लेकर एक ज्ञापन डीसी ऑफिस ने मौजूद उपायुक्त महोदय को भी सौंपा था।
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MSMS ने आर्थिक मदद की राशि को बढ़ाया
इसके अलावा MSMS की ओर से पिछले 10 साल से उपरोक्त 13 मज़दूरों की फैक्ट्री के प्रत्येक मज़दूरों द्वारा दिवाली पर 100-100 रूपये की आर्थिक मदद दी जाती थी, जिसको इस साल यूनियन बॉडी मेम्बर्स की मीटिंग में मज़दूरों की सहमति से प्रति मजदूर 250 रूपये कर दिया गया है।
इसी तरह लेबर कोर्ट में जिन मज़दूरों का केस चल रहा है उनको हर साल वकील की फीस के लिए 2000 रुपये देने होते हैं। 2021 में इस पूरी राशि में से कुछ रुपयों का भुगतान यूनियन द्वारा किया जाता था। वहीं 2022 में मारुति सुजुकी मज़दूर यूनियन ने इस बात का फैसला किया है कि यूनियन इस पूरी राशि का भुगतान करेगी।
खुशीराम का आरोप है कि मज़दूरों को बर्खास्त हुए 10 साल से ज्यादा का समय बीत चुका है, लेकिन इस संबंध में न तो मारुति प्रबंधन बात करने को राजी है, न सरकार बात कर रही है और न ही कोर्ट में कुछ खास हो रहा है। जिसके कारण बर्खास्त मज़दूरों को आज भी जीवन यापन में काफी समस्यों का सामना करना पड़ रहा है।
10 साल की सजा काट कर बाहर आये 11 मज़दूरों की वर्कर्स यूनिटी ने भूख हड़ताल के दौरान उनकी समस्यों को लेकर विशेष बातचीत की रिपोर्ट भी प्रकाशित की थी।
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मज़दूरों के शोषण का साल
CITU हरियाणा के प्रदेश सचिव सतवीर सिंह का कहना है कि 2022 में मज़दूरों के लिए पूरी तरह से घाटे का साल रहा है। उनका आरोप है कि मोदी सरकार केवल पूंजीपतियों का फायदा पहुंचाना चाहती है। इसका साफ उदहारण नए लेबर कोड्स के तौर पर साफ देखा जा सकता है।
वर्कर्स यूनिटी के बातचीत के दौरान सतवीर ने कहा कि यह साल मज़दूरों के शोषण का साल रहा है। जहां प्रबंधन स्थाई मज़दूरों की छंटनी कर सस्ते ठेका मज़दूरों को काम दे रहा है, इससे साफ जाहिर होता है। गुड़गांव ऑटो सेक्टर प्लांट का प्रबंधन केवल अपना मुनाफा चाहता है।
उन्होंने बताया कि पूरे गुड़गांव में मज़दूर संगठनों के अनेकों मांग पत्र पेंडिंग है। मज़दूर संघर्ष कर रहे है लेकिन प्रबंधन मज़दूरों की समस्यायों का समाधान नहीं कर रहा है। सतवीर का कहना है कि 2022 मज़दूरों के लिए आंदोलनों का साल रहा। चाहे वो नए लेबर कोड्स के विरोध में किये गए हों या फिर कार्यबहाली के मुद्दे पर।
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संघर्षों का साल
गुड़गांव के मानेसर में स्थित मारुति के कंपोनेंट्स पार्ट्स बनाने वाली बेलसोनिका लिमिटिड के मज़दूर संगठन के सदस्यों का कहना है कि 2022 प्लांट में होने वाली अशांति को रोकने और नौकरियां बचाने के संघर्षों के साथ बीता हैं।
इस साल बेलसोनिका प्रबंधन ने तीन स्थाई मज़दूरों को काम से निकाल दिया। इतना ही नहीं छुटपुट ठेका कर्मचारियों को भी यूनियन का समर्थन करने के आरोप में काम से निकाल दिया गया है।
यूनियन द्वारा मिली जानकारी के मुताबिक प्रबंधन ने बर्खास्त ठेका मज़दूरों के बकाया वेतन का भी हिसाब नहीं किया है।
2022 में बेलसोनिका यूनियन के लिए संघर्षों, प्रदर्शनों ओर हड़तालों का साल रहा। यूनियन का आरोप है इस साल प्रबंधन ने बिना किसी ठोस कारण के मज़दूरों को काम से निकाला है। वहीं यूनियन के रजिस्ट्रशन को भी रद्द करने के पूरे जोर लगाए हैं।
