उत्तरकाशी के पुरोला में कैसे सुनियोजित फैलाया गया मुस्लिम दुकानदारों के खिलाफ तनाव- फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग रिपोर्ट
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में स्थित पुरोला में लव जिहाद को लेकर साम्प्रदायिक तनाव के बाद नागरिक समाज की एक टीम वहां जांच पड़ताल करने गई थी.
इस टीम का मुख्य उद्देश्य एक माह पूर्व पुरोला में हुए सांप्रदायिक तनाव के कारणों को समझना और वर्तमान स्थिति का जायजा लेना था।
फ़ैक्ट फाइंड रिपोर्ट-
स्थानीय स्त्री पुरुषों तथा व्यापार मंडल की उपाध्यक्ष और सचिव से बात करके हमें यह जानकारी मिली कि दो लड़कों जिसमें एक हिंदू और एक मुस्लिम था, द्वारा नाबालिग लड़की को भगाने का मामला आने के बाद, मुस्लिम विरोधी प्रचार के कारण पुरोला का माहौल खराब हुआ।
धार्मिक उन्माद के कारण मुस्लिम परिवार अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए। अब दोषी के परिवार सहित दो परिवार ही वापस नहीं आए लेकिन अन्य परिवार वापस आकर सामान्य जीवन जीने की कोशिश कर रहे हैं।
हालांकि अभी भी तनाव के कारण असुरक्षा का भय बना हुआ है।
इस घटना के एक पीड़ित ने बताया कि उनका परिवार सन 1978 से यहां पर रह रहा है लेकिन इस तरह से धर्म के कारण कोई भेद भाव का व्यवहार उनके साथ पहले नहीं किया गया।
मुस्लिमों के सामूहिक नमाज़ पढ़ने को लेकर कभी भी किसी प्रकार की आपत्ति नहीं की गई। यहां पर जो किरायेदार हैं उनको भी मकान मालिक कभी नमाज़ पढ़ने से नहीं रोकते थे जबकि इस घटना के बाद से सामूहिक नमाज़ पढ़ना विवाद का विषय बन गया है।
जिस दिन यह घटना घटी थी, उसके बाद हिंदू विचार के संगठनों ने धार्मिक अफवाहों से प्रभावित उग्र होकर जलूस निकाला गया और मुस्लिम घरों के सामने अश्लील नारे लगाकर भद्दी भद्दी गलियां देते हुए पुरोला छोड़ने की चेतावनी दी गई।
लेकिन उस वक्त पुलिस और प्रशासन ने इस जलूस में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया। जलूस में स्थानीय लोगों के साथ बाहर के लोग भी बहुत अधिक संख्या में शामिल थे। मुस्लिम दुकानों के सामने तोड़ फोड़ की गई तब भी पुलिस मौन रही।
अगले दिन दुकानों पर नोटिस चिपकाये गए जिसमें 15 जून तक पुरोला छोड़ देने की धमकी लिखी गई थी, इससे जहां स्थानीय स्तर पर तनाव बढ़ा, वहीं इस घटना की चर्चा देश_विदेश में भी हुई।
इस माहौल में असुरक्षित मुस्लिम समाज के प्रतिंधियों ने जब ज्ञापन देकर एसडीएम से सुरक्षा की मांग की तो उन्होंने इस बात को अधिक अहमियत नहीं दिया। जबकि इस दौरान जब चौकी में सीओ साहब उपस्थित थे तो उन्होंने अपने अधीनस्थों को यह कहकर कि कोई दुकान बंद नहीं होगी, पीएसी और पुलिस भेजने को कहा।
उनके आश्वासन के बाद दुकानें खोली गईं। लेकिन उसी रात सीओ साहब के बड़कोट जाने के बाद चौकी इंचार्ज ने कुछ मुस्लिम दुकानदारों को बुलाकर दुकान न खोलने के लिए धमकाया। इसके बाद डर के माहौल में 22 दिन तक मुस्लिम दुकानदारों की दुकानें बंद रहीं।
बंद के दौरान धार्मिक भावनाओं को भड़काने वालों ने पुरोला में एक महापंचायत करने का ऐलान किया जिससे न केवल पुरोला में बल्कि उत्तराखंड के अन्य इलाकों में सांप्रदायिक तनाव का माहौल बन गया।
सामाजिक दबाव के बाद प्रशासन ने इस पंचायत पर रोक लगा दी लेकिन पुरोला कस्बे में आज भी मुस्लिम समाज के बीच भय व डर बना हुआ है।
नाबालिग को भगाने के मुद्दे पर अधिकांश का कहना है कि इस घटना को बेवजह सांप्रदायिक रंग दिया गया।
स्थानीय महिलाओं के साथ चर्चा में जो मिलीजुली राय निकलकर आई उसमें अधिकांश का यह कहना था कि लड़कियों की खरीद फरोख्त तो हमेशा से होती है। लेकिन किसी भी राजनीतिक या सामाजिक शक्तियों ने आज तक इस तरह का जलूस निकालकर विरोध नहीं किया। अंकिता भंडारी की हत्या होने पर तो ना कोई राजनीतिक दल सामने आया न ही कोई नेता, हम महिलाओं ने तब केंडिल मार्च निकाला था।
सोशल मीडिया के माध्यम से जिस तरह पूरे देश में मुसलमानों के खिलाफ नियोजित तरीके से अफवाएं फैलाई जा रही हैं, उससे यहां के ज्यादातर लोग भी प्रभावित हो रहे हैं। वे बिना सोचे _समझे इन अफवाहों को ग्रहण करके पूरे समाज को विषाक्त कर रहे हैं, जिसका शिकार एक समुदाय विशेष बनाया जा रहा है।
