मानेसर अमेज़न इंडिया के वर्करों का हाल- ’24 साल का हूं लेकिन शादी नहीं कर सकता क्योंकि…’
“मेरे दोस्त और मेरी उम्र के दूसरे लोग अपने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपनी फोटोज डालते हैं, वो कहाँ घूमने गए ये सब शेयर करते हैं। लेकिन मेरे पास इतना समय नहीं होता कि मैं अपना फोन इस्तेमाल कर पाऊं।”
ये कहना है अमेज़न के मानेसर स्थित वेयरहाउस में काम करने वाले 24 वर्षीय मज़दूर का। महीने के 10 हज़ार कमाने वाले इस मज़दूर ने हाल ही में लोन पर एक दोपहिया वहां ख़रीदा है।
वो हंसते हुए बताते हैं, “मैं जिस इलाके में रहता हूँ, उसके आस-पास बहुत सारे वर्कर रहते हैं। उन्हें ड्यूटी पर जाने के लिए 8 बजे सुबह निकलना होता है क्यूंकि वो लोग बस से जाते हैं। मैं 8:15 में निकलता हूँ क्यूंकि मेरे पास बाइक है। ये 15 मिनट मैं अपना फ़ोन इस्तेमाल कर लेता हूँ।”
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक, बीते महीने की 14 तारीख को अमेज़न के मानेसर स्थित वेयरहॉउस में वहां काम कर रहे मज़दूरों को ये शपथ दिलाई गई थी कि ‘ जब तक वो अपना दैनिक टारगेट पूरा नहीं कर लेंगे ,तब तक वो वॉशरूम या पानी पीने का ब्रेक नहीं लेंगे।’
इस ख़बर के बाहर आने के कुछ दिनों बाद श्रम और रोजगार मंत्रालय ने अमेज़न इंडिया से इस बात पर जवाब माँगा था।
जिसके बाद 24 जून को कंपनी ने स्वीकार किया कि मानेसर स्थित वेयरहॉउस में वर्कर्स के एक ग्रुप को उनके सीनियर द्वारा ऐसी शपथ दिलाई गई थी।
कंपनी का कहना है, “अपने आंतरिक जाँच के बाद हमें पता चला है कि 16 मई को शाम 4:30 बजे जब वर्कर्स के आधे-आधे घंटे के दो ब्रेक खत्म हो गए थे तब उनके सुपरवाइजर ने वर्कर्स के एक ग्रुप को ऐसी शपथ दिलाई थी। इस पुरे वाकये के लिए हम शर्मिंदा हैं और हम ये भी बताना चाहते हैं कि काम लेने के ऐसे तरीके हमारी कंपनी के कार्यस्थल के स्टैंडर्ड के खिलाफ है। हम इसकी पूरी आलोचना करते हैं। शपथ दिलाने वाले व्यक्ति के ख़िलाफ़ कंपनी ने अनुशासनात्मक करवाई की है”।
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9 घंटे कमर तोड़ काम
24 वर्षीय इस वर्कर ने बताया, “हमारा काम कस्टमर द्वारा किये गए आर्डर को 32 फ़ीट लम्बे कार्गो से अनलोड करना है। हमारा काम काफी मुश्किल और शारीरिक रूप से थकाऊ होता है। काम सुबह के 8:30 से शुरू हो जाता है ,जो शाम के 6:30 तक चलता है। इसके बीच में आधे- आधे घंटे के दो ब्रेक मिलते हैं”।
“पूरे दिन हमें खड़े होकर ही काम करना पड़ता है। डायपर से लेकर भारी भरकम LED TVs से भरे कार्टन पर कार्टन हमें गोदाम में रखने पड़ते हैं। औसतन एक मज़दूर रोजाना ऐसे 4 कार्गो अनलोड करते हैं पर त्योहार के ऑफर्स वाले सेल के दिनों ये नंबर बढ़ जाते हैं”।
आगे बताते हैं, “एक कार्गो में तकरीबन 8 से 10 हज़ार पार्सल से भरे होते हैं तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हमसे किस तरह से काम लिया जाता है।”
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के फ़िरोज़ाबाद के रहने वाला यह नौजवान वर्कर 2020 से ही अमेज़न के इस वेयरहॉउस में काम कर रहा है।
वो बताते हैं, “इतने साल से काम करने के बावज़ूद आजतक मैं अमेज़न से सिर्फ एक फ़ोन ही खरीद पाया हूँ।”
मानेसर स्थित 8×10 के पीले रंग से पुते कमरे में वो अमेज़न के वेयरहॉउस में ही काम करने वाले एक दूसरे वर्कर साथी के साथ रहते हैं।
कमरे में एक बेड, कूलर और एक सेल्फ है जिसमें उनके कपड़े और कुछ डाक्यूमेंट्स पड़े हैं। एक कोने में स्टोव, थोड़े से बर्तन और सब्ज़ी की एक छोटी सी टोकरी पड़ी है।
सुबह छह बजे से शुरू होता है दिन