दरअसल, पिछले साल 2021 में बेलसोनिका यूनियन ने एक ठेका मज़दूर केशव राजपूत को यूनियन की सदस्यता दी थी जिसके बाद 2022 में यूनियन में उनको एनुअल रिटेन में यूनियन के सदस्यों के नाम जोड़ लिया था। इस संबंध में लेबर विभाग ने यूनियन से पूछा था कि क्या बेलसोनिका यूनियन ने ठेका मज़दूरों को यूनियन की सदस्यता दी है।
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प्रबन्धन ने किए सदस्यता रद्द करने के प्रयास
इतना ही नहीं लेबर विभाग इसको एक गैरकानूनी कार्य भी बताया था। जबकि यूनियन का कहना था कि ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 के तहत कंपनियों में काम करने वाला कोई भी मज़दूर यूनियन का सदस्य होने के अधिकार रखता है।
फिलहाल यह मामला आज भी लेबर विभाग में लंबित है। लेकिन प्रबंधन लगातार यूनियन की सदस्यता को रद्द करने की बात कर रहा है।
बेलसोनिका यूनियन के प्रधान मोहिंदर कपूर ने कहा कि 2022 बेलसोनिका मज़दूरों के कठिन संघर्षों का साल रहा। उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत अप्रैल में एयर वाशर को चलने की लड़ाई के साथ शुरू हुई। इसके बाद एक के बाद एक काम के दौरान सुरक्षा, कैंटीन के खाने में निकलने वाले कीड़ों, मज़दूरों को नौकरी के निकले के संघर्ष से लेकर वेतन कटौती की लड़ाई तक चलता रहा।
मोहिंदर का आरोप है इस दौरान प्रबंधन ने यूनियन को मजदूरों की नज़र में गिराने के भी अथक प्रयास किये। इस बाबत प्रबंधन ने एक गार्ड को केवल इसलिए नौकरी से निकाल दिया, क्योंकि उसने प्रबंधन के कहने पर भी यूनियन के खिलाफ पत्र लिखने से इंकार कर दिया था, जिसके बाद उनको काम से निकाल दिया गया था। इतना ही नहीं प्लांट में काम करने वाले उनके बेटे को भी काम से निकाल दिया गया।
इन सब के विरोध में बेलसोनिका यूनियन और मज़दूरों ने दो बार टूल डाउन भी किया था।
वहीं बेलसोनिका यूनियन ने इस साल नए लेबर कोड के विरोध ने दो बार विशाल सम्मेलनों का आयोजन भी किया था। जिसमें हाल ही में 20 नवंबर को किसान मज़दूर पंचायत का आयोजन किया था जिसमें मानेसर स्थित अन्य फैक्ट्री की मज़दूर यूनियन और किसान संगठनों ने समर्थन किया था। इसके अलावा बीते चार सितम्बर को सड़क पर सेमिनार कर मज़दूरों को नए लेबर कोड के नुकसानों से अवगत करवाया था।
बेलसोनिका यूनियन का कहना है कि इस साल काम के दौरान सुरक्षा को लेकर भी कुछ ऐसे मामले सामने आये हैं जो मज़दूर सुरक्षा को लेकर बड़े सवाल खड़ा करता है। यूनियन का अनुमान है कि 2023 पिछले साल के मुकाबले ज्यादा संघर्षपूर्ण रहेगा।
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छंटनी और लॉकआउट
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AICTU) के यूनियन लीडर अनिल पवार ने कहा कि 2022 मज़दूरों के लिए पूरी तरह से ख़राब रहा।
उन्होंने कहा कि पूरे साल मज़दूरों का संघर्ष जारी रहा। इस साल मज़दूरों कि छंटनी और तालाबंदी के साथ बीता है। किसी भी फैक्ट्री के मज़दूर को कार्यबहाल नहीं किया गया।
अनिल ने बताया कि इस साल हर दिन धरने-प्रदर्शन और रैलियों का आयोजन किया गया। लेकिन संघर्षरत मज़दूरों को कोई सफलता नहीं मिली है।
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मज़दूरों से छीना रोज़गार
