मनरेगा के तहत काम मांगने वालों की संख्या में 16 फीसदी गिरावट दर्ज
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2021-22 वित्तीय वर्ष की तुलना में 2022-23 के वित्तीय वर्ष में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना के तहत काम मांगने वाले परिवारों की संख्या में लगभग 16% की गिरावट आई है।
2021-22 में जहां 7.25 करोड़ परिवारों को काम मिला, वहीं चालू वित्त वर्ष में यह संख्या घटकर 61.1 करोड़ रह गई है।
मनरेगा वेबसाइट के आंकड़ों का हवाला देते हुए बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक FY23 में काम के दिनों की औसत संख्या एक साल में अनिवार्य 100 दिनों के काम के मुकाबले 47.13 दिन थी। यह आंकड़ा हाल के वर्षों में सबसे कम है। वहीं वित्त वर्ष 20 में पिछला निचला स्तर 48.4 दिन था।
महामारी के दौरान मनरेगा ही सैकड़ों गरीब मज़दूरों के रोज़गार का सहारा बना थी। उस समय मनरेगा के तहत काम मांगने वाले परिवारों की संख्या चरम पर थी। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2020-21 में यह संख्या 75.5 मिलियन और 2021-22 में 72.5 मिलियन थी।
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NMS का दावा
गौरतलब है कि मनरेगा में इस साल कुछ नए बदलाव किये हैं। जिसमें NMMS ऐप (डिजिटल उपस्थिति) और आधार आधिरित भुगतान प्रणाली (ABPS) को शामिल किया गया है। इसका विरोध करते हुए जमीनी स्तर पर मज़दूरों के लिए काम करने वाले नरेगा संघर्ष मोर्चा ने ग्रामीण विकास मंत्री को एक ज्ञापन सौंपा था।
इसमें नरेगा संघर्ष मोर्चा (NMS) ने मोबाइल फोन ऐप-आधारित उपस्थिति प्रणाली की भी आलोचना की थी। इसने कहा गया, इस बात के सबूत हैं कि कुछ मामलों में ऐप में तकनीकी खराबी के कारण श्रमिकों को अपने वेतन का 50% नुकसान झेलना पड़ा है। उन्होंने सरकार को यह भी बताया कि कई महिला कार्यस्थल पर्यवेक्षकों को ऐप का इस्तेमाल करने के लिए स्मार्टफोन खरीदने के लिए लोन भी लेना पड़ा है।
जंतर मंतर पर पिछले 37 दिनों से मनरेगा मज़दूरों का धरना चल रहा है। दरअसल, नरेगा संघर्ष मोर्चा के आवाह्न पर 100 दिवसीय धरने का आयोजन किया है। धरने में शामिल होने वाले मज़दूरों ने संगठन के साथ अपनी समस्याओं को साझा किया है। इसमें मज़दूरों ने सबसे ज्यादा NMMS ऐप और ABPS को लेकर परेशनियां बताई हैं। इन समस्याओं के आधार पर ही NMS ने शिकायत की है।
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