नरेला अग्निकांड: पुलिस बता रही दो मज़दूर मरे, यूनियन का दावा 8 मरे, आंकड़े छुपाने का आरोप
भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित फ़ैक्ट्रियां मौत का कारखाना बन चुकी हैं। मुंडका अग्निकांड के बाद नरेला में मंगलवार को एक फैक्ट्री में भीषण विस्फोट के बाद लगी आग की चपेट में आकर दो मजदूर मौके पर मारे गए जबकि करीब एक दर्जन पूरी तरह झुलस गए हैं।
मंगलवार सुबह 9.30 बजे जूता फैक्ट्री में भीषण आग गयी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दो मज़दूरों की मौत हुई है, जबकि 20 अन्य मज़दूर गंभीर रूप से घायल हैं।
हालांकि घटनास्थल पर उसी दिन शाम को पहुंची सीटू की फैक्ट फाइंडिंग टीम का आरोप है कि इस घटना में कम से कम 8 मजदूरों की मौत हो चुकी है और 10 मजदूर गंभीर रूप से झुलस गए हैं, और उनके बचने की संभावना बहुत कम है।
सीटू के दिल्ली यूनिट के सचिव सिद्धेश्वर शुक्ल का आरोप है कि मृतकों की संख्या को छुपाने की पूरी कोशिश की जा रही है और साक्ष्य को मिटाने की कोशिश हो रही है। अभी तक न तो केजरीवाल सरकार की ओर से न ही केंद्र सरकार की ओर से कोई बयान आया है।
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10 मजदूरों की जान ख़तरे में
CITU दिल्ली राज्य सचिव मंडल के सदस्य सिद्धेश्वर शुक्ल ने वर्कर यूनिटी को बताया कि CITU फैक्ट फाइंडिंग टीम का अनुमान है कि इस भयानक अग्निकांड में कम से कम 8 मज़दूरों की मौत हो चुकी है, जबकि अन्य 20 घायल मज़दूरों में से 10 मज़दूर मरणासन्न स्थिति में अस्पताल में भर्ती हैं।
उनका कहना है कि मंगलवार को नरेला में जूता बनाने वाली तीन मज़िला इमारत के दूसरे माले में सुबह करीब 9: 30 मिनट पर कम्प्रेसर फटने से भीषण ब्लास्ट हो गया था। जिसमें दो मज़दूरों की तत्काल मौत हो गई थी। और बाकि अन्य घायलों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया था।
सिद्धेश्वर ने बताया कि फैक्ट्री में कुल 150 मज़दूर काम करते हैं। घटना से समय दूसरी मंजिल पर 50 मज़दूर काम कर रहे थे।
सीटू के प्रतिनिधिमंडल को हरिश्चंद अस्पताल के CMO ने बताया कि सभी मज़दूर काफी गंभीर रूप से घायल हैं जिसमें से 10 मज़दूरों बुरी तरह से झुलस चुके हैं, जिनके बचे की संभावना बहुत कम है। इन गंभीर रूप से घायल मज़दूरों को तत्काल ही अन्य अस्पतालों में रेफर कर दिया गया है।
सिद्धेश्वर का आरोप है कि फैक्ट्री में मशीनों के रखरखवा में कमी है, जिसके कारण यह ब्लास्ट हुआ। उन्होंने बताया कि अभी कुछ दिनों पहले भी इसी फैक्ट्री में ऐसे ही हादसा होते होते बचा था।
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साक्ष्य मिटाने की कोशिश?
