नए लेबर कोड को लागू करने की हड़बड़ी में मोदी सरकार, 8 राज्यों ने अभी तक नहीं बनाए हैं नियम
नई गठित हुई मोदी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता में से एक चार श्रम संहिताओं ( लेबर कोड ) को लागू करना है। लेकिन हो सकता है कि सरकार को इसे लागू कराने में कुछ और समय लग जाये।
हिंदुस्तान टाइम्स की ख़बर के अनुसार, सरकार से जुड़े लोगों का कहना है कि, ‘लेबर कोड पिछले कार्यकाल में ही पारित हो चुका है लेकिन उसे लागू करने में कुछ और महीने लग सकते हैं। कई राज्य सरकारों को इस नए लेबर कोड में किए गए सुधारों और उनके दायरे की पूरी समझ नहीं है और सरकार उन राज्यों के साथ बातचीत कर सारी चीजें स्पष्ट करना चाहती है।’
ख़बरों के मुताबिक, मनसुख मंडाविया के नेतृत्व वाला श्रम मंत्रालय, राज्यों के साथ परामर्श के लिए बातचीत की तैयारी कर रहा है ताकि,यह सुनिश्चित किया जा सके कि अधिकांश राज्य सरकारों द्वारा तैयार किए गए मसौदा नियम लेबर कोड के प्रत्येक संहिता के तहत संघीय नियमों का उल्लंघन नहीं करते हों।
अभूतपूर्व लॉकलाडउन के दौरान बिना बहस कराए गए कृषि क़ानूनों के साथ ही 2019 – 2020 में चार लेबर कोड को संसद में मोदी सरकार ने बलपूर्वक पारित करा लिया था।
मोदी सरकार का तर्क था कि ‘नया लेबर कोड 29 केंद्रीय पुराने श्रम कानूनों के एक जटिल जाल को आसान करता है। इसके साथ ही यह भारत के जॉब मार्केट में व्यापक बदलाव लाने का प्रयास है। देश के दशकों पुराने श्रम मानदंडों में सुधार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निवेश को बढ़ाने और रोजगार सृजन के कदमों का एक केंद्रीय हिस्सा हैं’।
नया लेबर कोड अभी तक लागू नहीं हो पाया है क्योंकि आठ राज्यों ने अभी तक प्रत्येक कोड के तहत नियम नहीं बनाए हैं।
साथ ही ट्रेड यूनियनों ने लेबर कोडों का विरोध करते हुए कहा था कि ‘नए कानून कामगार से उसकी नौकरी की सुरक्षा पूरी तरह से छीन लेता है,यह मज़दूर को काम पर रखने और निकालने यानी हायर एंड फ़ायर को आसान बनाता है।’
गौरतलब है कि राज्यों को कोड के लिए राज्य स्तर पर क़ानून बदलने होंगे क्योंकि संविधान में यह राज्य और केंद्र दोनों के अंतर्गत आता है।
श्रम विभाग से इन चर्चाओं में भाग लेने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि, ‘राज्यों के साथ कई स्तरों पर बातचीत चल रही है. फिलहाल औद्योगिक संबंध संहिता, 2020; व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020; और सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 पर राज्यों के साथ बातचीत जारी है।’
देखा जाये तो कई राज्य-स्तरीय नियम केंद्र द्वारा बनाए गए नियमों से अलग हैं। उदाहरण के लिए संघीय नियम और अधिकांश राज्यों द्वारा बनाए गए नियम साल में दो बार महंगाई भत्ते में संशोधन का प्रावधान करते हैं। जबकि आंध्र प्रदेश चाहता है कि हर साल एक ही संशोधन हो।
वहीं कई विशेषज्ञों का कहना है कि प्रमुख ट्रेड यूनियनों को भी इस बातचीत में शामिल होना चाहिए जो नए कानून के कई प्रावधानों को लेकर इसका विरोध कर रहे हैं. उदाहरण के लिए, औद्योगिक संबंध संहिता के तहत, 300 तक कर्मचारियों को रोजगार देने वाली फर्मों को कर्मचारियों को छंटनी तालाबांदी के लिए सरकार मंजूरी लेनी होगी, जबकि पहले यह सीमा 100 थी।
इसके साथ ही यह संहिता ट्रेड यूनियन को फ़ैक्ट्री या कारखाने में 30 प्रतिशत सदस्यता वाले ट्रेड यूनियन को ही सामूहिक बातचीत के लिए अधिकृत करती है जबकि कई यूनियनें होने की स्थिति में यह सीमा 51% है।
यानी ट्रेड यूनियनों को सिर्फ कागज की रद्दी बना दिया जाएगा।
10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के मंच ने इन लेबर कोड में किए गए बदलावों को मज़दूर विरोधी करार देते हुए उन्हें रद्द करने की मांग की है।
10 ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने वित्त मंत्री से ’29 श्रम कानूनों को बहाल किये जाने के साथ ही पुरानी पेंशन योजना को लागू करने की मांग की है।’
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (BMS) ने कुछ मामूली संशोधनों के साथ इन लेबर कोड को लागू करने का समर्थन किया है।
भारतीय मजदूर संघ (BMS) के महासचिव रविंदर हिमटे ने कहा कि ‘संहिता के कुछ प्रावधान अस्वीकार्य हैं, खासकर जो औद्योगिक संबंध संहिता और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020 से जुड़े हैं। अगर इसमें परिवर्तन कर दिया जाये तो हम इस नए कानून के साथ हैं।’
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