ट्रेड यूनियनों, छात्र संगठनों और नागरिक अधिकार संगठनों ने कोलकाता से वाराणसी तक शुरू की जनचेतना यात्रा
By Harsh Thakor
विभिन्न ट्रेड यूनियन, छात्र संगठन, महिला समूह, नागरिक अधिकार और लोकतांत्रिक संगठनों ने मिलकर 6 दिसंबर, 2023 से कोलकाता से एक ‘जन चेतना यात्रा’ शुरू की है.
ये यात्रा कोलकाता से वाराणसी तक एक रैली की शक्ल में जाएगी, जिसका का उद्देश्य जनविरोधी नीतियों के बारे में जनता के बीच जागरूकता बढ़ाना है.
जन चेतना यात्रा पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार राज्यों के कई जिलों से गुजरते हुए उत्तर प्रदेश के वाराणसी में समाप्त होगी.
यात्रा के आयोजकों में अखिल हिंद फॉरवर्ड ब्लॉक (क्रांतिकारी), आजाद गण मोर्चा, बीएएफआरबी, बिहार निर्माण एवं असंगठित श्रमिक संघ, सीबीएसएस (चाय बागान संग्राम समिति), सीसीआई, सीपीआई (एमएल), सीपीआई-एमएल (एनडी), सीपीआई- शामिल हैं.
इसके साथ ही एमएल (आरआई), एफआईआर, जनवादी लोक मंच, मार्क्सवादी समन्वय समिति, एमकेपी, नागरिक अधिकार रक्षा मंच, पीसीसी- सीपीआई (एमएल), पीडीएसएफ, एसएनएम समेत और भी कई संगठन शामिल है.
आयोजकों ने जन जागरण यात्रा को कॉर्पोरेट शासन, फासीवाद और नव-उदारवादी नीतियों के हमले के खिलाफ मेहनतकश लोगों के प्रतिरोध को मजबूत करने के लक्ष्य के साथ विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों द्वारा शुरू किया गया एक आंदोलन बताया है.
उन्होंने कहा कि भाजपा और आरएसएस कॉरपोरेट के साथ मिलकर देश को गंभीर संकट की ओर धकेल रहे हैं.
भले ही भाजपा कुछ राज्यों में चुनाव हार जाए, लेकिन फासीवाद और नव-उदारवादी विचारों के हमले के खिलाफ मेहनतकश जनता के संगठित प्रतिरोध को मजबूत किया जाना चाहिए, और इसे निर्णायक संघर्षों को संगठित और मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़कर हासिल किया जाना चाहिए.
ऐसे समय में जब शासक वर्गों द्वारा फासीवाद और नव-उदारवादी हमले की लहरें अभूतपूर्व पैमाने पर बढ़ गई हैं, वामपंथी और लोकतांत्रिक ताकतों द्वारा जनता के बीच एकजुट अभियान राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है.
वर्तमान में निगमों द्वारा समर्थित फासीवादी ताकतों ने किसानों, मजदूरों, छात्र-युवाओं और आम नागरिकों का शोषण अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ा दिया है.
दक्षिणपंथी ताकतों से मुकाबला करना और जवाबी कार्रवाई करना एक अत्यंत आवश्यक कार्य है. इस संदर्भ में क्रांतिकारी, संघर्षशील और लोकतांत्रिक संगठनों के एक वर्ग के साथ-साथ व्यक्तियों द्वारा ‘जन चेतना यात्रा’ शुरू करने की संयुक्त पहल फासीवाद-विरोधी और कॉर्पोरेट-विरोधी एकजुटता विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.
मालूम हो की जन चेतना यात्रा बाबरी विध्वंस के दिन एक हजार से अधिक लोगों की सामूहिक रैली और विरोध सभा के साथ कोलकाता से शुरू हुई.
रैली में लगभग 50-100 लोग लगातार भाग ले रहे हैं, जबकि जिन क्षेत्रों से यह गुजर रही है. वहां से कार्यकर्ता अभियान में शामिल हो रहे हैं और स्थानीय लोग कार्यक्रमों की मेजबानी कर रहे हैं.
यात्रा का पहला दिन हुगली जिले में संपन्न हुआ. दूसरे दिन भारी बारिश के बीच जन चेतना यात्रा हुगली औद्योगिक क्षेत्र की सड़कों के साथ-साथ सेरामपुर, चंदननगर, चिनसुराह के महत्वपूर्ण शहरों से होकर गुजरी.
विऔद्योगीकरण के संकट से जूझ रहे हुगली के पुराने औद्योगिक क्षेत्र हाल के वर्षों में रामनवमी जुलूसों के दौरान तीव्र सांप्रदायिक लामबंदी और हिंसा की चपेट में आ गए हैं, क्योंकि आरएसएस-भाजपा ने बड़े पैमाने पर बेरोजगार युवाओं और हिंदी भाषी औद्योगिक श्रमिकों के बीच सफलतापूर्वक अपनी जगह बनाई है.
भाग लेने वाले संगठनों के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने जिले में प्रचार करते हुए सांप्रदायिक और फासीवादी आरएसएस-भाजपा गठबंधन और कॉर्पोरेट्स के खिलाफ संघर्ष का आह्वान किया.
तीसरे दिन जन चेतना यात्रा पूर्व और पश्चिम बर्धमान जिलों की सड़कों से गुजरी.
