ओडिशा पुलिस द्वारा सालिया साही के आदिवासी झुग्गीवासियों पर दमन के खिलाफ प्रदर्शन पर पुलिस ने किया लाठीचार्ज
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में बीते 22 नवंबर को शहर में स्थित झुग्गियों को सरकारी आदेश पर गिरा दिया गया था. जिसके बाद सालिया साही स्लम के लगभग 20,000 झुग्गीवासियों ने सालिया साही स्लम में अपने भूमि अधिकारों के संबंध में विभिन्न मांगों को उठाते हुए राज्य विधान सभा तक मार्च किया.
इस मार्च में ओडिशा के विभिन्न स्लम आंदोलन कार्यकर्ता भी शामिल थे. झुग्गीवासियों के विरोध मार्च को ओडिशा पुलिस के द्वारा बेरहमी से कुचल दिया गया .
पुलिस ने हजारों प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया. जिनमें सलिया साही आंचलिक समिति के अध्यक्ष जयदेव नायक, सीपीआई (एमएल) रेड स्टार की ओडिशा राज्य सचिव प्रमिला और बस्ती सुरक्षा मंच के कई अन्य कार्यकर्ता भी शामिल थे.
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने वन अधिकार अधिनियम, 2006 के कार्यान्वयन की मांग उठाई, जो कहता है कि “आदिवासियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों को भूमि, आजीविका, निवास और अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक जरूरतों का अधिकार दिया जाना चाहिए”.
कार्यकर्ताओं ने बताया की “सलिया साही झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले 75% निवासी आदिवासी हैं और वे उक्त अधिनियम के “पारंपरिक वन निवासियों” के दायरे में आते हैं. साथ ही,सड़क निर्माण और विकास के नाम पर अपने कॉर्पोरेट समर्थक एजेंडे को लागू करने के लिए उनकी जमीनों का अतिक्रमण करने की बीजद सरकार कर रही हैं”.
मालूम हो की इससे पहले बीजद सरकार ने झुग्गी-झोपड़ी आंदोलन के दबाव में, भुवनेश्वर के कई झुग्गीवासियों को भूमि अधिकार प्रदान किए हैं. लेकिन फिर भी सलिया साही को उससे बाहर रखा गया. इसीलिए भूमि अधिकार के अभाव में कई वर्षों से झेल रहे असहनीय उत्पीड़न के परिणामस्वरूप सलिया साही झुग्गीवासी सड़कों पर आ गए.
ओडिशा और शेष भारत में, भूमि संघर्ष आदिवासियों के लिए एक प्रमुख कारक बन गया है. मणिपुर में संघर्ष गैर-पहाड़ी-निवास जनजातियों को निवासियों के साथ इस भूमि को खरीदने का अधिकार देने के निर्णय पारित होने के बाद शुरू हुआ.
कुछ स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया की ” सरकार ने नियमगिरि सुरक्षा समिति के कार्यकर्ताओं के खिलाफ भी अलोकतांत्रिक दमन किया है. जिसमें 9 कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और अपहरण कर लिया और यूएपीए लगाया”.
ख़बरें बता रही हैं की माली पर्वत में, स्थानीय माली की रक्षा के लिए इसी तरह का भूमि संघर्ष चल रहा है क्योंकि आदिवासी अपनी जमीन हड़पने की कोशिश कर रहे बड़े निगमों की सेवा में राज्य के दमन का विरोध कर रहे हैं. ओडिशा के सिजिमाली में सिजिमाली बॉक्साइट ब्लॉक और वेदांता लिमिटेड के लिए जनसुनवाई के दौरान लोगों ने जबरदस्त प्रतिक्रिया दी.
इसके आलावा ओडिशा के बाहर, कैमूर, बिहार में कैमूर मुक्ति मोर्चा के आदिवासियों को लगातार गैरकानूनी गिरफ्तारियों और हिरासत का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वे अपनी जमीनों को हड़पने और बाघ अभयारण्य और पर्यटक आकर्षण में बदलने से बचाना चाहते हैं.
देश भर में हो रहे ऐसे विरोध प्रदर्शनों पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञों ने बताया की “दमकोंडावाही, गढ़चिरौली इन सभी जगहों पर लगातार स्थानीय निवासी अपनी ज़मीनों को बचने की लड़ाई लड़ रहे हैं. दमकोंडावाही बचाओ संघर्ष समिति के प्रमुख कार्यकर्ताओं पर छह खनन पट्टों के खिलाफ उनके 250 से अधिक दिनों के विरोध को कमजोर करने के लिए इस सप्ताह पुलिस द्वारा गिरफ्तारियां शुरू की गई. मणिपुर और बिहार से लेकर झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ तक, लोग अपनी जमीनों को क्रूर बल और राज्य दमन के माध्यम से हड़पने से बचाने के लिए कॉर्पोरेट-राज्य गठजोड़ के खिलाफ कड़े संघर्ष में लगे हुए हैं.सालिया साही आंदोलन को भी ऐसे ही सरकारी दमन का सामना करना पड़ रहा है.”
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