सिदेश्वर ने बताया कि मंगलवार की रात दो बजे मज़दूरों की स्थिति का पता लगाने गए सत्यप्रकाश पांडेय को पुलिस ने घटना स्थल पर जाने नहीं दिया और हिरासत में ले लिया। उन्हें सुबह 6 बजे छोड़ा गया। पुलिस और प्रशासन मिल कर मामले को दबने की कोशिश कर रहा है।
उन्होंने कहा कि रात दो बजे पता चला कि पुलिस की मदद से घटना स्थल की साफ सफाई की जा रही थी और इसी का पता लगाने के लिए सत्यप्रकाश गए थे।
उनका कहना है कि सरकारी आकंड़ों के अनुसार, अभी तक 2 मज़दूरों की ही मौत हुई है। लेकिन असल में 8 मज़दूरों की मौत हो चुकी है बाकी 42 मज़दूरों में 10 मज़दूर गंभीर रूप से घायल हैं।
उनका कहना है कि मज़दूरों की खराब स्थिति को देखते मौत का आंकड़ा और बढ़ने की आशंका है।
सिद्धेश्वर ने बताया कि नरेला में लगी आग को 24 घंटों के भी ज्यादा का समय बीत चुका है लेकिन अभी तक सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है और न ही किसी तरह के मुआवजे की घोषणा की गयी है।
दिल्ली में लगातार मज़दूरों के मौत के हादसे बढ़ते जा रहे हैं। उनका आरोप है कि कार्यस्थल और फैक्ट्रियों में मज़दूरों के लिए जो सुरक्षा इंतज़ाम हैं उनमें गंभीर कमी है पूरी दिल्ली है। सरकार द्वारा जब फैक्ट्री के मालिकों को लाइसेंस दिए जाते हैं तो इस बात की सभी से जाँच नहीं की जाती है फैक्ट्री का कितना क्षेत्रफल है और उनमें कइने मज़दूरों से काम करवाया जायेगा। उनका आरोप है यह दिल्ली सरकार लापरवाहियों का नतीजा है जो लगातार हादसे बढ़ रहे हैं।
दिल्ली CITU के एक अन्य मजदूर नेता अनुराग सक्सेना का कहना है कि देश की राजधानी में 95 फीसदी मज़दूरों को घोषित न्यूनतम वेतन तक नहीं मिल रहा है। मनीष सिसोदिया के अधीन श्रम मंत्रालय सही तरीके से काम नहीं कर रहा है। किसी भी स्तर के उल्लंघन के लिए कोई जिम्मेदारी, कोई जवाबदेही नहीं।
उनका कहना है कि दिल्ली में लगातार फैक्ट्री हादसों में मज़दूरों की मौत एक बड़ी चिंता का विषय है। इस संबंध में केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने बैठक की है और नवंबर में ही इन सभी मुद्दों को कवर करते हुए दिल्ली में गंभीर अभियान चलाने का फैसला किया।
अनुराग ने बताया की आगामी 22 नवम्बर 2022 को जिला स्तरीय श्रम विभाग के कार्यालयों के पूर्ण बहिष्कार का आह्वान किया जाएगा है। इसमें स्वतंत्र यूनियनों और समान विचारधारा वाले अन्य संगठनों को भी शामिल किया जायेगा।
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दिल्ली बनी मजदूरों के लिए शमशान
गौरतलब है कि दिल्ली में फैक्ट्रियों में आग लगाने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। बीते 14 मई को दिल्ली के मुंडका में एक फैक्ट्री में भीषण आगा लगाने का मामला सामने आया था जिसमें 27 मज़दूरों की मौत हो गयी थी।
इस हादसे में मरने वाले कई मज़दूर ऐसे हैं जिनकी अभी तक पहचान भी नहीं की सकी है। मृत मज़दूरों के परिवारवाले लगातार मुआवजे की मांग कर रहे है लेकिन आप की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं नजर आरही है।
मुंडका अग्नि कांड की तरह इस बार भी फैक्ट्री में मज़दूरों की सुरक्षा के कोई इंतज़ाम नहीं थे। और न ही मशीनों की नियमित जाँच होती थी। श्रम विभाग समय समय पर फैक्ट्रियों की जाँच नहीं करता है। जिसके कारण निर्दोष मज़दूरों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है।
नए लेबर कोड के आने के बाद ये स्थिति और ज्यादा डरावनी होने लगी है। मोदी सरकार द्वारा लाये जाने वाले नए लेबर कोड में कहा गया है कि बिना कंपनी मालिक की अनुमति के फैक्ट्री और वर्कप्लेस की जाँच नहीं की जा सकती है। इसलिए देशभर में नए लेबर कोड का ट्रेड यूनियनों द्वारा तीखा विरोध किया जा रहा है।
(स्टोरीः शशिकला सिंह।)
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सरकारी आंकड़ों की माने तो अब तक घटना में 3 की जान गई है.