भारत में ब्लू-कॉलर नौकरियों की हकीकत: 57% से अधिक कर्मचारियों को 20,000 रुपये से कम वेतन
भारत में अधिकांश ब्लू-कॉलर यानी शारीरिक श्रम वाली नौकरियों में प्रति माह 20,000 रुपये या उससे कम वेतन का भुगतान किया जाता है, जिसके चलते कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा वित्तीय तनाव से जूझ रहा है।
जिसकी वजह से कार्यरत लोगों को आवास, स्वास्थ्य देखभाल तथा शिक्षा जैसी आवश्यक जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
यह जानकारी वर्कइंडिया की एक रिपोर्ट में सामने आई है, जो इस तरह की नौकरियां मुहैया कराने वाले प्रमुख प्लेटफॉर्म में से एक है।
ब्लू-कॉलर नौकरियों का वेतन वितरण
द टेलीग्राफ के अनुसार, इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 57.63 प्रतिशत से अधिक ब्लू-कॉलर नौकरियां 20,000 रुपये या उससे कम वेतन सीमा के भीतर आती हैं, जो दर्शाता है कि कई कर्मचारी न्यूनतम वेतन सीमा के करीब कमाते हैं।
ब्लू-कॉलर नौकरियों में शारीरिक श्रम या कौशल वाले रोजगार शामिल होते हैं, जैसे कि कंडक्टर, मैकेनिक, इलेक्ट्रीशियन, पुलिसकर्मी, प्लंबर, मजदूर आदि।
रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि लगभग 29.34 प्रतिशत ब्लू-कॉलर नौकरियां मध्यम आय वर्ग में आती हैं, जिनका वेतन 20,000-40,000 रुपये प्रति माह होता है।
इस आय वर्ग के कर्मचारी वित्तीय सुरक्षा के मामले में ठीक-ठाक स्थिति में होते हैं, लेकिन फिर भी एक आरामदायक जीवन स्तर हासिल करने से दूर रहते हैं।
इस आय स्तर पर वे अपनी आवश्यक जरूरतों को पूरा तो कर सकते हैं, लेकिन बचत या निवेश के लिए उनके पास बहुत कम गुंजाइश होती है।
यह स्थिति ब्लू-कॉलर कार्यबल के एक बड़े हिस्से की दयनीय आर्थिक स्थिति को उजागर करती है।
उच्च आय वाले ब्लू-कॉलर नौकरियों का प्रतिशत
रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि इस कार्यबल का एक बहुत छोटा हिस्सा, केवल 10.71 प्रतिशत, 40,000-60,000 रुपये प्रति माह से अधिक वेतन पाता है।
इस उच्च आय वर्ग में आने वाले ब्लू-कॉलर नौकरियों का यह हिस्सा इन कर्मचारियों के बीच विशेष कौशल या अनुभव की उपस्थिति को दर्शाता है।
हालांकि, ऐसे पदों की सीमित उपलब्धता यह संकेत देती है कि इस क्षेत्र में ऊपर की ओर गतिशीलता चुनौतीपूर्ण बनी हुई है।
रिपोर्ट के अनुसार, केवल 2.31 प्रतिशत ब्लू-कॉलर नौकरियां 60,000 रुपये से अधिक वेतन प्रदान करती हैं।
यह बहुत ही छोटा प्रतिशत दर्शाता है कि इस क्षेत्र में अच्छे भुगतान वाले अवसरों की कमी है।
इस शीर्ष ब्रैकेट में पद आम तौर पर अत्यधिक विशिष्ट होते हैं या उनमें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ शामिल होती हैं, जिससे वे केवल कुछ चुनिंदा लोगों के लिए ही उपलब्ध होते हैं।
उच्च वेतन वाली नौकरियों का विश्लेषण
यह रिपोर्ट पिछले दो वर्षों में वर्कइंडिया प्लेटफॉर्म से एकत्र किए गए नौकरियों के डेटा के विश्लेषण पर आधारित है, जिसमें विभिन्न उद्योगों में 24 लाख से अधिक नौकरियां शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे ज़्यादा वेतन पाने वाले ब्लू-कॉलर पदों की सूची में फ़ील्ड सेल्स पद सबसे ऊपर हैं, जहां 33.84 प्रतिशत पदों पर 40,000 रुपये प्रति माह से ज़्यादा वेतन मिलता है।
इसके बाद बैक ऑफिस पदों पर 33.10 प्रतिशत लोगों को 40,000 रुपये से अधिक वेतन मिलता है और टेली-कॉलिंग पदों पर 26.57 प्रतिशत को 40,000 रुपये से ज़्यादा वेतन मिलता है।
अकॉउंटेंट के क्षेत्र में सटीक वित्तीय प्रबंधन की आवश्यकता के चलते 24.71 प्रतिशत नौकरियां प्रति माह 40,000 रुपये से अधिक वेतन प्रदान करती हैं।
इसके अलावा, व्यवसाय विकास (Business Development) की भूमिकाएं, जो कंपनी के परिचालन के विस्तार के लिए महत्वपूर्ण हैं, प्रतिस्पर्धी वेतन प्रदान करती हैं, तथा 21.73 प्रतिशत पदों पर वेतन 40,000 रुपये प्रति माह से अधिक है।
अन्य क्षेत्रों में वेतन की स्थिति
दिलचस्प बात यह है कि रिपोर्ट में पाया गया कि कुशल रसोइये और रिसेप्शनिस्ट भी उच्च वेतन वर्ग में आते हैं, जिनमें क्रमशः 21.22 प्रतिशत और 17.60 प्रतिशत लोग प्रति माह 40,000 रुपये से अधिक कमाते हैं।
हालांकि, महत्वपूर्ण होते हुए भी डिलीवरी संबंधी नौकरियों का प्रतिशत इस श्रेणी में सबसे कम है, केवल 16.23 प्रतिशत नौकरियां उच्च वेतन की पेशकश करती हैं।
वर्कइंडिया की इस रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि भारत में ब्लू-कॉलर नौकरियों में कार्यरत अधिकांश लोग आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे हैं।
न्यूनतम वेतन के दायरे में आने वाली इन नौकरियों में काम करने वाले लोगों के लिए वित्तीय स्थिरता हासिल करना कठिन है, जबकि उच्च वेतन वाली नौकरियां बेहद सीमित हैं।
इस स्थिति में सुधार के लिए न केवल रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करने की जरूरत है, बल्कि कार्यरत लोगों के लिए बेहतर वेतन और वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली नीतियों की भी आवश्यकता है।
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