वो बताते हैं, “मेरे दिन की शुरुआत सुबह साढ़े 6 बजे ही हो जाती है। रोजमर्रा के काम करने के बाद रात को बना कर रखी गई रोटी और अंडे का नास्ता करते हुए थोड़ा फ़ोन चला लेता हूँ फिर ड्यूटी के लिए निकल जाता हूँ। जहाँ पहले से ही कार्गो ट्रक हमारा इंतज़ार कर रहे होते हैं।”
“दोपहर के खाने के लिए घर से ही रोटी, दाल और फ्राई अंडे ले जाता हूँ। कैंटीन पहुँचने में हमें 10 मिनट लगते हैं। अपनी ID स्कैन कराने के लिए लाइन में लगना होता है। ये सब करने के बाद हमारे पास मात्र 10 मिनट बचता है, खाना ख़त्म कर दुबारा काम पर पहुँचने के लिए। शाम को घर पहुँचने के बाद थकान के मारे मैं सीधा बिस्तर पर गिर जाता हूँ। लगातार 9 घंटे खड़े होकर काम करने के बाद पैरों में इतनी ताकत नहीं बचती की खड़ा भी रह पाऊं।”
वो कहते हैं, “मैं पहले फ़ूड डिलीवरी का काम करता था, फिर एक दोस्त के कहने पर ये काम पकड़ा। पिछले अप्रैल तक मैं फुल टाइम वर्कर था लेकिन माँ के आँखों के ऑपरेशन के दौरान छुट्टी न मिलने के कारण मैंने पार्ट टाइम काम करने का मन बना लिया।”
फिलहाल ये वो हफ्ते में 5 दिन काम करते हैं। डे शिफ्ट की रोजाना मज़दूरी 616 रुपये जबकि नाईट शिफ्ट की 730 रुपये है।
वो बताते हैं, “यहाँ रहना भी खर्चीला है। हाथ हमेशा तंग ही रहता है। रूम रेंट, खाने का खर्च और बाइक की EMI देने के बाद कुछ भी नहीं बचता। पिछले 9 महीनों से मैंने घर पर एक पैसा नहीं भेजा है। रोज 10 घंटे काम करने के बाद भी मुझे भविष्य की चिंता होती रहती है, ऐसा लगता है इससे निकलने का कोई रास्ता नहीं है। पैसों की चिंता रात को सोने नहीं देती और ऐसे में ध्यान भटकाने के लिए मैं सोशल मीडिया का इस्तेमाल करता हूँ।”
इस 24 वर्षीय मज़दूर का पूरा परिवार फ़िरोज़ाबाद में रहता है। माँ के अलावा परिवार में 4 भाई और भतीजा-भतीजी हैं। 3 महीने पहले ये घर गए थे और निकट भविष्य में घर जाने का इनका कोई प्लान नहीं है।
वो बताते हैं, “मैं घर पर किये जाने वाले सवालों से बचना चाहता हूँ। भाई घर के खर्चों में हाथ बंटाने को कहते हैं। उनका कहना है यहीं आकर कोई काम करो। लेकिन वहां कोई काम नहीं हैं।”
“मैं खुद भी ये काम छोड़ना चाहता हूँ लेकिन दूसरा कोई काम भी होना चाहिए। मैंने भाई और दोस्तों से पैसे उधर लेकर एक लैपटॉप ख़रीदा और सीखा ताकि कोई दूसरा काम कर सकूँ।”
1200 वर्कर लेकिन यूनियन नहीं
वो कहते हैं, “मुझे समय मिलता है तो मैं लेबर लॉ और यूनियन बनाने के बारे में पढ़ता हूँ।”
वो एक बैग दिखाते हुए कहते हैं, “मेरे पास करीब 70 मज़दूरों का आधार कार्ड्स और एम्प्लोयी ID है जो मेरे साथ वेयरहॉउस में काम करते हैं और यूनियन बनाने को राजी हैं। पिछले साल दिसंबर में इस मुद्दे को लेकर क़ानूनी सलाह के लिए चंडीगढ़ भी गया था।”
मारुती के मानेसर स्थित प्लांट के यूनियन से भी हमें इस बात को लेकर सहयोग मिल रहा है। फिलहाल हमारी कोशिश है कि 100 वर्कर या कुल वर्क फ़ोर्स का 10 प्रतिशत (वेयरहॉउस में 1200 वर्कर काम करते हैं ) हमारे साथ जुड़ें ताकि हम अपनी यूनियन रजिस्टर्ड करा पाएं,”
शादी के बारे में क्या सोचते हैं?
मां की याद को लेकर कहते हैं, ” हाँ ! लेकिन मैं उसे यहाँ नहीं ला सकता, यहाँ रहना उसके लिए मुश्किल होगा। कोई जब उससे मेरे बारे में पूछता है तो वो कहती है ‘मैं अमेज़न में काम करता हूँ, लेकिन ये सिर्फ मैं जानता हूँ कि यहाँ काम करने का क्या मतलब है।”
“अकेलेपन के साथ रहना बहुत मुश्किल है। मेरा भी मन होता है कि कोई हो जिसके साथ मैं जीवन शेयर करूँ। लेकिन मैं शादी नहीं कर सकता। शादी का मतलब है जिम्मेदारी और इस मेहनताने पर मैं वो जिम्मेदारी नहीं उठा सकता। मैं किसी की भी जिम्मेदारी लेने की स्थिति में नहीं हूँ।”
(इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर का रुपांतरणः अभिनव कुमार)
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