अगर हरियाणा में गुड़गांव, मानेसर और आसपास के अन्य औद्योगिक इलाकों की बात करें तो इस साल बड़े पैमाने पर मज़दूरों को रोज़गार से वंचित किया गया है। जिसमें सबसे पहले नपिनो कंपनी का नाम आता है।
नपिनो
हरियाण के मानेसर सेक्टर 3 के प्लॉट नम्बर 7 में स्थित ‘नपिनो ऑटो एण्ड इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड में इस साल 271 मज़दूरों को बेरोज़गार कर दिया था, जिसमें महिलाएं भी हैं।
बीते 3 अगस्त को नपिनों के मज़दूरों ने अपनीं कई सालों से लंबित 6 मांगो को पूरा करने के लिए मजदूरों ने प्लांट के अंदर और बाहर काम बंद कर अनिश्चितकालीन हड़ताल का ऐलान किया था।
इस दौरान कम्पनी प्रबंधक द्वारा 40 मजदूरों को निलंबित कर दिया था। इसके बाद प्रबंधन ने पुलिस बल की मदद से हड़ताल को खत्म करवाने की तैयारी भी की थी। लेकिन फैक्ट्री में मजूदर समय प्लांट में पुलिसवालों के साथ आये श्रम उपायुक्त ने हड़ताली मज़दूरों को प्रबंधन के बीच एक समझौता भी करवाया। जिसमें प्रबंधन ने इस बात पर सहमति भी जतायी थी वह सभी मज़दूरों को काम पर वापस ले लेगा।
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जिसके बाद से अभी तक कई बार मज़दूरों ने अपनी कार्यबहाली के लिए श्रम विभाग में मांगों का ज्ञापन भी लगाया, लेकिन प्रबंधन में मज़दूरों को काम पर वापस नहीं लिया । उलटा प्लांट के अंदर से मशीनों को शिफ्ट करना शुरू कर दिया था। नपिनो के बर्खास्त मज़दूरों को आज भी बहाली का इंतज़ार है।
आइसिन
रोहतक आई एम टी स्थित आइसिन में लगभग 250 मज़दूरों को एक साथ काम से निकाल दिया था। इन सभी मज़दूरों ने भी 2016 में अपनी मांगों को लेकर काम बंद कर के धरना देने पर मज़दूरों को प्रबंधन ने काम से निकाल दिया था।
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सनबीम
गुड़गांव के नरसिंगपुर में स्थित सनबीम लाइटवेटिंग सोल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंधन ने ठेकेदार का ठेका ख़त्म होने का हवाला देकर 46 मज़दूरों को बीते 11 अक्टूबर को काम से निकालने का नोटिस जारी किया था, उसे 1 नवंबर से लागू करते हुए सभी की छंटनी को मंजूरी दे दी थी।
मुंजाल शोवा
वहीं गुड़गांव स्तिथ उद्योगविहार में मुंजाल शोवा के भारी संख्या में मज़दूरों ने VSR लिया था। मिली जानकारी के मुताबिक काम छोड़ने वाले मज़दूरों के ऊपर काम रिजाइन का दबाव बनाया था। इस संबंध में मुंजाल शोवा प्रबंधन का कहना था कि वह काम का आउट सोर्स करवाएगी। क्योंकि वर्तमान में यहां मज़दूरों को ज्यादा वेतन देना पड़ता है।
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हिताची
यहीं अंत नहीं है मानेसर स्थित हिताची के ठेका मज़दूरों को भी बिना कारण बताये जॉब से निकाल दिया गया है। यहां पिछले सितंबर से अब तक लगभग 20 ठेका मज़दूरों को काम से निकाल दिया गया है।
गौरतलब है कि 2022 केवल हरियाणा के मज़दूरों के लिए ही नहीं सभी राज्यों के मजदूरों के लिए संघर्षरत रहा।
इसका अंदाजा 13 नवंबर को देश की राजधानी में आयोजित मासा की विशाल रैली का हिस्सा बने मज़दूर संगठनों की बातचीत से लगा सकते हैं। इसे लेकर वर्कर्स यूनिटी में कई लाइव और रिपोर्ट्स का प्रसारण किया है।
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