मान स्ट्रक्चरल्सः क्रिकेट, पूंजीपति आैर पॉलिटिक्स का कॉकटेल किस तरह भारी पड़ा मज़दूरों पर!

मान स्ट्रक्चरल्सः क्रिकेट, पूंजीपति आैर पॉलिटिक्स का कॉकटेल किस तरह भारी पड़ा मज़दूरों पर!

रिपोर्टः वरिष्ठ पत्रकार कमल सिंह

जयपुर (राजस्थानमें मान स्ट्रक्चरल्स के मजदूरों विगत 14 अगस्त से लगातार 13 दिन तक हड़ताल पर रहे। मिल प्रबंधकों ने श्रमायुक्त को एक मेमोरंडम देकर बताया कि मिल में मज़दूरों की हड़ताल के कारण कारण उत्पादन में हो रही हानि के कारण तालाबंदी की स्थित आ गर्इ है।

श्रमिकों ने 16 अगस्त को विशाल प्रदर्शन कर मिल प्रबंधकों के मज़दूर विरोधी रवैए तथा श्रमिकों के प्रति अनुचित श्रम व्यवहारश्रमिक यूनियन के अध्यक्ष को सेवा मुक्त करनायूनियन के कार्यकारिणी एक आैर सदस्य सहित अन्य चार श्रमिकों के निलंबन का विरोध करते हुए श्रमायुक्त से मांग की कि प्रबंधन श्रमिक यूनियन में विभाजन कर दलाल यूनियन बनाने एवं आधुनिकरण के नाम पर कारखाने के तमाम श्रमिकों को ठेका श्रमिक में बदलने के लिए प्रयासरत है।

मान स्ट्रक्चरल्स

मज़दूरों ने श्रम विभाग के दफ्तर के सामने भी प्रदर्शन किया।

मान स्ट्रक्चर्स प्राइवेट लिमिटेड इण्डस्ट्री ट्रांसमिशन लाइन टावरोंउप स्टेशन संरचनाओंरेलवे विद्युतीकरण संरचनाओंट्यूबलर संरचनाओं और अन्य संबद्ध हल्के इस्पात संरचनाओं का निर्माण करती है। 

यह सौर ऊर्जा के उपकरणों को भी निर्मााण करती है। यह उद्योग 1960 से राजस्थान की राजधानी जयपुर में उत्पादन कर रहा है।

यहां के मजदूरों की यूनियन मान वर्कर्स यूनियन भी 1968 से रजिस्टर्ड यूनियन है। यह अत्याधुनिक उद्योग है। इसमें उत्पादित माल का विदेशों में भी निर्यात होता है। मिल में 700 से अधिक मज़दूर कार्यरत हैं।

मिल के प्रबंध निदेशक किशोर रूंगटा हैं। जयपुर की एक अदालत ने बीसीसीआर्इ के कोषाध्यक्ष एवं राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष किशाेर रूंगटा को भ्रष्ट आचरणकंपनी एक्ट के उल्लंघन के आरोप में दो साल की कैद आैर 2.90 करोड़ रुपए का जुर्माने का दंड दिया था। 

वे जमानत पर रिहा हो गए आैर कानूनी दावपेचों से अपने को जेल से बचाने में कामयाब भी हुए। न्यायाधीश आरती भारद्वाज ने कंपनी मामलात के संभागीय रजिस्ट्रार द्वारा दायर एक याचिका पर निर्णय में यह सजा सुनार्इ थी।

किशोर रूंगटा पर आरोप था कि उन्होंने 1996 से लेकर 1998 वित्तीय वर्ष के दौरान 2.90 करोड़ रूपए का कर्जा मान स्ट्रक्चरल्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के नाम से अनुचित तरीके से लिया आैर कंपनी अधिनयम की धारा 58 एक का उल्लंघन कर हासिल किया था।

बीसीसीआई के खजांची रहे किशोर रूंगटा (बाएं) और बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष जगमोहन डालमिया। तस्वीर 2002 के कोलकाता मीटिंग की है। साभारः एएफ़पी

मालिकों का गहरा रिश्ता राजस्थान क्रिकेट अकादमी से देखा जा सकता है। रूंगटा परिवार ने राजस्थान क्रिकेट के जरिए तीन दशकों तक बिजनेस आैर राजनीति में गहरी दखल किस तरह कायम की यह जग जाहिर है।

