मनरेगा का एक तिहाई बजट कम किया, क्या बोले लोग
महामारी के दौरान प्रवासी और ग्रामीण मज़दूरों के लिए जीवनयापन का सहारा बनी महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) को मोदी सरकर ने अपने बजटीय आवंटन में पिछले वित्त वर्ष 2022-23 की तुलना में 33 फीसदी कम कर दिया है।
दरअसल 1 फरवरी, 2023 को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आम बजट पेश किया। जिसमें उन्होंने बजट का विवरण देते हुए सदन को इस बात की जानकारी दी कि बजट 2023 में मनरेगा को 61,032.65 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
जबकि पिछले साल के बजट में मनरेगा को 89,154.65 करोड़ रुपए आवंटित किये गए थे।
इकनोमिक टाइम्स से मिली जानकारी के मुताबिक, मोदी सरकार के कार्यकाल में यह लगातार तीसरा साल है, जब मनरेगा के बजट में कटौती की गई है। इससे पहले वित्त वर्ष 2022-23 में 25.5 फीसदी और 2021-22 में 34 फीसदी कटौती की गई थी।
As promised by @PMOIndia the beleagured #MGNREGS is being converted into "a monument to failure". A savage cut in #Budget2023 . Undermining all the legal guarantees of providing "work on demand", & "wage payments within 15 days". 14 crore workers will struggle & suffer & remember pic.twitter.com/WyC1IXI8qu
— Nikhil Dey (@nikhilmkss) February 2, 2023
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मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) के संस्थापक सदस्य निखिल डे ने सरकार के इस फैसले पर ट्विटर पर अपनी प्रतिकिया व्यक्त की है। उन्होंने ट्वीट किया है कि #MGNREGS को “विफलता के स्मारक” में बदला जा रहा है। #Budget2023 में जबरदस्त कटौती। “मांग पर काम”, और “15 दिनों के भीतर मजदूरी भुगतान” प्रदान करने की सभी कानूनी गारंटी को कम करके आंका। 14 करोड़ कार्यकर्ता संघर्ष करेंगे और पीड़ित होंगे और याद रखेंगे।
इसके अलावा निखिल ने एक मीडिया संस्थान को बताया कि मनरेगा के तहत वित्त वर्ष 2022-23 में जनवरी तक करीब 16000 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं किया गया है। उनका मानना है कि वित्त वर्ष के खत्म होने यानी मार्च तक 25 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है।
31 जनवरी, 2023 को पेश आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि मनरेगा के तहत 6 जनवरी, 2023 तक कुल 225.8 करोड़ रुपए का काम दिया गया है। ये 2018-19 में 267.9 करोड़ के मुकाबले काफी कम है।
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गौरतलब है कि मोदी सरकार लगातार मनरेगा के बजट में कटौती करती जा रही है। वहीं अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा नरेगा और सहयोगात्मक अनुसंधान और प्रसार (सीओआरडी) पर नागरिक समाज संगठनों के राष्ट्रीय संघ ने एक अध्ययन में कहा है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), 2005 के तहत काम पाने वाले सभी जॉब कार्ड धारकों में से लगभग 39 प्रतिशत को 2020-2021 में COVID-19 महामारी के कारण लगाए गए राष्ट्रीय तालाबंदी के दौरान एक भी दिन का काम नहीं मिला।
इतना ही नहीं जिन मज़दूरों को काम मिलता भी है उनको समय से पूरे वेतन का भुगतान नहीं किया जाता है। वर्कर्स यूनिटी ने अपनी ने ग्राउंड रिपोर्ट में पाया था कि मनरेगा में काम करने वाली महिला मज़दूरों को पुरुषों की तुलना ने कम वेतन दिया जाता है। ये बेहद चिंतनीय बात है।
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