फासीवादी और नवउदारवादी हमलों के खिलाफ कोलकाता से जनचेतना यात्रा कि हुई शुरुआत

फासीवादी और नवउदारवादी हमलों के खिलाफ कोलकाता से जनचेतना यात्रा कि हुई शुरुआत

लोकतंत्र, समानता और प्रगति के संघर्ष की मजबूती के लिए यह यात्रा पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों से गुजरकर झारखंड के धनबाद, बिहार के पटना, गया होते हुए बनारस तक जाएगी

फासीवादी और कॉर्पोरेट आक्रमण के खिलाफ कोलकाता से बनारस तक जन चेतना यात्रा आज से शुरू हो चुकी है.

धर्मतल्ला पर प्रारंभिक प्रतिरोध सभा के बाद, आज कोलकाता शहर में एक उत्साही जन रैली देखी गई. यात्रा का पहला दिन हुगली जिले में संपन्न हुआ.

बाबरी विध्वंस दिवस 6 दिसम्बर को लोगों पर फासीवादी और नवउदारवादी हमले से लड़ने के लिए, लोकतंत्र, समानता और प्रगति के लिए संघर्ष को मजबूत करने और विकसित करने के लिए, 19 दिन तक यह यात्रा जारी रहेगी.

बंगाल से झारखंड व बिहार होते हुए यह यात्रा 20 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश के बनारस में सम्पन्न होगी.

 

ज्ञात हो कि क्रन्तिकारी वामपंथी और जनवादी संगठनो ने मिलकर कलकत्ता से शुरू करके बंगाल, झारखण्ड, बिहार से होते हुए उत्तरप्रदेश के बनारस तक पदयात्रा करने की घोषणा की है.

6 दिसंबर बाबरी मस्जिद ढहाने के दिन को याद करते हुए कलकत्ता से यात्रा की शुरुआत हुई है और धनबाद, पटना, गया होते हुए; गाँव-देहात-शहर-औद्योगिक इलाकों में प्रचार करते हुए बनारस की तरफ जाएगी.

इस दौरान आरएसएस-भाजपा के फासीवादी हमलों के खिलाफ आवाज़ उठाते और कॉरपोरेट पूंजी के शोषण-लूट और उसमे विपक्षी पार्टियों के भी शासक-वर्गीय चरित्र का पर्दाफाश करते हुए यह यात्रा जनता के मुलभुत मुद्दों, वास्तविक जनवाद का सवाल, लोकतंत्र, प्रगति और समानता की लड़ाई को मजबूत करने के लिए आवाज़ उठाया जाएगा.

देश में फासीवादी हमले के खिलाफ जनता के संघर्ष को आगे बढ़ाने का सवाल देश में आज़ादी, बराबरी और जनवादपसंद लोगो के लिए महत्वपूर्ण सवाल बना हुआ है.

आरएसएस-भाजपा के शासन ने एक तरफ कॉरपोरेट घरानो के लिए देश की सम्पदा और मज़दूरों को लूटने की खुली छूट दी है, जिसमे मेहनतकश जनता की जिंदगी को और भी बर्बादी की तरफ धकेला है.

और दूसरी तरफ धर्म के नाम पर झगड़े खड़ा करके जनता को उलझाए रखा ताकि जनता एकताबद्ध तरीके से कॉरपोरेट पूंजीपतियों के लूट के खिलाफ संघर्ष ना खड़ा करे और सरकार को मेहनतकशों की बात मानने के लिए मजबूर ना कर पाए.

तेजी से बढ़ते हुए फासीवादी हमलों के खिलाफ संघर्ष की तैयारी में फासीवादी आंदोलन, जो की एक प्रतिक्रियावादी जनआंदोलन के रूप में समाज के अंदर से विकसित होता है, उसका चरित्र और भारतीय सन्दर्भ में उसकी विशेषताओं को समझना जरुरी होगा.

भारत में ब्राह्मणवादी विचारधारा ने जनता के अंदर गैरबराबरी की बहुत गहरी खाई बनाई है, जिसमे दमित तबकों के प्रति दलित, शूद्र, आदिवासी, महिला, अल्पसंख्यक के प्रति एक प्रकार की मानसिक और शारीरिक हिंसा को वैधता मिली है.

फासीवादी आंदोलन उच्च-वर्णवादी और अन्य सामाजिक रूप में प्रतिक्रियावादी तत्त्वों को बढ़ावा देता है, जो स्वतंत्रता, बंधुत्व, हर नागरिक के क़ानूनी समानाधिकार जैसे मूल्यों को अपने सामाजिक बर्चस्व के प्रतिस्पर्धी के रूप में देखता है.

और उन मूल्यों को बुर्जुआ दायरे के अंदर भी वास्तविक रूप में स्थापित होने से प्रतिरोध करता है.

कॉरपोरेट पूंजीपति या इन पूंजीपतियों का समूह; जब संकटग्रस्त स्थिति में रहता है और मुनाफे के लिए जनता का न्यूनतम क़ानूनी अधिकार भी उनके लिए बाधक के रूप में आता है, तब उनके लिए भी प्रतिक्रियावादी सामाजिक तत्त्वों के साथ गठबंधन करना जरुरी पड़ता है.

फासीवादी जनआंदोलन, जो समाज के किनारे चलता था, वो कॉरपोरेट पूंजी की मदद मिलने से ही समाज की मुख्यधारा में आकर राज करने के लिए पहल करता है, पूंजीवादी शासन के अंदर ही फासीवादी शासन लागू करने की कोशिश करता है.

भारत में फासीवादी आंदोलन आज जिस मंजिल पर है, उसमे क्रांतिकारी वामपंथी ताकतों की एकताबद्ध पहल महत्वपूर्ण हो गई है.

साझा पहल, जिसमे क्रन्तिकारी वामपंथी और प्रगतिशील, जनवादी शक्तियां फासीवाद विरोधी संघर्ष को आगे बढ़ाएगा.

पूंजीपति वर्ग की हितकामी जो राजनीतिक पार्टियां भाजपा को सरकार से हटाकर सत्ता का हिस्सा चाहती हैं, उनसे राजनैतिक और सांगठनिक दूरी बनाये रखेगा, आम जनता को संघर्ष में लगातार सक्रीय करने की कोशिश करेगा; वह वर्तमान दौर के फासीवाद विरोधी संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

तमाम संगठनो के साझा कार्यक्रम के रूप में कलकत्ता से बनारस की यात्रा इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहलकदमी है.

(मेहनतकश कि खबर से साभार)

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Abhinav Kumar

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