मान स्ट्रक्चरल्स के प्रबंध निदेशक किशोर रूंगटा राजस्थान क्रिकेट अकादमी के पूर्व अध्यक्ष आैर बीसीसीआर्इ के कोषध्यक्ष रह चुके हैं। उनके पिता भी बीसीसीआर्इ के अध्यक्ष एवं राजस्थान राजस्थान अकादमी के बरसों अ ध्यक्ष रहे हैं।

किशाेर रूंगटा को वसुंधरा राजे की मदद से ललित मोदी ने इस पद से हटाया था। राजस्थान सरकार ने एक अध्यादेश के जरिए उन 66 सदस्यों की सदस्यता को निरस्त कर दिया था जाे जिले की किसी भी क्रिकेट एसोसिएशन से संबंधित नहीं थे आैर पुश्त दर पुश्त आरसीए पर अपना कब्जा जमाए थे।

किशोर रूंगटा को उच्च न्यायालय में हारने के बाद सर्वोच्च न्यायालय में भी मुंह की खानी पड़ी थी।

आधुनिकरण के नाम पर काम बढ़ोतरी आैर छंटनी

मान मीलिक को मिले पुरस्कारों की प्रिंट मीडिया में कवरेज

अब किशोर रूंगटा अपने नौजवान बेटे गौरव रूंगटा को मान स्ट्रक्चरल्स का पूरा दायित्व सौपना चाहते हैं। उन्हें मिल का संयुक्त प्रबंध निदेशक बना दिया गया है।

आधुनिकरण के नाम पर मिल से नियमित मज़दूरों की छंटनी आैर ठेके पर काम की प्रक्रिया की शुरूआत कर दी गर्इ। मिल में गैल्वनाइज़िंग के तीन विभाग हैं। इनमें ब्लैक आयरन, श्रमिक निकालते हैं।

इन तीनों विभागों कोजिनमें लगभग 450 श्रमिक कार्यरत हैंठेके पर दे दिया गया है।

इसके बाद 2016 में प्रबंकों ने कारखाने में अत्याधुनिक कंप्यूटराइज्ड न्यूमेरिकल कंट्रोल (CNC) मशीनों और अन्य उच्च उत्पादन हाइड्रोलिक मशीनों को लगाकर उद्योग का आधुनिकीकरण किया।

इस तरह इन मशीनों के जरिए श्रमिकों पर काम का बोझ बढ़ाया गया तथा विभागों में कार्यरत श्रमिकों को अन्य विभागों में स्थानांतरित किया गया।

मान वर्कर्स यूनियन आैर आरसीटू

मिल में मान्यता प्राप्त यूनियन मान वर्कर्स यूनियन है। इसका संबंध राजस्थान सीटू से रहा है। मान सवर्कर्स यूनियन की स्थापना कामरेड इब्राहिम ने की थी आैर वे मोहन पुनमिया के घनिष्ठ साथी थे।

मान वर्कर्स यूनियन पहले एटक फिर सीटू आैर इसके बाद आरसीटू से संबद्ध रही है। आरसीटू की स्थापना 80 के दशक में राजस्थान में कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक आैर ट्रेड यूनियन आंदोलन के संस्थापक माेहन पुनमिया ने की थी।

वे भारतीय कम्युनिस्ट पर्टी की नेशनल काॅउन्सिल के उन 32 सदस्यों में से एक थे जिन्होंने अप्रैल 1964 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की संशोधनवादी नीतियों के खिलाफ़ विद्रोह का झंडा उठाया था और जुलार्इ में आंध्र प्रदेश में तेनाली सत्र में पार्टी की सातवीं कांग्रेस (कोलकाता कांग्रेसआयोजित करने का प्रस्ताव पारित कर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) की बुनियाद रखी थी।

मार्क्सवादी कमयुनिस्ट पार्टी के गठन के बावजूद पार्टी में दो लाइन का संघर्ष बरकरार रहा। यह संघर्ष 1967 में नक्सलबाड़ी के विद्रोह के बाद पार्टी में एक आैर विभाजन के रूप में सामने आया। भाकपा माले नामक तीसरी पार्टी बनी।

परंतु वामपंथी भटकाव आैर ट्रेड यूनियन आंदोलन सहित जन संगठनों आैर जनआंदोलनों को छोड़कर हिरावलवाद की नीति अपनाने के कारण अनके लोग जो ट्रेड यूनियन आैर किसान आंदोलनों व जनसंगठनों में थे,माकपा में ही रहे गए। मोहन पुनमिया में भी उनमें से एक थे।

