चीन का गुड़गांवः मज़दूरों के शोषण और दमन का दूसरा नाम शेनझेन जैसिक टेक्नोलॉजीज़
दुनिया का मैन्युफ़ैक्चरिंग हब बनने वाले चीन में वर्करों की दास्तां सुनकर लगेगा कि आप गुड़गांव, नोएडा, सूरत, चैन्नई, कोलकाता जैसे भारतीय औद्योगिक इलाकों की बातें हो रही हैं।
शेनझेन जैसिक टेक्नोलॉजी कार्पोरेशन लिमिटेड के मज़दूरों के एक जत्थे ने क़ानूनी प्रावधानों के तहत अपनी यूनियन बना ली, लेकिन कंपनी और लोकल ट्रेड यूनियन ने उन पर ग़ैरक़ानूनी काम करने का आरोप लगा दिया।
इसके नेताओं को ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से निकाल दिया गया. लेकिन मामला यहीं नहीं रुका। अब कंपनी, पुलिस और यहां तक कि गुंडे भी उनके पीछे पड़ गए हैं।
बीती 20 जुलाई को, रोज़ की तरह तीन वर्कर भी काम पर गए, लेकिन सिक्योरिटी गार्डों ने उन्हें धक्के मार कर निकाल दिया।
सूचना पर आई पुलिस ने उनकी पिटाई की और हिरासत में ले लिया। तबसे वर्कर रोज़ फैक्ट्री गेट के सामने प्रदर्शन कर रहे हैं और अपने नेताओं की बहाली की मांग कर रहे हैं।
उन्होंने पुलिस स्टेशन पर भी प्रदर्शन किया और वर्करों की बुरी तरह पिटाई किए जाने का जवाब मांगा। जुलाई 24 को जैसिक वर्कर अपनी मांगों को लेकर फैक्ट्री गए थे।
उनकी मांग थी, ‘ग़ैरक़ानूनी बर्खास्तगी मंजूर नहीं, तुरंत बहाली हो!’ फैक्ट्री के ऑफ़िस स्टाफ़ और सिक्योरिटी गॉर्डों ने उन्हें कैंपस में घुसने से रोकने की कोशिश की।
दरअसल कहानी 20 जुलाई से शुरू होती है जब 20 अन्य मज़दूर रोज़ाना की तरह काम पर फैक्ट्री पहुंचे। लेकिन अचानक उन्हें रोकने के लिए पुलिस आ गई और बिना कुछ जांच पड़ताल किए ही वर्करों पर हमला बोल दिया।
उन्होंने बर्बर तरीके से पीटना शुरू कर दिया। वर्करों का कहना है कि असल में जांच पड़ताल का उनका यही तरीक़ा है।
प्रदर्शन के दौरान एक वर्कर ने बताया कि ‘पिछली बार उन्होंने पुलिस बुलाई थी… लेकिन इस बार जब सिक्योरिटी गॉर्डों ने हमला बोला तो हमने पुलिस बुलाई। लेकिन पुलिस ने इस बार भी कैसे जांच पड़ताल की?’
‘वो आए और हमसे ही पूछताछ की। उन्हें हमारी फिक्र नहीं थी। और जिन्होंने हमला किया था, उन्हें कुछ भी नहीं बोला। ये भेदभाव कैसा! वो जनता और मालिक से बिल्कुल अलग अलग तरीके से पेश आए।’
मज़दूरों पर हुए हमले के ख़िलाफ़ यूनिवर्सिटी छात्रों ने हस्ताक्षर अभियान चलाया, वामपंथी प्रोफेसर उनके समर्थन में आ गए और प्रदर्शन में शामिल भी हुए।
27 जुलाई को अधिकारियों ने क़रीब 30 लोगों को गिरफ़्तार किया। इनमें वर्करों के अलावा वो स्टूडेंट भी थे जो समर्थन में आए थे।
सब पर शांति भंग का आरोप लगाया गया। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कंपनी और पुलिसिया दमन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठने लगी। जर्मनी और इटली, हांगकांग आदि जगहों पर प्रदर्शन हुए।
वर्करों और छात्रों ने एक सपोर्ट ग्रुप बनाया और लगातार प्रदर्शन किया। 16 विश्वविद्यालयों के छात्रों ने एक अपील पर हस्ताक्षर कर गिरफ़्तार लोगों को रिहा करने की मांग की। लेकिन अभी तक 14 वर्कर जेल में बंद हैं।
शेन मेंग्यू वर्कर एक्टिविस्ट हैं। वो गुआंगझाऊ की एक कार कंपनी में काम करती थीं, लेकिन जब यूनियन की लीडर चुनी गईं तो उन्हें बर्ख़ास्त कर दिया गया।
नौकरी से निकाले जाने के बाद वो वर्करों की प्रमुख आवाज़ बन गईं और जैसिक फैक्ट्री में भी उनके समर्थन में आवाज़ बुलंद की।
उन्होंने प्रदर्शन में भाग लेते हुए कहा, ‘आप देख सकते हैं कि जैसिक वर्कर इंसाफ़ के लिए संघर्ष कर रहे हैं। क्योंकि समाज में इंसाफ़ नहीं बचा है। पुलिस कभी इंसाफ़ नहीं करती, ना ही मालिक करते हैं। अगर हम उनका समर्थन नहीं करेंगे तो कौन करेगा?’
उन्होंने कहा कि ‘असल में उनकी मदद करते हुए हम अपनी मदद कर रहे हैं। क्योंकि भविष्य में हमें भी ऐसे हालात का सामना करना पड़ेगा। हमें इन पुलिस वालों और गुंडों के हाथों परेशान किया जा रहा है। अगर हम उनके लिए अभी नहीं खड़े हुए तो एक दिन हमें भी ऐसे ही हालात का सामना करना पड़ेगा।’
शेन ने कहा, ‘हम गुंडों से खुद को बचाने के लिए मदद की गुहार लगा रहे थे। वर्दी में खड़े एक पुलिसवाले ने देखा लेकिन वो क़रीब नहीं आया। बिना हिले डुले वो खड़ा रहा।’
11 अगस्त को मेंग्यू को कार सवार तीन लोगों ने जबरदस्ती अपहरण कर लिया गया। उनका अभी तक कुछ अता पता नहीं है।
लेकिन मोंग्यू का मामला कोई अकेला नहीं है।
12 अगस्त को मज़दूरों का समर्थन करने वाले समूह के एक अन्य सदस्य पर हमला बोला गया। सदस्यों के रहने के ठिकाने पर गुंडे पहुंच कर धमका रहे हैं।
15 अगस्त को गुंडों ने इस समूह के लोगों की पिटाई की और एक को तो लगभग किडनैप ही कर लिया था।
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