प्रोटेरिअलः एक दिन छुट्टी पर सैलरी और बोनस दोनों कट जाते हैं, ठेका मज़दूरों के संघर्ष की कहानी
By एसके सिंह
मानेसर स्थित कंपनी प्रोटेरिअल के प्लांट परिसर में धरने पर बैठे ठेका मज़दूरों और मैनेजमेंट के बीच क़रीब 30 घंटे बाद 12 मई को रात 12 बजे समझौता हो गया है. समझौते के तहत कंपनी धरना दे रहे मज़दूरों को न निकालने पर सहमत हुई है.
हालांकि मैनेजमेंट ने धरने पर बैठे मज़दूरों की दो दिन की सैटरी काटने और 2,000 रुपये अटेंडेंस बोनस काटने की बात कही है, जिससे मज़दूरों ने आपत्ति जताई है.
इन ठेका मज़दूरों के अगुवा नेता राजेश कुमावत को तीन मई को तंबाकू रखने का आरोप लगाकर निकाल दिया गया था. छह महीने पहले 25 ठेका मज़दूरों को निकाल दिया गया था.
डिमांड नोटिस समेत इन सभी मुद्दों पर डीएलसी में 18 मई को मज़दूर प्रतिनिधियों और प्रबंधन के बीच बात होनी है.
धरने पर बैठे मज़दूरों ने दावा किया कि 11 मई को बी शिफ्ट के दो अगुवा मज़दूरों को मैनेजमेंट ने टर्मिनेट कर दिया था जिसके विरोध में वे धरना देने पर मजबूर हुए थे.
मैनेजमेंट का आरोप है कि मज़दूर काफ़ी दिनों से स्लोडाउन चला रहे हैं और केवल 80% प्रोडक्शन दे रहे हैं. 11 तारीख़ को 100% प्रोडक्शन देने पर ही वार्ता हो रही थी.
12 तारीख़ के समझौते में भी मैनेजमेंट 100% से अधिक प्रोडक्शन करने की बात कही. मज़दूरों का कहना है कि मशीन का एक टाइम होता है और नियत समय में 100% से अधिक प्रोडक्शन नहीं दिया जा सकता. अधिक प्रोडक्शन देने के मतलब है कि आठ घंटे के अलावा काम करना.
ठेका मज़दूरों का कहना है कि उनकी सैलरी क़रीब 10,000 रुपये है. इसके अलावा हर महीने पूरी अटेंडेस पर 2,000 रुपये का बोनस मिलता है. अगर कोई मज़दूर एक दिन की छुट्टी लेता है तो ये बोनस काट लिया जाता है.
अगर किसी वर्कर ने हाफ़डे भी काम किया तो उसकी सैलरी में से 700 रुपये और अटेंडेस बोनस काट लिया जाता है. बिना नागा कोई वर्कर ड्यूटी करता है तभी उसके हाथ में कुल क़रीब 12,500 रुपये सैलरी मिलती है.
दिलचस्प बात है कि जिस ठेका मज़दूरों से कंपनी वार्ता करने को राज़ी नहीं थी, उसे औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 12 (3) के अंतर्गत त्रिपक्षीय समझौता करना पड़ा है.
क्या हैं मांगें
प्रोटेरिअल के वर्कर 10 महीने से अधिक समय से उचित काम की शर्तों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
उन्होंने श्रम विभाग में एक डिमांड नोटिस भी दे रखा है जिसमें मैनेजमेंट के साथ 18 मई को वार्ता होनी है.
मज़दूरों की मांग है कि सभी ठेका मज़दूरों को परमानेंट किया जाए। समान काम का समान वेतन दिया जाए और क़ानूनी तौर पर जायज छुट्टियां दी जाएं.
अभी हालत ये है कि अगर कोई वर्कर वीकली छुट्टी के अलावा छुट्टी लेता है या बीमार पड़ता है तो उसकी सैलरी प्लस अटेंडेंस बोनस काट लिया जाता है और वर्कर उस महीने कर्ज़ में चला जाता है.
एक अगुवा वर्कर ने बताया कि इतनी कड़ी मेहनत के बावजूद अगर वर्कर को भूखा रहना पड़े तो ये कहां का इंसाफ़ है.
प्रोटेरिअल पहले हिताची मेटल्स इण्डिया के नाम से थी. यह एक जापानी एमएनसी कंपनी है.
मानेसर की यूनियनों के दबाव में समझौता
बी शिफ्ट के मज़दूरों द्वारा कंपनी के अन्दर बैठ जाने व सी और ए शिफ्ट द्वारा बाहर धरना लगाने के बाद मानेसर की अन्य मज़दूर यूनियनें और मज़दूर संगठन भी प्रोटेरिअल मज़दूरों के समर्थें में कंपनी गेट पर पहुंचे.
इनमें मारुति मानेसर कार प्लांट, मारुति पॉवरट्रेन व बेलसोनिका की यूनियनें शामिल रहीं. मारूति कार प्लांट व पॉवर ट्रेन की यूनियनों ने धरने पर बैठे मज़दूरों के लिए एक-एक वक्त के खाने का इंतज़ाम करवाया.
यूनियनों ने श्रम विभाग से हस्तक्षेप की अपील की और आगे भी आंदोलन में ज़रुरत पड़ने पर पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया. और कहीं न कहीं यूनियनों की इलाक़ाई एकता ने वर्रकों के हौसले को बढ़ाया और श्रम विभाग पर दबाव बनाया.
बेल्सोनिका कंपनी के मज़दूर स्वयं छंटनी के ख़िलाफ़ पास ही में अपनी कंपनी के गेट पर धरने पर बैठ हैं जिनमें से साथी दिन भर प्रोटेरिअल मज़दूरों के समर्थन में भी आते जाते रहे.
इसके साथ ही एआईयुटीयूसी से राम कुमार, मारूति के बर्ख़ास्त मज़दूर, इंकलाबी मज़दूर केंद्र और मज़दूर सहयोग केंद्र के लोग भी प्रोटेरिअल मज़दूरों के समर्थन में आए.
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