वे राजस्थान में माकपा के राज्य सचिव व माकपा की केंद्रीय समिति के सदस्य थे। परंतु माकपा की वर्ग संघर्ष की जगह संसदीय संघर्ष को वरीयता देने की संशोधनवादी नीतियों के विरोध में उनका संघर्ष जारी रहा।

1972 में जिस एटक की जगह सीटू का गठन हुआ तो राजस्थान में सीटू का गठन मोहन पुनमिया के नेतृत्व में ही हुआ था। परंतु एक दशक के लंबे संघर्ष के बाद उन्हें अंत में र्इएमएस नंबूदरीपाद ने एक के बाद एक पंजाब आंध्र प्रदेशकेरल व राजस्थान से पार्टी के जिन वरिष्ठ नेताआें को निष्कासित किया उनमें मोहन पुनमिया भी थे।

इसके बाद मोहन पुनमिया में राजस्थान में आरसीटू आैर माक्सर्वादी कम्युनिस्ट पार्टी के नाम से भाकपा (मार्क्सवादीके नाम से नयी पार्टी का गठन किया जिसमें बिहार के सियावर शरण श्रीवास्तवआंध्र प्रदेश में ओन्कारराजस्थान में मोहन पुमिया, केरल में चुन्नी मास्टर और एम.वीराघवन और पंजाब में लायलपुरी थे।

मोहन पुनमिया की मौत हुए दो दशक बीत चुके हैं। इस बीच आसीटू पर काबिज नेताआें की असलियत मान इंडस्ट्री के ताजा संघर्ष से समझी जा सकती है।

मालिक रूंगटा को उद्योग रत्न समेत कई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार

किशोर रूंगटा को 2011 में डीएनए द्वारा युवा आयकन पुरस्कार से नवाज़ा गया था।

उन्हें 2012 में राष्ट्रीय शिक्षा और मानव संसाधन विकास संगठन द्वारा राष्ट्रीय उद्योग रत्न पुरस्कार” दिया गया।

इसके बाद 2016 में उन्हें उत्कृष्ट उद्यमी एवं एशियाप्रशांत उद्यमिता पुरस्कार मिल चुका है।

मान प्रबंधकों का दावा है कि उनके उद्योग में श्रमिकाें के साथ बहुत बेहतर व्यवहार होता है।

इसकी असलियत आैर इन पुरस्कारों की हकीकत मान स्ट्रक्चर के श्रमिकों की दशा से समझी जा सकती है।

i) अस्थार्इ श्रमिकों की समस्याएं

मान स्ट्रक्चरल्स में 10 से लेकर 15-20 सालों से काम कर रहे मज़दूरों को नियमित नहीं किया गया है। जबकि कानून यह है कि 270 दिन के बाद उन्हें नियमित कर दिया जाना चाहिए। प्रबंधक कर यह रहे हैं कि 270 दिन पूरे होने के कुछ पहले या तो उन्हें काम नहीं देते या फिर बाउचर पर काम पर रख लेते हैं।

आैर कुछ दिन बाद फिर अस्थार्इ श्रमिक के रूप में रख लेते हैं। इस प्रकार इस तिकड़म आैर कानून के साथ खिलावाड़ कर उनको नियमित नहीं होने देते आैर उनके अधिकारों से महरूम रखते हैं।

ii) ठेके के मज़दूरोें का शोषण

मिल में इस समय 450 से अधिक ठेका मज़दूर हैं। खास बात यह है कि ठेका श्रम (विनयमन आैर उत्पादनअधिनियम 1970 के अनुसार ठेकदार काे लाइसेंस प्राप्त करना जरूरी होता है। उसके साथ ठेका श्रमिकों के वेतनकार्यदशाआें आदि से संबंधित शर्ते होती हैं जो उनके शोषण से बचाव के प्रावधान हैं।

ठेका श्रम के नाम पर श्रमिकों की बेलगाम लूट का अधिकार नहीं मिल जातान ही आठ घंटे से अधिक उनसे काम लिया जा सकता है। अधिनियम में ठेका श्रमिकों की सुरक्षा आैर समुचित कार्यदशाआें की व्यवस्था है।