पूर्वी बर्धमान एक कृषि क्षेत्र है जो वर्तमान में गहरे कृषि संकट का सामना कर रहा है, किसानों को अपनी आजीविका कमाने के लिए सरकार से प्रभावी समर्थन की कमी है और हार्वेस्टर के उपयोग के कारण खेतिहर मजदूरों को अपनी नौकरियां खोनी पड़ रही हैं.
चौथे दिन, यात्रा पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले में पहुंची, जहां बड़े पैमाने पर आदिवासी आबादी रहती है.
बरजोरा, बांकुरा शहर और बेलियाटोर में रैलियां और विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए. किसान, मजदूर, छात्र, युवा, आदिवासी समुदाय संगठनों के प्रतिनिधि यात्रा में शामिल हुए.
यात्रा में बताया गया कि कैसे आरएसएस/भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा वन अधिनियम में नए संशोधन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को संरक्षण देते हैं और उन्हें प्राकृतिक संसाधनों को लूटने का खुला लाइसेंस देते हैं. जिसके परिणामस्वरूप बड़े आदिवासी वर्गों की आजीविका पर क्रूर हमला होता है.
साथ ही, इसमें इस बात पर भी जोर दिया गया है कि कैसे आरएसएस आदिवासी आबादी को हिंदुओं की छत्रछाया में एकजुट करने की कोशिश कर रहा है और उन्हें हिंदू समाज की मुख्यधारा में लाने की झूठी आकांक्षाओं का लालच दे रहा है.
छठे दिन पश्चिम बंगाल के बाराबनी से शुरू होकर जन चेतना यात्रा ने झारखंड राज्य में कदम रखा. झरिया और धनबाद की कोयला खदानों से गुजरते हुए, भाग लेने वाले कार्यकर्ताओं ने कोयला खदानों के निजीकरण और जल-जंगल-जमीन की कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ नारे लगाए.
सातवें दिन जन चेतना यात्रा झारखंड के कोयला खदानों और इस्पात शहर निरसा, पुटकी, मुनिरडीह और बोकारो से होकर गुजरी. खदानों के निजीकरण के साथ-साथ भाजपा-आरएसएस की फासीवादी आक्रामकता का विरोध करते हुए, यात्रा ने कॉर्पोरेट राज की ताकतों के खिलाफ निर्णायक संघर्ष का आह्वान किया.
दिल्ली से आई और इस यात्रा से लगातार जुड़ी श्रेया ने बताया कि “स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ चर्चा के आधार पर हमें लगता है कि राष्ट्रीयकृत खदानें धीरे-धीरे निगमीकरण की ओर बढ़ रही हैं. और इस प्रक्रिया में कार्यबल को ठेकेदारों को आउटसोर्स किया जा रहा है. ये सभी श्रम कानूनों के उल्लंघन का कारण बन रहे हैं और राज्य के इस हिस्से में श्रमिक वर्ग के सामने ये एक मुख्य मुद्दा बन गया हैं.”
उन्होंने आगे बताया कि ” हमने यात्रा का ये रास्ता इसलिए चुना क्योंकि बंगाल में श्रमिक संघर्षों का एक लंबा इतिहास रहा है और बनारस फासीवादी भाजपा सरकार के हिंदुत्व डिजाइन के केंद्र में है.”
यात्रा के दौरान नुक्कड़ सभाएं की गई और क्ताओं ने क्षेत्र के विशिष्ट मुद्दों को संबोधित किया और नवउदारवादी फासीवादी ताकतों के खिलाफ एकजुट संघर्ष की आवश्यकता पर जोर दिया, जो लोगों को सांप्रदायिक नफरत से जहर देकर समाज को विभाजित कर रहे हैं.
अभियान का एक महत्वपूर्ण सकारात्मक पहलू यह है कि इसने समाज के हर वर्ग को संबोधित किया है, चाहे वह श्रमिक, किसान, आदिवासी, मजदूर, छात्र या युवा हों.
12 दिसंबर को झारखंड से निकलकर जन चेतना यात्रा ने बिहार में प्रवेश किया और पटना, जहानाबाद, गया, कोच, गोह, दाउदनगर से गुजरा.
13 दिसंबर को गांधी संग्रहालय, पटना में एक सम्मेलन भी आयोजित किया गया, जहां कई संगठन एक साथ आए और पुष्टि कि गई की यात्रा कॉर्पोरेट-फासीवादी हमलों के खिलाफ एक क्रांतिकारी संघर्ष के निर्माण की शुरुआत है.
14 दिसंबर से 18 दिसंबर तक यात्रा बिहार के विभिन्न क्षेत्रों गया, औरंगाबाद, रोहतास और कैमूर जिलों से होकर गुजरेगी.
गया, कोच, दाउदनगर, नासिरगंज, सासाराम, भभुआ समेत अन्य क्षेत्रों में कार्यक्रम व सम्मेलन होंगे. इसके बाद यह उत्तर प्रदेश से होकर गुजरेगी और यूपी के चंदौली में एक सार्वजनिक बैठक आयोजित की जाएगी और यात्रा 20 दिसंबर, 2023 को वाराणसी में समाप्त होगी.
(ग्राउंड जीरो कि रिपोर्ट से साभार)
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