मैसूर डायरी: काजू के पकौड़े और जायका मैसूर का, कहानी दक्षिण भारतीय पकवानों की
By संजय श्रीवास्तव
पहला पड़ाव बेंगलुरु। फिर मैसूर और फिर कुर्ग । और अब एक दो दिनों में वापसी। उत्तर भारत के मुकाबले इन तीनों जगहों पर सुहाना मौसम। रोजाना की हल्की फुल्की बारिश।
उत्तर भारत की तरह कोई उमस और चिपचिपाहट नहीं। इस यात्रा में मैने कुछ ऐसी चीजों का स्वाद लिया, लगा जिसका जिक्र तो जरूर होना चाहिए।
एक तो कर्नाटक में ऐसे तमाम रेस्तरां हैं, जहां सुबह से लेकर शाम तक क्वालिटी वाले साउथ इंडियन खाने बहुत सस्ते मिल जाते हैं।
ये बात मैने बेंगुलुरु, मैसूर और कुर्ग तीनों जगहों पर देखी। अब भी यहां अच्छी क्वालिटी का इडली, डोसा और वड़ा 30-50 रुपए तक मिल जाता है।
100 रुपए से कम में चाय या काफी के साथ यहां भरपूर नाश्ता कर लीजिए। स्वाद अच्छा।
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काजू के पकौड़े
मैसूर में दो व्यंजन ऐसे मिले, जो अनूठे थे। पहला है काजू पकौड़ा। मैसूर में रेलवे स्टेशन के ठीक बगल में एक बड़ा रेस्तरां है। अडयार आनंद भवन। वैसे तो यहां बहुत कुछ खाने को मिल जाता है। लेकिन काजू पकौड़ा ज्यादा कौतुहल जगाने वाला था। क्रिस्पी, क्रंची और बेहतरीन स्वाद के साथ कई दिनों तक पैकेट में रखा जा सकने वाला।
साउथ में रेस्टोरेंट चेन चलाने वाले अडयार आनंद भवन का ये काफी पसंद किया जाने वाला स्नैक है। डिलिसियस इस कदर एक पकौड़े को मुंह में डाला तो फिर हाथ नहीं रुकने वाला।
काजू तो खैर इसमें अपना क्रिस्पी स्वाद देता ही है, जो बेसन इसके साथ इस्तेमाल होता है, वो भी कुरकरा होता है। इसे राजपलयम पकौड़ा भी कहा जाता है। मुख्य तौर पर इसमें काजू के साथ बारीक कटे हुए प्याज और पुदीने की पत्तियों के साथ मसालों का इस्तेमाल होता है।
आप चाहें तो इसमें पुदीने की पत्तियों की जगह कढ़ी पत्ता मिला सकते हैं। साथ में सारी चीजें मिलाकर इसे थोड़ा देर तक तलिए। मैसूर और आसपास का मौसम भी ऐसा होता है कि इस पकौड़े का कुरकरापन जिप लिफाफे में बंद होकर कई दिनों तक टिका रहता है।
तमिल में काजू को मुंदिरी परुप्पु कहते हैं तो तेलुगू में जिदीपप्पु या मुथामादी पप्पु भी कहते हैं। कहीं कहीं काजू को कोदांबी बी कहते हैं। तो ये गोदांबी पकौड़ा वाकई लजीज होता है।
मैं तो इसका स्वाद कई दिनों पहले खाने के बाद भी अब तक नहीं भूल पाया। वैसे इसको घरों में ट्राई किया जा सकता है।
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दक्षिण भारतीय मसाला वडा का चाइनीज डिश
दूसरा व्यंजन जो मैने मैसूर में ही चखा वो मैदूर वड़ा मंचुरियन था। यानि कहा जा सकता है दक्षिण भारतीय मसाला वडा का चाइनीज डिश मंचुरियन के साथ संगम।
जिस वडा की बात मैं कर रहा हूं ये उड़द की पिसी दाल वाला साफ्ट वडा नहीं है। बल्कि इसको दाल या मैदे के साथ मसालों और प्याज को मिलाकर क्रिस्पी होने तक तला जाता है। ये मैसूर की पुरानी दुकान मधुर टिफनी की स्पेशल डिश में था। महज 80 रुपए का।
