पंजाब में 750 एकड़ लावारिस ज़मीन पर भूमिहीन दलितों ने चिराग जलाकर किया दावा, अगली फसल से होगा कब्ज़ा

पंजाब में 750 एकड़ लावारिस ज़मीन पर भूमिहीन दलितों ने चिराग जलाकर किया दावा, अगली फसल से होगा कब्ज़ा

पंजाब के संगरूर में एक गांव बेगमपुरा (पहले बेचिराग) में 750 एकड़ ज़मीन पर दलित समुदाय ने मिलकर अपने दावे का एलान किया।

यह ज़मीन संगरूर के राजा की हुआ करती थी, उनका कोई वारिस नहीं था और इस तरह की ज़मीनों को पंजाब में बेचिराग कहा जाता है।

सीलिंग के दौरान जागीरदारों के हाथ में ज़मीन थी, वह जोतने वालों के नाम हो गई लेकिन बाकी ज़मीन बंजर पड़ी रही है। इसका रकबा क़रीब 750 एकड़ बताया जा रहा है।

इसमें से 300 एकड़ ज़मीन राजा के दूर के एक रिश्तेदार अपना कब्ज़ा बताते हैं। वह दिल्ली में रहते हैं और इस उपजाऊ ज़मीन को पट्टे पर देते हैं। इसी 300 एकड़ ज़मीन पर 28 फ़रवरी 2025, दिन शुक्रवार को हज़ारों दलित लोगों ने अपने दावे का एलान किया।

ट्रालियों में बैठकर आई जनता अपने अपने गांव से चिराग लेकर आई थी और इन्ही से एक सामूहिक मशाल जलाया गया।

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पंजाब सरकार ने अनाज मंडी बनाने का किया था एलान

भूमिहीन दलितों के बीच उन्हें ज़मीन दिलाने के लिए काम करने वाले ज़मीन प्राप्ति संघर्ष समिति (ज़ेडपीएससी) के नेतृत्व में यह कार्यक्रम आयोजित हुआ था।

इसके नेता गुरुमुख सिंह, मुकेश मलौध और बिक्कर सिंह हथोआ ने 28 दिसम्बर 2024 को एक मीटिंग करके दावे की तारीख़ का एलान किया था।

असल में पंजाब की भगवंत मान सरकार ने कुछ महीनों पहले ही एलान किया था कि इस ज़मीन पर अनाज मंडी बनेगी तब लोगों को पता चला कि यह ज़मीन किसी की नहीं है।

ज़मीन प्राप्ति संघर्ष समिति के नेताओं ने मशाल प्रज्जवलन करते हुए कहा कि अप्रैल में जब गेहूं की फसल कट जाएगी उसके बाद उस पर सामूहिक कब्ज़ा लिया जाएगा।

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बिक्कर सिंह हथोआ ने आए हुए लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि अप्रैल में गेहूं की फसल कटने के बाद ही इस पर सामूहिक कब्ज़ा हो जाएगा।

पंजाब में भूमिहीन

पंजाब में रहने वाले अधिकांश दलित भूमिहीन हैं और उन्हें चारा से लेकर बाकी कामों के लिए ज़मींदारों पर निर्भर रहना पड़ता है।

लेकिन इसके अलावा पंजाब में हर गांव में ग्राम पंचायत की ज़मीन है, जिसमें क़ानून के तहत एक तिहाई ज़मीन का पट्टा दलितों के लिए आरक्षित है जिसपर वही जोत बो सकते हैं। लेकिन दबंग किसानों ने कुछ जगहों पर उस पर भी कब्ज़ा कर लिया या किसी दलित भूमिहीन को डमी के रूप में खड़ा कर पट्टा ले लिया और उस पर फसल उगाते हैं।

दरअसल, 1961 में पंजाब सरकार ने एक क़ानून बनाया था जिसके तहत प्रत्येक गांव की एक तिहाई यानी 33 प्रतिशत पंचायती ज़मीन सार्वजनिक नीलामी के माध्यम से गांव के अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्यों को दी जाएगी। लेकिन इस क़ानून को पूरी तरह लागू कर पाना आज भी मुमकिन नहीं हो सका है।

पिछले ही साल संगरूर में घराचों गांव में इसी तरह की 48 एकड़ ज़मीन पर दलित महिलाओं ने संघर्ष कर सालों बाद कब्ज़ा पाया था और ज़मीन में हल चला पाई थीं। इस पर बीबीसी ने एक डाक्यूमेंट्री बनाई थी और उन महिलाओं के संघर्ष को दुनिया के सामने रखा था। पंजाब में इस तरह के सैकड़ों संघर्ष चल रहे हैं।

भूमिहीनता की समस्या को लेकर ज़ेडपीएससी बीते डेढ़ दशक से काम कर रही है।

लेकिन एक तीसरी किस्म की भी ज़मीन है पंजाब में, नज़ूल ज़मीन। जिसे दलितों को दिया गया था, लेकिन यह ज़मीन परती या अनुपजाऊ थी, जिसे न तो वे बेच सकते थे और न ही कोई निर्माण कर सकते थे लेकिन बाद के समय में कर्ज के बदले इन ज़मीनों पर ऊंची जाति के लोगों का कब्जा हो गया। ज़ेडपीएससी इन ज़मीनों पर भी कब्ज़ा दिलाने के लिए संघर्ष कर रही है।

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Workers Unity Team

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