देश में हर घंटे एक किसान-खेतिहार मज़दूर करता है आत्महत्या – एनसीआरबी रिपोर्ट

देश में हर घंटे एक किसान-खेतिहार मज़दूर करता है आत्महत्या – एनसीआरबी रिपोर्ट

बीते सोमवार को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने अपना एक आंकड़ा पेश किया है.

NCRB भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाली एक संस्था है, जिसकी स्थापना 1986 में हुई थी. ये संस्था देश भर में विभिन्न प्रकार के अपराधों से जुड़ी जानकारी को जमा करती है और फिर उस डाटा का एनालिसिस करती है ताकि उन अपराधों के निवारण में मदद मिल सके.

सोमवार को पेश आंकड़ों से पता चलता है कि देश भर में किसानों और कृषि मज़दूरों में बीते साल में आत्महत्या करने जैसी घटना तेजी से बढ़ी है.

आंकड़े बता रहे कि भारत में 2022 में कृषि क्षेत्र में 11,290 आत्महत्याएं हुई, जिनमें इन पीड़ितों में से 5,207 किसान थे जबकि 6,083 खेतिहर मजदूर थे.

इससे पहले के आकड़ें भी बता रहे थे कि 2018 और 2022 के बीच देश भर में कृषि कार्यो से जुड़े लोगों में आत्महत्या कि प्रवृति में तेजी देखी गई थी.

कोविड-20 महामारी के बाद के दो वर्षों में, खेतिहर मजदूरों की आत्महत्याओं की संख्या किसानों की तुलना में कहीं अधिक है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के निष्कर्ष

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रिपोर्ट से पता चला है कि 2022 में भारत में कृषि क्षेत्र में 11,290 आत्महत्याएं हुईं. जो 2021 में रिपोर्ट की गई 10,881 आत्महत्याओं से 3.75 प्रतिशत अधिक है.

2022 में इन पीड़ितों में से 5,207 किसान थे और 6,083 खेतिहर मजदूर थे. वही 2021 में आत्महत्या का रास्ता चुनने वाले लोगों में 5,318 किसान और 5,563 खेत मजदूर थे.

एक खास बात जो पिछले 2 -3 सालों में नज़र आ रही है ,वो ये है कि किसान आत्महत्याओं से अधिक खेतिहर मजदूरों की आत्महत्याओं का चलन 2020 के बाद ही शुरू हुआ है.

2020 में 10,677 कृषि आत्महत्याओं में से 5,579 किसान थे, और 5,098 खेतिहर मजदूर थे.

किसको किसान और किसको खेतिहार मज़दूर मानता है एनसीआरबी

एनसीआरबी कि माने तो एक ‘किसान’ वह है जिसका पेशा खेती है और इसमें वे लोग शामिल हैं जो अपनी जमीन पर खेती करते हैं और साथ ही वे लोग जो पट्टे पर ली गई जमीन/दूसरे की जमीन पर कृषि मजदूरों की सहायता से या उसके बिना खेती करते हैं.

वही ‘कृषि मजदूर’ वह व्यक्ति है जो मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र (कृषि/बागवानी) में काम करता है और जिसकी आय का मुख्य स्रोत कृषि श्रम गतिविधियाँ हैं.

हालाँकि इस परिभाषा को भी एनसीआरबी कामचलाऊ तौर पर ही इस्तेमाल करती है.

एनसीआरबी 1 हेक्टेयर (2.5 एकड़) तक भूमि रखने वाले किसानों को सीमांत किसान मानता है, जबकि छोटे किसानों को परिभाषित करते हुए कहता है कि जिनके पास 1-2 हेक्टेयर तक भूमि होती हो.

भारत की 2015-16 की कृषि जनगणना से पता चला कि 68.5 प्रतिशत जमीन सीमांत किसानों के पास थी, जबकि 17.6 प्रतिशत जमीन छोटी जोत वालों के पास थी. शेष को मध्यम और बड़े किसानों के बीच विभाजित किया गया था.

कई विशेषज्ञों का मानना है कि छोटे जोत वाले के लिए सिर्फ अपनी जमीन पर खेती कर घर चला पाना मुश्किल है ,ऐसे में वो बड़ी जोत वाले के यहाँ मज़दूरी भी करते हैं, और कोविड के बाद तो हालात पहले से भी बदतर हुए हैं.

कुल दर्ज आत्महत्याओं में 7-8 प्रतिशत कृषि कार्यों से जुड़े लोगों के हैं

इसके साथ ही वो बताते हैं कि वो मज़दूर जो शहरों में अकुशल मज़दूर के तौर पर काम कर रहे थे,कोविड के दौरान हुए रिवर्स माइग्रेशन में गांवों लौटे और यहीं रुक खेतिहार मज़दूर बन काम करने लगे.

लेकिन यहाँ रोजगार कि असुरक्षा ने उनके जीवन को ही असुरक्षित बना दिया है.

खेती में बढ़ती लागत और घटते फायदे के कारण किसानों के साथ-साथ खेतिहार मज़दूरों का जीवन पूरी तरह से अस्थिर हो चूका है.

देश में दर्ज की गई कुल आत्महत्याओं में से लगभग 7-8 प्रतिशत किसान आत्महत्याएँ हैं.

देश में कुल किसान आत्महत्याओं में से लगभग 37-38 प्रतिशत आत्महत्याएं महाराष्ट्र में हुई हैं. राज्य में सबसे ज्यादा आत्महत्याएं विदर्भ और मराठवाड़ा जिले में होती हैं.

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Abhinav Kumar

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