प्रावधान के अनुसार ठेकेदार को अपने लाइसेंस का नवीनीकरण कराना आवश्यक होता है। मान स्ट्रक्चर में चार दर्जन से अधिक ठेकेदार हैं। ये प्रायः बिना लाइसेंस ठेकेदार हैं। जिन दोचार ने लाइसेंस लिए भी हैं तो नवीनीकरण नहीं कराया है।

श्रमिकों से बंधुआ श्रमिक की तरह काम लिया जाता है। उनके आवास की जो व्यवस्था है वह पशुआें के बाड़े से भी बदतर है। न्यूनतम मज़दूरी का कानून लागू नहीं है।

पीएफ़ में मालिक अपने हिस्से का पूरा पैसा जमा नहीं कराते आैर स्वास्थ्य आैर इलाज के लिए र्इएसआर्इ की सुविधा भी माकूल नहीं है। ठेका श्रमिकों को छुट्टियों का लाभ एवं बोनस नहीं दिया जाता है।

iii) बाल श्रम

यहां तक है कि ठेका श्रमिकों में बाल मज़दूर भी हैं जिनसे जोख़िम वाले कठोर परिश्रम के काम लिए जाते हैंं उनकी 14-15 बरस के बच्चों से उनकी आयु 19 लिखकर काम लिया जाता है।

iv)प्रदूषण

मिल के गैल्वनाइज़िंग विभाग में जहां विद्युत भट्टयों में जिंक खौलता हैभारी प्रदूषण उत्पन्न होता है। उसकी जहरीले धुएं से वातावरण प्रदूशित होता है आैर श्रमिकों के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

पर्यावरण विभाग ने इस संबंध में मिल को एक नोटिस भी जारी किया है। इसके बाद प्रबंधकों ने कुछ आैपचारिक उपाय किए हैं तथा चिमनी भी लगार्इ है परंतु इतना भर पर्याप्त नहीं है। यह खानापूरी अधिक है। 

v) अवैधानिक उत्पादन

मान स्ट्रक्चरल्स से लगी रूंगटा परिवार की ही एक अन्य कंपनी मान इंडस्ट्री है। यह बंद हो चुकी है। उसके श्रमिकों ने मालिकों के विरोध में लंबी लड़ार्इ के बाद हाल ही में उच्च न्यायालय से अपने वेतन आदि से संबंधित मुकदमा जीता है।

मान स्ट्रक्चर के प्रबंधक गण मान इंडस्ट्री जाे बंद बतार्इ जाती है अपने गोदाम के रूप में प्रयुक्त कर रहे हैं।

हां तक कि कुछ मशीने भी वहां लगा कर मज़दूरों से काम कराया जा रहा है जो अवैधानिक है।

vi) यूनियन तोड़क नीति

मान स्ट्रक्चरल्स के प्रबंधकों की नीति है कि आने वाले कुछ समय में तमाम अस्थार्इ श्रमिकों को ठेका श्रमिकों के रूप में बदलना तथा मिल के मशीन शाॅप को ठेके के हवाले कर देना।

ताकि बोनसग्रेच्युटीपीएफबीमा आदि से लाभों से उन्हें वंचित कर दिया जाए। इसी के साथ सीएनसी विभाग आैर मेंटीनेंस विभागों में भी छंटनी की नीति है।

इसके पहले चरण (2016) में जब सीएनसी मशीनाें को लगाया गया तो उसने यूनियन के साथ समझौता करके इस नीति पर श्रमिकों की रज़ामंदी की मुहर लगानी चाही। मान वर्कर्स यूनियन ने इसका विरोध किया।

यूनियन ने अस्थायी श्रमिकों एवं ठेके के श्रमिकों की समस्याआें को भी उठाया। आरसीटू के राज्य स्तरीय नेता प्रबंधकाें से मिले थे। यूनियन की कार्यकारिणी के कुछ सदस्य स्वयं भी बिना लाइसेंस ठेकेदार का धंधा भी कर रहे हैं आैर वे प्रबंधको के दलाल हैं।

आरसीटू के नेता भी इस दलाली में हिस्सेदार हैं। प्रबंधकों ने यूनियन पर दबाव डाला कि बोनस के पहले समझौते करें। आरसीटू के नेताआें को समझौते के लिए मनाया। यूनियन के नेताआें के एतराज के बावज़ूद आरसीटू के नेता (प्रदेश सचिवसमझौते में सम्मिलित हुए आैर दबाव डालकर समझाैते के लिए विवश किया।

