अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने के सारे दावे फ़ेल, औद्योगिक उत्पादन 26 माह के न्यूनतम स्तर पर
मोदी सरकार के तमाम दावों के बावजूद अक्टूबर में औद्योगिक उत्पादन औंधे मुंह गिर गया। हालांकि आंकड़ों की बाजीगरी करके सरकार ने अपना चेहरा बचाने की कोशिश की है।
ताज़ा आंकड़ों से पता चला है कि औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में 4 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई है, जोकि 26 महीनों का सबसे निचला स्तर है।
इसका मतलब ये हुआ कि कोरोन के बाद से अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने के तमाम दावे शिगूफ़ा साबित हुए हैं।
हालांकि महंगाई के मामले में आंकड़े राहत देने वाले हो सकते हैं। देश की खुदरा महंगाई (मुद्रास्फीति) दर नवंबर में घटकर 5.88% पर आ गई है जो इसका 11 महीने का सबसे निचला स्तर है। इससे पहले अक्टूबर में खुदरा महंगाई दर 6.77% रहा था।
जबकि ईंधन (पेट्रोलियम) में महंगाई नवंबर में 9.93 फीसदी से बढ़कर 10.62 फीसदी हो गई है।
अक्टूबर के महीने में कारखानों का उत्पादन कम होकर 26 माह के निचले स्तर पर आ गया। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने सोमवार, 12 दिसंबर को जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी। महंगाई दर में यह गिरावट अर्थशास्त्रियों के अनुमानों से भी कहीं अधिक है।
सब्जियों आदि के दामों में कमी आने की वजह से बीते 10 महीने में पहली बार खुदरा महंगाई केंद्रीय बैंक के अुमानित दायरे से नीचे आई है।
हालांकि, औसत महंगाई दर लगातार तीन तिमाही से 6 फीसदी से ऊपर बनी हुई है। और उद्योगों के उत्पादन ने भी निराश किया है। अक्टूबर में विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में 5.6 फीसदी के संकुचन की वजह से औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में 4 फीसदी की गिरावट आई।
महंगाई दर में नरमी मुख्य रूप से सब्जियों (8.08 फीसदी) और फलों (2.62 फीसदी) की कीमतें कम होने की वजह से आई है। अंडे, दालों और मसालों की कीमतों में तेजी बनी हुई है।
आकड़ों के मुताबिक देखा जाये तो मुख्य महंगाई दर जिसमें खाद्य पदार्थ और ईंधन शामिल नहीं होते हैं, नवंबर में 6.3 फीसदी रही जो अक्टूबर में 6.2 फीसदी थी।
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आर्थिक सलाहकारों के बयान
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस के अनुसार, स्पष्ट रूप से निजी क्षेत्र के निवेश में अब तक तेजी नहीं आई है। उपभोक्ता वस्तुओं ने इस बार भी निराश करना जारी रखा है क्योंकि टिकाऊ और गैर-टिकाऊ दोनों तरह की वस्तुओं में गिरावट देखी गई है।
सबनवीस ने इसको एक निराशाजनक कहा है क्योंकि अक्टूबर के त्योहार के महीने में उनसे उम्मीद की जा सकती है। स्पष्ट रूप से, उच्च नाममात्र की खपत ऊंची महंगाई के कारण है।
हालांकि इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के प्रधान अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा ने कहा कि खुदरा मुद्रास्फीति के RBI के लक्ष्य से नीचे रहने लेकिन मुख्य मुद्रास्फीति के लगातार ऊपर बने रहने से केंद्रीय बैंक के पास महंगाई दर को काबू में करने के उपाय से पीछे हटने की गुंजाइश नहीं होगी।
आईआईपी में प्राथमिक उत्पादों और बुनियादी ढांचा समूह को छोड़कर सभी में गिरावट आई है। कंज्यूमर ड्यूरेबल्स के उत्पादन में 15.3 फीसदी का संकुचन आया है। गैर-ड्यूरेबल्स में भी 13.4 फीसदी की गिरावट आई है, जो अर्थव्यवस्था में कमजोर मांग का संकेत देता है।
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डीके जोशी ने कहा कि वैश्विक नरमी का असर आने वाले साल में औद्योगिक उत्पादन के परिदृश्य पर व्यापक तौर पर दिख सकता है।
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आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने हाल में मौद्रिक नीति समिति की बैठक के बाद मुख्य महंगाई दर के उच्च स्तर पर बने रहने को लेकर चिंता जताई थी और कहा था कि महंगाई के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है।
वहीं वित्त मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा है कि “खाद्य कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों ने मुद्रास्फीति को आरबीआई के लक्षित दायरे 6 फीसदी से नीचे लाने में मदद की। अनाज, दालों और खाद्य तेलों की कीमतों में नरमी लाने के लिए व्यापार संबंधी उपयुक्त उपाय किए गए हैं। आने वाले महीनों में इन उपायों का असर और दिख सकता है।”
गौरतलब है कि खाद्य मुद्रास्फीति, जो सीपीआई बास्केट का लगभग 47 फीसदी है, नवंबर में अक्टूबर में 7.01 फीसदी से घटकर 4.67 प्रतिशत हो गई, जबकि ईंधन मुद्रास्फीति नवंबर में 9.93 फीसदी से बढ़कर 10.62 फीसदी हो गई।
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