अवैध निर्माण में जान गंवाते प्रवासी मजदूर, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन से मजदूरों की जान पर संकट

अवैध निर्माण में जान गंवाते प्रवासी मजदूर, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन से मजदूरों की जान पर संकट

बेंगलुरु में, पिछले महीने तेज बारिश और रियल एस्टेट में भ्रष्टाचार का घातक परिणाम सामने आया जब 22 अक्टूबर को, बेंगलुरु के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र बाबूसपल्या, हेनूर में निर्माणाधीन एक सात मंजिला इमारत ढह गई, जिसमें आठ निर्माण मज़दूरों और एक ठेकेदार की मौत हो गई।

मारे गए आठ मज़दूरों की पहचान महमद अरमान, महमद अरशद, तिरुपाली, सोलो पशवान, फूलचंद यादव, तुलसी रेड्डी, गजेंद्र और मणिकंठन सत्य राजू के रूप में हुई है।

ठेकेदार एलुमलाई तमिलनाडु से थे। इमारत से बचाए गए लगभग 20 मज़दूरों में से छह गंभीर रूप से घायल हो गए।

अत्यधिक मौसम आपदाओं का असर सामाजिक रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों और कामकाजी वर्ग पर अधिक पड़ता है।

क्योंकि ये मज़दूर बाहरी स्थानों या खराब हवादार जैसे काम के माहौल में काम करते हैं और बिना उचित छाया, निकासी या बुनियादी ढांचे के अस्थायी बस्तियों या मज़दूर शिविरों में रहते हैं, वे अत्यधिक गर्मी और वर्षा के प्रति असुरक्षित हैं। बाबूसपल्या के मामले में, निर्माण में भ्रष्टाचार और घटिया सामग्री का इस्तेमाल भी एक कारण था।

बेंगलुरु के प्रवासी मज़दूर कौन हैं और वे कहां से आते हैं?

बिहार के खगड़िया जिले के निवासी और बचाए गए मज़दूरों में से एक अरमान ने कहा, ‘ हम यहां काम करने आए हैं क्योंकि बिहार में काम नहीं है ‘।

एक अन्य मज़दूर अरशद ने भी यही कहा, ‘ हम बिहार से यहां आए क्योंकि यहां हमें अधिक मजदूरी मिलती है। हम पहली मंजिल पर टाइल का काम कर रहे थे, जब इमारत गिरी। हम उसी इमारत में रहते हैं खाना बनाना, शौचालय, सोना सब कुछ उसी इमारत में होता है ‘।

आगे वो बताते हैं, ‘ इस काम के अलावा हमारे पास बेंगलुरु में कुछ नहीं है। इमारत के गिरते ही मैं पांचवीं मंजिल से कूद गया। मेरे तीन साथी यहां मारे गए। मेरे भतीजे की मौत मेरी आंखों के सामने हुई। हम अब ऐसी इमारत में काम नहीं करेंगे। उन लोगों के परिवार मुझे क्या कहेंगे? मैं उन्हें कैसे समझाऊं? मुझे यही चिंता खाये जा रही’ ‘।

बिहार के ही एक और मज़दूर लक्ष्मण बताते हैं, ‘ मेरे माता-पिता गांव में रहते हैं, मैंने यहां जीविका कमाने के लिए सब कुछ छोड़ दिया। गांव में कभी-कभी खेत डूब जाता है, यहां उन्होंने इमारत ही गिरा दी ‘।

हाल के वर्षों में, उत्तर और पूर्वी भारत से प्रवासी मज़दूरों के अलावा तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों से भी मज़दूर बेंगलुरु आ रहे हैं, जो असंगठित क्षेत्र की कठोर नौकरियों में लगे हुए हैं।

कर्नाटक के यादगीर जिले की भी एक महिला मज़दूर इस हादसे में गंभीर रूप से घायल हुई है।

उत्तर कर्नाटक और हैदराबाद कर्नाटक के गरीब क्षेत्रों से आए प्रवासी, बिहार के प्रवासियों की तरह, सूखे और कर्ज के कारण अपने गांवों को छोड़ते हैं और बेंगलुरु में दिहाड़ी मजदूरी और अन्य अस्थिर कामों में लग जाते हैं।