इसकी खासियत ये है कि ये वडा को तोड़कर इसे खास मंचुरियन जैसे स्वाद ग्रेवी और मसालों के मिश्रण के साथ परोसा जाता है।
इस वडा की कहानी भी कोई कम रोचक नहीं है। रेस्टोरेंट में यहां के खास वडा की 100 साल के इतिहास के बारे में बखाना गया था। कर्नाटक में बेंगलुरु से मैसूर जाते समय ट्रेन से एक स्टेशन पड़ता है मेद्दूर।
चूंकि इस खास वडे का जन्म यहीं हुआ, लिहाजा इसका मेद्दूर वडा पड़ गया। मौजूदा रेस्टोरेंट के मालिक के पिता के पिता मादवाचर 1902 में मेद्दूर स्टेशन पर ट्रेन यात्रियों के लिए वडा बेचते थे। एक दिन ट्रेन जल्दी आई। वडा तैयार नहीं था। अब क्या किया जाए। तेजी से साथ वडा का मिक्सर गूंथा गया और इसे तला गया। ये तो कुछ और ही बन गया था।
सामान्य वडा तो फूला हुआ बनता है, ये भुरभुरा और साफ्ट की बजाए कड़ा और क्रिस्पी था। यात्रियों को ये नई चीज पसंद आई। उन्होंने जब इस नई डिश के बारे में पूछा तो मादवाचर का जवाब था ये खास मेद्दूर वडा था। इसके बाद तो ये हिट आइटम हो गया। अब इसमें क्या क्या मिलाया जाता है और ये कैसे बनता है ये भी जान लीजिए।
एक कप मैदा, आधा कप सूजी, आधा कप चावल का आटा, बहुत पतला कटा हुआ एक प्याज, एक बारीक कटी मिर्ची, कटी हुई कढ़ी पत्तियां, दो चम्मच धनिया पाउडर, जरूरत के लिहाज से गूंथने लायक पानी।
इसे कड़ा होने तक गूंथे। फिर 10 मिनट के लिए रख दें। इसकी वजह ये है कि इतनी देर में प्याज कुछ पानी छोड़ेगा और आपका ये मिश्रण कुछ मुलायम हो जाएगा। अब गूंथे हुए मिश्रण से छोटे छोटे गोले बनाकर उसे दबाकर फ्लैट कर दें। अब तेल को गर्म करें। इस वडे को सुनहरे रंग का होने तक डीप फ्राई होने दें। आंच मध्यम रखें।
ये आपका वडा तो तैयार हो गया। अब मंचुरियन ग्रेवी अलग से बना लें। मेद्दूर वडा को प्लेट में तोड़ें। इसमें ऊपर से मंचुरियन ग्रेवी फैला दें। चाहें तो इसमें ऊपर से काजू और हरी धनिया की गार्निश कर सकते हैं।
ये दोनों डिश बहुत आसान हैं और खाने में खासी लज्जतदार भी। वैसे आपको ये बता दूं कि कुर्ग के खाने तीखे मसालों, काली मिर्च और मिर्च के साथ बने होते हैं।
वहां कुर्गी चिकन और कुर्गी मिक्स वेज का स्वाद तो लाजवाब तो होता ही है। साथ में चावल की रोटियों और खास तरीके से बनाई गई राइस बॉल भी आपके जीभ को तृप्त भी करेंगी और स्पायसी डिश खाते हुए आपकी नाक और आंखों से पानी भी आ सकता है। कहा जाता है कि कुर्ग में अगर मुर्ग नहीं खाया तो क्या खाया।
(संजय श्रीवास्तव वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं। उन्होंने शोधपूर्ण किताब लिखी है- ‘सुभाष चंद्र बोस- एक अज्ञात यात्रा’ जो काफ़ी चर्चित रही है। वो शौकिया तौर पर कैरिकेचर भी बनाते रहे हैं और उनके फ़ेसबुक वॉल पर उनके अद्भुत कैरिचेर देखने को मिल जाएंगे। घूमने के शौकीन हैं और उनके यात्रा वृतांत बहुत रोचक और दिलचस्प होते हैं।)
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