अब मोदी सरकार को किन मुद्दों पर घेरेगी AITUC? अलप्पुझा में 5 दिवसीय सम्मेलन होगा आयोजित
केरल के अलप्पुझा में आगामी 16 से 20 दिसंबर को अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस AITUC के 42वें राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जायेगा। AITUC का कहना है कि इस पांच दिवसीय सम्मलेन में मोदी सरकार की मज़दूर और किसान विरोधी नीतियों पर चर्चा की जाएगी।
संगठन ने सोमवार को अलप्पुझा में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसकी जानकारी दी।
प्रेस कॉन्फ्रेंस को सम्बोधित करते हुए AITUC की महासचिव अमरजीत कौर ने कहा कि देश की बदहाली को बचाने के उपाय करने के बजाय, सरकार निजीकरण/विनिवेश और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की बिक्री, बुनियादी ढांचे सहित राष्ट्रीय संपत्ति, राष्ट्रीय हितों प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचाने पर चल रही है।
उनका आरोप है कि मोदी सरकार द्वारा दिन-प्रतिदिन लिए गए नीतिगत फैसले भारतीय और विदेशी ब्रांड कॉरपोरेट्स को आम आदमी की कीमत पर भारी मुनाफा कमाने में मदद कर रहे हैं।
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इतना ही नहीं उनका कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से भारी मात्रा में ऋणों में कॉर्पोरेट लूट को सरकारी रिकॉर्ड में पिछले छह वर्षों में दस लाख करोड़ से अधिक के एनपीए के रूप में लिखा जा रहा है और दिवाला कानून के माध्यम से लूट आगे बढ़ती जा रही है।
उन्होंने बताया कि एटक ट्रेड यूनियनों का एक अग्रणी संगठन है जिसकी स्थापना 1920 में हुई थी और मेहनतकश जनता के हितों में संघर्ष के अपने इतिहास के 103वें वर्ष में प्रवेश कर गया है। अल्लापुझा में 16 से 20 दिसंबर 2022 तक अपना 42वां राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर रहा है।
वह आगे बताती हैं कि ,AITUC द्वारा आयोजित इस सम्मलेन में मजदूर वर्ग के संघर्ष को तेज करने के लिए, मजदूरों और किसान आंदोलनों के बीच एकता को मजबूत करने के लिए, समाज के अन्य वर्गों के साथ मिलकर काम करने और मोदी सरकार को चुनौती देने के लिए मिलकर काम काम करने के मुद्दों पर चर्चा की जाएगी।
मिली जानकारी के मुताबिक, संगठन के सदस्यों का कहना है कि ट्रेड यूनियन ऐसी नीतियों के स्वाभाविक विरोधी हैं और सरकार के साथ एक संगठित लड़ाई छेड़ते रहे हैं। ट्रेड यूनियनों को पंगु बनाने और नियंत्रित करने के उद्देश्य से श्रम कानूनों में बदलाव किए जा रहे हैं और 27 श्रम कानूनों को चार संहिताओं में बदला जा रहा है। मजदूरों के हकों के लिए 150 साल के मजदूर आंदोलन का संघर्ष इस मजदूर विरोधी, किसान विरोधी मोदी सरकार के निशाने पर है।
AITUC का मानना है कि मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा-आरएसएस सरकार नफरत फैलाने वालों को आश्रय देती है। उनका आरोप है कि समाज में ध्रुवीकरण लोगों के शांतिपूर्ण जीवन को परेशान करता है। सत्ता में बैठे कई मंत्री, सांसद, विधायक या सत्ता पक्ष के बड़े नेता लगातार ऐसे बयान देते हैं जिससे माहौल खराब होता है। सरकारी तंत्र और उसकी विभिन्न एजेंसियों का दुरुपयोग करके प्रदर्शनकारियों को घेरा जा रहा है। भारतीय संविधान, उसके मूल मूल्यों और संघीय ढांचे पर हमला हो रहा है। राज्यपाल जैसी संस्था का भी दुरुपयोग हो रहा है।
संगठन द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति ने लिखा है कि इस सम्मेलन में संगठित/औपचारिक और असंगठित/ अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों और अधिकांश राज्यों के यूनियनों के प्रतिनिधि भाग लेंगे। वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियंस (डब्ल्यू एफ टी यू) के महासचिव और विदेशों से कुछ यूनियनों के भ्रातृ प्रतिनिधि भी इस अवसर पर भाग लेंगे।
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आगे लिखा है कि 17 दिसंबर की सुबह केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के नेता भी खुले समारोह में शामिल होंगे। इससे पहले 16 दिसंबर की शाम को जत्थे का स्वागत व ध्वजारोहण किया जाएगा।
इतना ही नहीं आने वाले समय के लिए एक कार्य योजना तैयार करने के लिए 30 जनवरी को दिल्ली में श्रमिकों का एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने की योजना है।
संगठन का कहना है कि यह ऐतिहासिक सम्मेलन देश और दुनिया में लगातार बढ़ते आर्थिक संकट की पृष्ठभूमि में हो रहा है। अभूतपूर्व बेरोजगारी, आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं महंगी हो रही हैं, जीवन स्तर में बढ़ती असमानता ने लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। बढ़ती गरीबी और बाल श्रम के मामलों में पुनरुत्थान, भुखमरी सूचकांक में गिरावट और बढ़ता लिंग अंतर इसे और अधिक तीव्र बना देता है।
गौरतलब है कि केंद्रीय ट्रेड यूनियन पिछले कई वर्षों से एक साझा मंच के तहत मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियानों और हड़तालों का आह्वान करता रहता है।
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