गैर-कन्नड़ और कन्नड़ प्रवासी मज़दूरों के बीच मुख्य अंतर यह है कि बाद वाले शहर में रह सकते हैं, सामाजिक नेटवर्क बना सकते हैं, और अपनी भाषा क्षमता के कारण मज़दूर संघों में शामिल हो सकते हैं, जबकि पहले वाले भाषा और सांस्कृतिक बाधाओं के कारण ऐसे नेटवर्क से अक्सर बाहर हो जाते हैं और ठेकेदार या मिस्त्री पर निर्भर रहते हैं।

पूर्वी और उत्तर-पूर्वी बेंगलुरु में ईंट बनाने, कूड़ा बीनने और निर्माण क्षेत्रों में काम करने वाले मज़दूरों और अन्य प्रवासियों के साथ किए गए साक्षात्कार बताते हैं कि जो आर्थिक और सामाजिक रूप से सबसे हाशिए पर हैं जाति, वर्ग, भाषा और/या धार्मिक रूप से वे कर्ज, भूमिहीनता, अनिश्चित वर्षा (सूखा और बाढ़ दोनों), और बड़े पैमाने पर बेरोजगारी के बीच अपने गांवों को छोड़ देते हैं।

मोदी सरकार द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में बजटीय कटौती (और उसके आधार से जुड़े भुगतान प्रणाली में जोड़ दी गईं नई प्रशासनिक कठिनाइयों और देरी) के कारण ग्रामीण बेरोजगारी और बढ़ी है।

शहर में आने के बाद, प्रवासी मज़दूर अमानवीय परिस्थितियों में रहते हैं, बिना उचित आवास, शौचालय या अन्य सुविधाओं के, जिससे वे अत्यधिक मौसम के प्रति और भी अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।

बाबूसपल्या और अन्य साइटों पर, जहां बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासी कार्यरत हैं,मज़दूर या तो अस्थायी टेंट में या आंशिक रूप से निर्मित इमारत में ही रहते हैं।

शोषण और अपने जीवन की कीमत पर मजदूर

जलवायु परिवर्तन का असंगठित या आकस्मिक मजदूरों पर गंभीर असर पड़ता है, खासकर निर्माण, ईंट निर्माण, स्वच्छता, और ऐप डिलीवरी जैसे क्षेत्रों में।

दक्षिण एशिया में अनियमित और अप्रत्याशित मानसून जलवायु परिवर्तन का एक संकेत है। इसी प्रकार, अत्यधिक गर्मी भी एक समस्या है; दरअसल ये दोनों मौसम संबंधी चरम स्थितियां आपस में जुड़ी हुई हैं।

इस वर्ष अकेले भारत में 1,500 से अधिक लोगों की मौत विनाशकारी बाढ़ के कारण हुई, जो गर्मियों में आई हीटवेव के बाद आई।

जानकारी के मुताबिक बाबूसपल्या में ढही इमारत ‘अनाधिकृत’ थी। बिना अनुमति के तीन अतिरिक्त मंजिलों का निर्माण हो रहा था। इमारत में घटिया सामग्री का उपयोग किया गया था, जो मूसलधार बारिश के सामने इसे कमजोर बना रही थी।

22 अक्टूबर को बेंगलुरु में हुई बारिश पिछले 27 वर्षों में 24 घंटे की अवधि में सबसे भारी बारिश थी।

स्थिति और भी गंभीर हो गई क्योंकि यह इमारत खराब श्रेणी की जमीन पर बनाई गई थी, जो कि कर्नाटक भूमि राजस्व अधिनियम 1964 के तहत ‘अनकृषि योग्य’ या अपशिष्ट भूमि की श्रेणी में आती है। इसमें राजकालुवे, यानी तूफानी नालों और नदियों वाली भूमि भी शामिल होती है।

बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) द्वारा तीन नोटिस जारी करने के बावजूद, बिल्डर ने काम जारी रखा।

बेंगलुरु में भ्रष्टाचार के कारण बिना भारी बारिश के भी ऐसी निर्माणाधीन इमारतों का ढहना देखा गया है।

आमतौर पर, परियोजना का मालिक और प्रमोटर तीन मंजिला इमारत के लिए योजना स्वीकृत कराता है और फिर छह-सात मंजिल की इमारत बनाता है।

निर्माण पूरा होने के बाद, वह इसे लाभ के लिए तेजी से बेचता है और अगली परियोजना में लग जाता है।