इसके बाद यूनियन के अध्यक्ष से आरसीटू के प्रदेश सचिव ने त्यागपत्र देने के लिए कहा आैर नहीं देने पर नौकरी से निकलवा देने की धमकी दी।

इस प्रकार प्रबंधकों के इशारे पर यूनियन के विभाजन की स्थिति उत्पन्न की।

यूनियन तोड़ने की कोशिश

यूनियन की कार्यकारिणी के छह सदस्यों को जो प्रबंधकों के दलाल आैर आरसीटू की पैरोकारी कर रहे थे आैर उनमें कुछ स्वयं ठेकदार बन चुके थेयूनियन की सदस्यता से निष्कासित कर दिया गया। 

यूनियन की आम सभा बुलाकर आरसीटू से संबंद्धता समाप्त करने का फैसला कर लिया गया। यूनियन के अध्यक्ष एवं कार्यकारिणी ने फैसला लेकर इस वर्ष जनवरी में नए चुनाव कराए जिसमें श्रमिकों ने पुराने अध्यक्ष एवं महामंत्री को फिर से इन्हीं पदों पर चुना।

यहां उल्लेखनीय है कि यूनियन के महामंत्री विगत 15 वर्षों से यूनियन के महामंत्री हैं। निष्कासित छह ने संयोजन समिति बनाकर समानान्तर यूनियन बनार्इ आैर यह दावा कर दिया कि वही असली मान वर्कर्स यूनियन है।

मालिकों ने यह कहकर उन्हें सही प्रतिनिधि मान लिया कि आरसीटू के नेताआें की हिमायत उन्हें हासिल है आैर क्याेंकि मूल यूनियन ने आरसीटू से संबद्धता समाप्त करने का फैसला कर लिया थाप्रबंधकों ने उ से मान्यता देने से इंकार कर दिया।

इसके बाद यूनियन के अध्यक्ष के खिलाफ़ अनुशासन हीनता आैर काम में लापरवाही का का मन गढ़ंत आरोप लगाकर जांच का नाटक किया आैर सेवा मुक्त कर दिया।

मान वर्कर्स ने अपनी यूनियन के अध्यक्ष को निकाले जाने के इस आदेश के तुरंत बाद स्वतःस्फूर्त तरीके से हड़ताल कर दी। मिल के अस्थायी आैर स्थायी श्रमिकों में से 90 प्रतिशत काम पर नहीं गए आैर मिल के गेट पर धरना देकर बैठ गए।

श्रमिकों ने श्रम विभाग के सामने प्रदर्शन भी किया परंतु श्रम विभाग ने तारीखें देकर मामला लंबित रखा। अंत में 13 दिन की हड़ताल के बाद प्रबंधकों ने यूनियन के अध्यक्ष के अतिरिक्त अन्य पांच श्रमिकों के निलंबन आदि समाप्त कर काम पर वापस लेनेमज़ूदूरों के विरोध में बदले की कोर्इ कार्रवार्इ नहीं करनेअस्थार्इ श्रमिकों को ठेके के श्रमिकों में नहीं बदलने की मांगें मान लीं।

यूनियन के अध्यक्ष के मामले में संयुक्त प्रबंध निदेशक ने आैपचारिक तौर पर आश्वासन दिया है कि प्रबंध निदेशक उन्हें कुछ समय बाद काम पर वापस ले लेंगे। अन्यथा अध्यक्ष श्रम विभाग में अवैधानिक तौर पर सेवा मुक्ति के आदेश पर मुकदमा दायर कर वापस आ सकता है।

यूनियन की मान्यता के मामले में प्रबंधक गण दलाल यूनियन को मान्यता देने से पीछे हटकर इतने पर सहमत हुआ कि पदाधिकारियों में विवाद है आैर इस पर नियमानुसार जो यूनियन वैधानिकता प्रमाणित करेगी वे उसे मान्यता देंगे।

इस प्रकार यह स्वतःस्फूर्त हड़ताल समाप्त अवश्य हो गर्इ है परंतु संघर्ष जारी है। इस संघर्ष में स्वतःस्फूर्तता अगर संघर्ष की कमजोरी थी तो खास बात यह थी कि श्रमिकों ने यूनियन के अपने अधिकार के लिए यह संघर्ष किया आैर तमाम दबावों को मुकाबला किया तथा 13 दिन के वेतन की हानि भी झेली है।

Workers Unity Team

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.