रिमोट वोटिंग मशीन: चुनाव आयोग के सामने क्या हैं चुनौतियां, पैनल डिस्कशन

रिमोट वोटिंग मशीन: चुनाव आयोग के सामने क्या हैं चुनौतियां, पैनल डिस्कशन

By शशिकला सिंह

चुनाव आयोग रिमोट वोटिंग के प्रस्ताव को लेकर बहुत सारे सवाल और शंकाएं है जिनका जवाब दिया जाना अभी बाकी है।

लेकिन करोड़ों घरेलू प्रवासी मज़दूरों को मुख्यधारा के चुनाव में लाना बहुत दिनों से लंबित मांग रही है जिसपर चुनाव आयोग ने गौर किया, ये देर आयद लेकिन दुरुस्त आयद है।

बीती 25 जनवरी को दिल्ली में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के एक पैनल डिस्कशन में वक्ता इस बात सहमत दिखे कि इस बहुत जटिल काम को बहुत सावधानी से किए जाने की ज़रूरत है।

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के फेलो राहुल वर्मा ने कहा कि रिमोट वोटिंग बहुत ही जटिल काम है, जिसको लागू होने में लगभग 2 से 3 साल का समय लग जायेगा, अगर अभी के ट्क्नोलॉजिकल एडवांसमेंट को भी जोड़ लें, ये बहुत ही श्रमसाध्य काम है।

रिमोट वोटिंग की चुनौतियां

उन्होंने कहा कि अभी तक सरकार के पास ऐसा कोई डेटा नहीं है जो बता सके कि देश में कितने आंतरिक प्रवासी हैं। जनगणना ही वो सबसे सटीक आंकड़ा है जिसपर भरोसा किया जा सकता है।

लेकिन इस बार 2021 में होने वाली जनगणना में देर हो चुकी है और ये कब होगी कहा नहीं जा सकता।

उन्होंने दूसरी चुनौती के बारे में कहा कि अगर प्रवासी मज़दूरों को रिमोट वोटिंग की सुविधा दी जाती है तो ये देखना होगा कि कहीं बड़ी पार्टियां खुद को और मज़बूत करने के लिए उन्हें अपने संसाधनों से प्रभावित तो नहीं कर ले जाती हैं।

क्योंकि बड़ी पार्टियों के पास संसाधन है और वे दूर दराज के औद्योगिक इलाक़ों में इंटरनेट और अन्य तरीक़ों से प्रवासी वोटरों तक अपनी आसान पहुंच कायम कर सकती हैं। जबकि कम संसाधन वाली राजनीतिक पार्टियां इसमें पिछड़ सकती हैं।

उन्होंने कहा कि अगर सारी बातों को ध्यान में रखा जाए तो ऐसा लगता है कि आगामी 2024 के आम चुनावों तक तो शायद ही इसे ज़मीन पर उतारा जा सके।

उन्होंने कहा कि ये काम राजनीतिक दलों का है जिसे चुनाव आयोग कर रहा है।

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 रिमोट वोटिंग की प्रक्रिया

वर्कर्स यूनिटी के संपादक संदीप राउजी ने रिमोट वोटिंग की प्रक्रिया को लेकर कई आशंकाएं ज़ाहिर कीं, मसलन, कोड ऑफ़ कंडक्ट लागू करने की बात, वोटिंग के लिए छुट्टी देने की बात, बंधुआ मज़दूरों को बूथ तक लाने की व्यवहार्यता आदि।

उन्होंने कहा कि लाखों मज़दूर खाड़ी के देशों में काम कर रहे हैं, उनके लिए भी वोटिंग का अधिकार दिए जाने पर गौर करना चाहिए क्योंकि वो अपनी मेहनत से देश में अरबों रुपये की विदेशी मुद्राएं भेजते हैं।

राउज़ी ने कहा कि क्या यह संभव है कि जिस इलाके में चुनाव नहीं हो रहा हो वहां भी मज़दूरों को वोट डालने के लिए छुट्टी दी जाएगी।

भारत निर्वाचन आयोग के पूर्व महानिदेशक और नीति आयोग के वरिष्ठ फेलो अक्षय राउत ने कहा कि रिमोट वोटिंग मशीन (RVM), इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की तरह ही है।

प्रवासी मज़दूरों को वोट देने के अधिकार को लेकर उन्होंने कहा कि आबादी में वोटरों की तुलना में चुनाव में वोट देने वालों की संख्या बहुत कम है। इसलिए लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए उन छूटे हुए वोटरों को इसमें शामिल किए जाने की ज़रूरत है।

क्योंकि सरकार बनने में बहुत कम लोग हिस्सा ले रहे हैं। लोकतंत्र के लिए बहुत अच्छी बात नहीं है।

उन्होंने कहा कि जब चुनाव आयोग ने महिला वोटरों को प्रोत्साहित किया तो वोट प्रतिशत बढ़ा।

देश में एक करोड़ प्रवासी मज़दूर हैं और उन्हें वोट की सुविधा देने से वोट प्रतिशत को बढ़ाया जा सकता है।

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प्रवासी मज़दूरों को जागरूक करने की जरूरत

इसे लेकर शंकाओं का जवाब देते हुए अक्षय राउत ने कहा कि नेताओं की अहम भूमिका है प्रवासी मज़दूरों को जागरूक करने में।

जब नौजवानों और महिलाओं की वोटिंग में भागीदारी बढ़ी तो राजनतिक दलों ने उनके मुद्दों को तरजीह देनी शुरू कर दी। राउत ने कह कि उन्हें लगता है कि प्रवासी मज़दूरों के मामले में भी ऐसा ही होगा।

उन्होंने कहा कि मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट लागू करना, प्रवासी मज़दूरों का रजिस्ट्रेशन करना आदि वाकई चुनौतीपूर्ण काम है लेकिन इससे निश्चित है कि प्रवासी मज़दूरों की आवाज़ मज़बूत होगी और उनकी बारगेनिंग पॉवर बढ़ेंगी। राजनीतिक दल भी उसी के अनुसार, अपनी नीति बनाएंगे और प्रवासी मज़दूर उसी हिसाब से अपना रुख़ तय करेंगे।

इस पूरे पैनल डिस्कशन को फेसबुक लाईव रिकॉर्डिंग के मार्फ़त सुन सकते हैं।

इलेक्टोरल इन्क्लूसिव फॉर इंटरनल माइग्रेंट्स यानी आंतरिक प्रवासियों के लिए चुनावी समावेशन पर आयोजित इस पैनल डिस्कशन में चुनाव आयोग के पूर्व अधिकारी अक्षय राउत, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के राहुल वर्मा और मुक्ता नाइक, वर्कर्स यूनिटी के संपादक संदीप राउज़ी और मुंबई टिस (डीन, स्कूल ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज) से जुड़े अश्विनी कुमार ने हिस्सा लिया।

इसका संचालन सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की फेलो मुक्ता नाइक ने किया।

इस डिस्कशन को सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPR) और इनिशिएटिव ऑन माइग्रेशन एक्शन एंड नॉलेज एंगेजमेंट ने मिलकर आयोजित किया था।

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WU Team

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