स्थानीय निवासी आंध्र प्रदेश के डेवलपर्स को दोषी ठहराते हैं, जो अमीर और राजनीतिक रूप से जुड़े होते हैं और आसानी से जमीन खरीदकर निर्माण में निवेश कर सकते हैं।

वे रियल एस्टेट डेवलपर्स, राजनेताओं और अधिकारियों के बीच एक साठगांठ को पहचानते हैं, जो मज़दूर ठेकेदारों और उप-ठेकेदारों तक स्पष्ट रूप से फैलती है, जो कम वेतन पर प्रवासी मजदूरों को भर्ती करने के लिए बाद में शामिल होते हैं।

अब तक, आंध्र प्रदेश के मुनिराजू रेड्डी और उनके बेटे भुवन रेड्डी को बाबूसपल्या मामले में नियमों का उल्लंघन करने और अवैध निर्माण के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।

दुर्भाग्यवश, इसकी कीमत मजदूर अपने जीवन से चुकाते हैं। प्रवासी मजदूरों को कानूनी सुरक्षा नहीं मिलती है।

उन्हें सेफ्टी हेलमेट तक उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं और उन्हें न्यूनतम मजदूरी, बीमा या अन्य लाभ नहीं दिए जाते।

वे अक्सर ठेकेदारों द्वारा शोषण का शिकार होते हैं, जो मजदूरी रोकने और अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार के लिए कुख्यात होते हैं।

जवाबदेही और मजदूरों की सुरक्षा की मांग

यह स्पष्ट है कि कई स्तरों पर जवाबदेही की कमी है। इंजीनियरों द्वारा अवैध निर्माण का नियमित सर्वेक्षण जवाबदेही बढ़ा सकता है और रियल एस्टेट निर्माण पर अधिक नियंत्रण स्थापित कर सकता है।

बाबूसपल्या की घटना के लिए जिम्मेदार ठेकेदारों, इंजीनियरों और अधिकारियों की जांच भी समय की आवश्यकता है।

अंततः, श्रम विभाग को शहर में प्रवासी मजदूरों की स्थिति और उनके आवास की स्थितियों का व्यापक सर्वेक्षण करना चाहिए। मौजूदा नीतियों को मजबूत करने की आवश्यकता है।

नीतियों को मजबूत करने की आवश्यकता

इस त्रासदी के बाद ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (एआईसीसीटीयू) ने मनरेगा के तहत मामूली न्यूनतम वेतन को उजागर किया है, जो लोगों को पलायन करने के लिए मजबूर कर रहा है ।

इसके साथ ही यह भी मांग की है कि मजदूर मुआवजे की प्रक्रिया को तेजी से पूरा करने की मांग की है, जो 5 लाख रुपये से बढ़ाकर 10 लाख रुपये की जानी चाहिए, साथ ही मौजूदा प्रवासी मजदूर कानूनों को भी मजबूत किया जाना चाहिए।

अंतर-राज्य प्रवासी कामगार (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1979 उन कानूनों में से एक है, जिससे मज़दूरों को मदद मिल सकती है।

यह कानून व्यावसायिक सुरक्षा उपाय प्रदान करता है और ठेकेदारों के लिए अनिवार्य लाइसेंस की आवश्यकता बताता है।

निर्माण मज़दूर (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1996 एक और कानून है जो बताता है कि निर्माण मजदूर असंगठित क्षेत्र का सबसे असुरक्षित और अस्थायी रूप से जुड़े वर्गों में से एक है, जिसमें कार्य संबंध अस्थायी होते हैं, लंबे और अनिश्चित कार्य घंटों, बुनियादी सुविधाओं की कमी, मजदूरों पर आंकड़ों की कमी और अपर्याप्त कल्याण सुविधाएं होती हैं।

अधिनियम की धारा ३४ के अंतर्गत मज़दूर नियोक्ताओं से अस्थायी आवास, अलग-अलग खाना पकाने की जगह, स्नान, धुलाई और शौचालय सुविधाओं की मांग कर सकते हैं।

बिना मजबूत मजदूर सुरक्षा उपायों और रियल एस्टेट निर्माण के आसपास जवाबदेही को बढ़ाए बिना, बाबूसपल्या जैसी घटनाएं भविष्य में भी होती रहेंगी।

(द न्यूज़ मिनट की खबर से साभार )

 

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Abhinav Kumar

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