कबीर के बनारस में कबीर जन्मोत्सव मनाने पर लगाई रोक, बुनकरों के असंतोष का पुलिस को सता रहा भय
ये नया इंडिया है, नया भारत, जिसकी ढिंढोरा मोदी और बीजेपी के नीचे से लेकर ऊपर तक नेता कार्यकर्ता पीटते नहीं अघाते हैं।
यहां रविवार को कबीर के जन्मोत्सव का एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसे पहले तो बनारस की बहादुर और ईमानदार पुलिस ने न होने देने की पूरी कोशिश की और आखिरकार कार्यक्रम के एक घंटे पहले इसे रद्द करवा दिया।
दूसरी ओर बनारस में जी-20 देशों की बैठक का आयोजन चल रहा है और इसी सिलसिले में बनारस के घाट पर विदेशी मेहमानों के सामने भव्य गंगा आरती का आयोजन किया गया।
कबीरदास की 626वीं जयंती पर ‘कबीर जन्मोत्सव समिति’ 4 से 11 जून तक बनारस के अलग-अलग मोहल्लों में ‘ताना बाना कबीर का’ नाम से एक अभियान चला रखा था 11 जून को रविवार को इसका एक संयुक्त कार्यक्रम होना था।
नाटी इमली के बुनकर कॉलोनी में सांस्कृतिक कार्यक्रम की अनुमति लेने के लिए 24 मई को स्थानीय थाने में बात की गई। सबकुछ सामान्य था लेकिन कार्यक्रम की अनुमति मिलने में देरी हो रही थी।
शहर की जानीमानी गांधीवादी कार्यकर्ता पारमिता ने कहा कि बुनकरों में बिजली के मुद्दे पर भारी असंतोष है और लगता है कि यहां लोगों के जुटान से पुलिस आशंकित हो गई थी।
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बिजली के मुद्दे पर बुनकरों में भारी असंतोष
पारमिता कबीर जन्मोत्सव समिति के कई कार्यक्रमों में शामिल रही हैं, वो कहती हैं, “थाने से सकारात्मक रिपोर्ट जाने के बावजूद डीएसपी ऑफ़िस से इस रिपोर्ट को वापस मंगा लिया गया। कार्यक्रम से पहले लोकल इंटेलिजेंस यूनियन के पुलिस कर्मी सक्रिय हो गए थे और हर गतिविधि की विडियोग्राफी कर रहे थे। आखिरकार कार्यक्रम के एक घंटे पहले जब इसे रद्द करने का पुलिस ने दबाव बनाया तो इसे रद्द करना पड़ा।”
उन्होंने बताया कि चूंकि लोगों को कार्यक्रम होने की जानकारी थी, इसलिए उन्हें मेगा फ़ोन से बताना पड़ा कि कार्यक्रम रद्द कर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि पुलिस को इस बात का भय था कि इस कार्यक्रम में लगभग पांच एक हज़ार लोग पहुंच सकते हैं, जिनमें ज़्यादातर बुनकर होते और पिछले एक साल से पावरलूमों में बिजली मीटर लगाए जाने से वे काफ़ी उद्वेलित हैं।
इसे लेकर बीते साल दीपावली के दौरान भी आंदोलन हुआ था, तब त्यौहार की वजह से यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने बुनकर प्रतिनिधियों को बुलाकर मामले को शांत कराया लेकिन उनका मुद्दा अभी हल नहीं हुआ है और कभी भी ये आंदोलन भड़क सकता है।
आयोजनकर्ताओं में से एक पराग ने कहा कि एक तरफ आज सरकार संत कबीर, रैदास, तुकाराम, बसवन्ना और अन्य भक्ति-सूफी संतों की मूर्तियों पर माल्यार्पण करती है, लेकिन दूसरी तरफ जनता को ऐसे आयोजन करने से रोकती है। आज की घटना से पता चलता है कि वह भारत के इन कवियों और संतों की सोच पर बातचीत करने से डरती है।
आयोजकों ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर पुलिस के रवैये के प्रति गहरी निराश व्यक्ति की है।
प्रेस विज्ञप्ति –
‘कबीर जन्मोत्सव समिति’ ने पिछले एक सप्ताह भर के अभियान में नाटी इमली (4 जून), वरुणा पुल स्थित विश्वज्योति केंद्र (6 जून), अमरपुर बठलोहिया (7 जून), बाजार दीहा (8 जून), पीली कोठी (9 जून) और भैसासुर घाट (10 जून) में इस तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए।
इस दौरान वक्ताओं ने बताया कि संत कबीर बुनकर समुदाय से थे और उन्होंने अपनी कविताओं के ज़रिए अपने अनुभवों को लोगों से साझा किया था। वे श्रम से जुड़े ज्ञान को प्राथमिकता देते थे। उनकी मुख्य चिंता यही थी कि लोग जाति-धर्म का भेदभाव मिटाकर आपस में मिलजुल इंसानियत के साथ रहें। इस अभियान में कई राज्यों से आए कबीरपंथी कलाकारों ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई। शहर के अन्य संस्थानों में भी कबीर जन्मोत्सव मनाया जा रहा है, तो बुनकर समुदाय अपने पुरखे कबीर को आख़िर क्यों याद नहीं कर सकता? ख़ुद सरकार भी कबीर के जन्मोत्सव पर कार्यक्रम आदि कर रही है तो बुनकर पर यह दबाव क्यों?
6 अप्रैल, 2023 के सर्कुलर के तहत 2006 से पावरलूमों को बिजली पर मिल रही ‘फ्लैट रेट’ सब्सिडी की वापसी, बुनाई उद्योग में निवेश की कमी, मार्केटिंग के अवसर में गिरावट और बड़े कॉरपोरेट चेन वाराणसी बुनाई क्षेत्र के गंभीर संकट के लिए जिम्मेदार हैं। वे लाखों निवासियों को रोजगार देने वाले एक ऐसे क्षेत्र को कमज़ोर कर रहे हैं, जो बनारस की अर्थव्यवस्था को बनाए रखता है और जो उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न अंग है। बुनकरों के बीच सदियों से चले आ रहे पारंपरिक ज्ञान को समाज या सरकारों द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है, ना ही इसे संरक्षित और विकसित किया गया है, इसलिए कई बुनकरों को काम की तलाश में पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा। हमारे सांस्कृतिक अभियान के दौरान बुनकरों के बीच ये मुद्दे बार-बार उभरे।
इस आयोजन से शहर को कोई यातायात में परेशानी नहीं होने के बावजूद आयोजकों ने 24 मई से कई बार यूपी पुलिस आयुक्त से संपर्क किया था। इस दौरान पुलिस द्वारा अनुमति में देरी के कई बहाने बनाए गए, लेकिन हमें अभी तक कोई लिखित अस्वीकृति पत्र प्राप्त नहीं हुआ है। हालांकि, इस बीच आज यूपी पुलिस कार्यक्रम स्थल पर पहुंचकर और कार्यक्रम के लिए टेंट लगा रहे स्थानीय आयोजकों को धमकियां दी गई।
एक ऐसा शासन जो विशेष रूप से भारतीय ज्ञान परंपराओं को आगे बढ़ाने की बात करता है, उसके द्वारा भारत के प्रगतिशील विचारकों का जश्न मनाने वाले एक सांस्कृतिक कार्यक्रम को रोकने के लिए, हम यूपी सरकार द्वारा उठाए गए दमनकारी कदमों की निंदा करते हैं।
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