रवीश कुमार का एनडीटीवी से जाना,हाशिये की एक और आवाज़ का बंद होना है

रवीश कुमार का एनडीटीवी से जाना,हाशिये की एक और आवाज़ का बंद होना है

By संदीप राउज़ी

एक आंख की अंधी हो चुकी जनता के लिए एनडीटीवी वाले रवीश कुमार एकमात्र आंख थे। जिस अंधकार का नज़ारा कुछ साल पहले उन्होंने अपने प्राइम टाइम पर नुमाया किया था, अब एनडीटीवी के लिए वो हकीक़त बन चुका है।

लेकिन मुझे व्यक्तिगत रूप से खुशी है कि उन्होंने ऐसा निर्णय लिया।

दो साल पहले एक निजी समारोह में जब मैंने उन्हें ऐसी ही कुछ सलाह दी थी तो उनकी मुख्य चिंता संसाधन को लेकर थी। कहां से आयेगा संसाधन! अकेले तो प्राइम टाइम नहीं चल सकता!

तब मैं नौकरी छोड़ कर खुद मजदूरों का एक मीडिया चैनल खड़ा करने में लगा था, (हो सकता है इसे आपने कभी कहीं देखा भी हो)। उन चार सालों में उस ‘संसाधन’ नामक शब्द ने मुझे भी बहुत परेशान किया है। मेरा अंदाजा था कि पचास करोड़ प्रत्यक्ष मजदूरों के देश में अलजजीरा तो नहीं लेकिन एक ठीक ठाक चैनल खड़ा किया जा सकता है। लेकिन एक गुमनाम पत्रकार के लिए नाकों चने चबाने जैसा है ये, तब भी महसूस हुआ और आज भी।

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लेकिन रवीश कुमार, रवीश कुमार हैं। उनकी आवाज़ एक दिन में दसियों लाख लोगों तक पहुंचती है, चाहे वो प्राइम टाइम पे हों या नहीं। उनके यूट्यूब चैनल पर कुछ दिनों में सोलह लाख से अधिक लोग जुड़ चुके हैं। उनके इस्तीफे के वक्तव्य को 40 लाख से अधिक लोग देख चुके हैं।

उनकी लोकप्रियता इतनी है कि किसान आंदोलन में एक दिन भी न जाने के बावजूद उनके प्राइम टाइम की स्क्रीनिंग जैसी नुमाइश होती थी और किसान झुंड बना कर उन्हें देखते सुनते सराहते थे। एनडीटीवी प्रसारण को पूरे देश में बार बार बाधित किए जाने के बावजूद लोगों के पास प्राइम टाइम की रिकॉर्डिंग जाने कहां कहां से पहुंच जाती थी। अपने इस्तीफे के बाद जो बात उन्होंने अपने चैनल पर कही उसका मुख्य पहलू यही था कि न्यूजरूम मीडिया हाउसों में ही नहीं होता,, असल तो जनता जनार्दन के बीच होता है।

पिछले एक दशक में ऐसे कम ही पत्रकार दिखते हैं, जो मज़दूरों की ख़बर को प्राइम टाइम पर जगह दें। दलित कवियों, लेखकों गायकों को अपने प्राइम टाइम में बुलाएं। छात्रों की परीक्षा की चिंता करें। शिक्षा सत्र और बेरोजगारी पर स्टोरी की शृंखला ही शुरू कर दें और सबसे बड़ी बात की सत्ता को चुभ जाने वाले ऐसे क्रिएटिव शो करें कि कम से कम गोदी मीडिया के एक्शन में आने तक सरकार मुंह छिपाती फिरे।

हां उन्होंने कई मौकों पर जनता की समझदारी से अलग राह भी ली, जिसके बाद उनकी खूब मजम्मत भी हुई जिसे उन्होंने स्वीकार किया है।

वे ऐसा कैसे कर पाते थे, क्या ये प्रणव रॉय की ओर से मिली छूट पर करते थे या जनता के समर्थन के दम पर? इस सवाल का जवाब उन्होंने अपने इस्तीफ़ा वक्तव्य में दिया है।

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उन्होंने एनडीटीवी का धन्यवाद दिया लेकिन जनता के प्रति आभार कुछ इन शब्दों में जताया, “मैंने इस्तीफ़ा दे दिया है। यह इस्तीफ़ा आपके सम्मान में है। आप दर्शकों का इक़बाल हमेशा बुलंद रहे। आपने मुझे बनाया। आपने मुझे सहारा दिया। करोड़ों दर्शकों का स्वाभिमान किसी की नौकरी और मजबूरी से काफ़ी बड़ा होता है। मैं आपके प्यार के आगे नतमस्तक हूँ।”

ये सच भी है कि वो एक ऐसा जनमत तैयार करने में सफल रहे हैं कि आज वो किसी न्यूज़रूम का हिस्सा न होते हुए भी एक विस्तारित जन-न्यूज़रूम का हिस्सा बन चुके हैं।

मेरी शुभकामना है कि वो इस जन न्यूज़ रूम को और विस्तारित करें। उनका संसाधन कोई जगत सेठ नहीं बल्कि जनता जनार्दन है।
राह कठिन है, मगर यही राह है।

(संदीप राउज़ी वर्कर्स यूनिटी के फाउंडिंग एडिटर हैं।)

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