स्थानीय स्तर पर कुछ अवांछित तत्वों द्वारा इस बात को भी बढ़ावा दिया जा रहा है कि बाहर से आने वालों के कारण यहां रोजगार और पहचान का संकट बढ़ रहा है।
व्यापार मंडल के सचिव का कहना है कि यहां पर व्यापार में आर्थिक असुरक्षा बढ़ रही है। इसके लिए वह एक समुदाय विशेष को जिम्मेदार मान रहे हैं। चर्चा में जब हमने भू कानून बनाने पर जोर दिया तो उन्होंने भी माना कि उत्तराखंड सरकार को भू कानून बनाना चाहिए ताकि स्थानीय जमीनों को माफिया और बिल्डर न खरीद सकें। उन्होंने सभी के सत्यापन का मुद्दा भी उठाया। साथ ही यह भी बताया कि 15 जून की पंचायत में भू कानून को भी हमने मुद्दा बनाया था।
जिनसे भी हम मिले सभी का उत्तराखंड में हिमाचल की तरह भू कानून बनाए जाने पर जोर था। उत्तराखंड महिला मंच का यह मानना है कि उत्तराखंड बनने के 15 साल पूर्व से जो भी परिवार, समुदाय, व्यक्ति उत्तराखंड में रह रहा है वह उत्तराखंडी है। उत्तराखंड बनाने का मूल उद्वेश्य यही था कि यहां के जल,जंगल, ज़मीन पर स्थानीय लोगों के हक हो। जितनी तेजी से जमीनों की खरीद_फरोख्त उत्तराखंड में हो रही है वह चिंताजनक है। लेकिन सरकार इस दिशा में सही नीति बनाने में असफल रही है।
मंच का यह भी मानना है कि स्थानीय लोगों के बीच व्यापार को लेकर जो प्रतिस्पर्धा है, बेरोजगारी, गरीबी बढ़ रही है, उसके राजनीतिक व आर्थिक कारणों पर ध्यान देने के बजाय कुछ स्वार्थी वा धर्मांध लोगों द्वारा इस घटना को राजनीतिक और सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है, जिससे पहाड़ में अशांति वह तनाव बढ़ रहा है। अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ नफरत का माहौल बनाया जा रहा है।
कई लोगों का यह भी मानना है कि बाहर से आकर लोग अधिक पैसा देकर दुकान व जमीन खरीद लेते हैं, इससे स्थानीय व्यापारियों को नुकसान होता है।
व्यापार का भविष्य अनिश्चित होने से जो असुरक्षा का भाव उत्पन्न होता है उससे एक समुदाय विशेष निशाने पर आ जाता है।
टीम ने जिला पंचायत अध्यक्ष से मिलने का प्रयास किया लेकिन वह नहीं मिले। पीड़िता के मामा से भी मिलने का प्रयास किया गया। लेकिन सामाजिक दवाब के कारण उन्होंने मिलने से इंकार कर दिया।
टीम द्वारा 27 जून को एसडीएम पुरोला से मुलाकात की गई। उनका कहना था कि यहां पहले भी माहौल शांत था अभी भी शांत है।
उनका यह भी कहना था कि यहां जो भी हुआ उस पर कार्यवाही करने की ज़िम्मेदारी पुलिस की है, उन्होंने अपना काम किया, आज भी कर रही है, हमारी कोई ज़िमेदारी नही है। वास्तविकता तो यह है कि एसडीएम ही किसी परगने का मुख्य प्रशासनिक अधिकारी होता है और कानून व्यवस्था को ज़िमेदारी एसडीएम की ही होती है।
हमने उत्तराखंड महिला मंच का परिचय देते हुए उन्हें इस घटना के विषय में एक अपील पत्र सौंपा। जिसमें हमने, इस घटना की जांच कराने, दोषियों को सजा दिलवाने और स्थानीय मुस्लिम परिवारों को सुरक्षा दिए जाने तथा भविष्य में ऐसी घटना न हो इसके लिए ठोस उपाय किए जाने के संदर्भ में अपील की था। उन्होंने इस ज्ञापन को चौकी इंचार्ज के लिए आवश्यक कार्यवाही हेतु भिजवा दिया।
उनके द्वारा ही हमें यह जानकारी मिली कि 27 जून को पुरोला शहर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की रैली निकलने की योजना बनाई गई थी जबकि एक हफ्ते पूर्व ही धारा 144 हटाई गई है।
महिला मंच ने मांग की है कि प्रदेश में भू कानून बनाया जाय। सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने के लिए जो भी लोग जिम्मेदार हैं उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही की जाए तथा सोशल मीडिया पर नफरत फ़ैलाने वालों के खिलाफ़ ठोस करवाई की जाए और अल्पसंख्यकों को सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाएं।
देहरादून से महिला मंच की चार सदस्यीय एक जुटता टीम 26 जून 2023 को पुरोला गई थी, जिसमें कमला पंत, गीता गैरोला, रंजना पाढ़ी और चंद्रकला शामिल थे।
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