बकाया बोनस और निजीकरण के खिलाफ बंदरगाह कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर, सरकार की चुप्पी से नाराजगी
विशाखापत्तनम बंदरगाह के कर्मचारी 28 अगस्त से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू करने जा रहे हैं, जो देशभर के बंदरगाह कर्मचारियों द्वारा बोनस बकाया भुगतान, निजीकरण के प्रस्तावों को वापस लेने और रिक्त पदों को भरने जैसी मांगों को लेकर आयोजित की जा रही है।
दक्षिणी राज्य तमिलनाडु के बंदरगाह शहर थूथुकुडी में इस महीने हुई बैठक के बाद कर्मचारी समूह ने हड़ताल का आह्वान करने पर सहमति जताई।
यह हड़ताल राष्ट्रीय समन्वय समिति के आह्वान पर हो रही है, जिसमें बंदरगाह संघों के सदस्य शामिल हैं।
हड़ताल की मुख्य मांगें
हड़ताल की मुख्य मांगों में से एक बोनस का बकाया भुगतान है, जो लंबे समय से लंबित है।
इसके अलावा, बंदरगाह संपत्तियों और जमीनों के मुद्रीकरण के प्रस्तावों को वापस लेने की भी मांग की जा रही है।
कर्मचारियों का कहना है कि इन प्रस्तावों से बंदरगाहों की राष्ट्रीय संपत्ति को निजीकरण के माध्यम से बेचा जा रहा है, जिससे उनके रोजगार और भविष्य की सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है।
कर्मचारी रिक्त पदों को भरने की भी मांग कर रहे हैं, जिससे बंदरगाहों के सुचारू संचालन में सुधार हो सके और कर्मचारियों की अतिरिक्त कार्यभार को कम किया जा सके।
वेतन समझौता और केंद्र सरकार पर आरोप
कर्मचारियों का आरोप है कि 1 जनवरी, 2022 को गठित वेतन समझौता समिति अब तक आठ बैठकें कर चुकी है, लेकिन 32 महीने बीत जाने के बाद भी समझौते पर सहमति नहीं बन पाई है।
उन्होंने केंद्र सरकार पर ‘अन्यायपूर्ण’ शर्तें लगाने का आरोप लगाया, जो वेतन समझौते को अंजाम तक नहीं पहुंचने दे रही हैं।
केंद्र की भाजपा नीत सरकार पर मजदूर विरोधी और जन विरोधी नीतियों को पुनर्जीवित करने का आरोप भी लगाया गया है।
कर्मचारियों का कहना है कि बंदरगाहों की संपत्ति और जमीनों को बेचा जा रहा है, जिससे यह बंदरगाह जमींदार बंदरगाहों में बदलते जा रहे हैं।
बंदरगाह अस्पताल की जमीन बेचने का आरोप
विशाखापत्तनम में बंदरगाह अस्पताल की जमीन भी बिक्री के लिए रखी जा रही है, जिसे लेकर कर्मचारियों में भारी नाराजगी है।
वे आरोप लगाते हैं कि केंद्र सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर धोखा दे रही है और निजी निवेशकों को बंदरगाह अस्पताल में प्रवेश देकर स्वास्थ्य सेवाओं को निजीकरण की ओर धकेला जा रहा है।
हड़ताल का वैश्विक प्रभाव
भारत के बंदरगाह कर्मचारियों की इस हड़ताल का प्रभाव केवल देश तक सीमित नहीं रहेगा।
एशिया और यूरोप के बंदरगाहों पर पहले से ही भीड़भाड़ की समस्या है, और इस हड़ताल से शिपमेंट में और देरी हो सकती है। इसके चलते व्यापार और वाणिज्य पर वैश्विक स्तर पर असर पड़ने की संभावना है।
विशाखापत्तनम बंदरगाह के कर्मचारियों ने बताया ‘ यह हड़ताल केवल उनके अधिकारों और मांगों के लिए संघर्ष नहीं है बल्कि निजीकरण के रथ पर सवार मोदी सरकार से हिसाब लेने का आह्वान है। हमारी यह हड़ताल देश के आर्थिक और सामाजिक ढांचे पर भी एक महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगी ‘।
शिपिंग मंत्रालय, जो कि इस मामले में प्रमुख सरकारी निकाय है, ने अभी तक इस हड़ताल पर कोई विस्तृत प्रतिक्रिया नहीं दी है।
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार और बंदरगाह प्रबंधन इन मांगों को कैसे संबोधित करते हैं और क्या वेतन समझौते और मुद्रीकरण के प्रस्तावों पर कोई समाधान निकलता है या नहीं।
इस हड़ताल के परिणामस्वरूप न केवल भारत, बल्कि वैश्विक व्यापार जगत में भी इसके असर को देखा जाएगा।
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