यूपी में 8 घंटे काम का अधिकार हुआ सपना, योगी सरकार के नए कानून से आक्रोशित यूनियनें
उत्तर प्रदेश में योगी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा बीते बुधवार को राज्य की विधानसभा में कारखाना अधिनियम संशोधन कानून और बोनस संदाय संशोधन कानून को पारित कर दिया गया।
इन दोनों ही कानूनों कारखाना अधिनियम संशोधन कानून और बोनस संदाय संशोधन कानून के पारित होने के बाद प्रदेश भर के मज़दूर संगठन और यूनियनें इसका कड़ा विरोध कर रही हैं.
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यू. पी. वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर ने इस कानून के पारित होने के बाद एक बयान जारी कर कहा कि, ‘कारखाना अधिनियम में संशोधन करके काम के घंटे 12 करने का कानून बनाना और बोनस ना देने वाले मालिकों की गिरफ्तारी से छूट देने का कानून मजदूर विरोधी है और इसे वापस लिया जाना चाहिए’।
मज़दूर यूनियनें क्यों हैं आक्रोशित
उन्होंने कहा कि, ‘ मौजूदा सरकार कॉर्पोरेट घरानों को खुश करने के लिए मज़दूरों को गुलाम बनाने वाले कानून बना रही है। पहले से ही भीषण बेरोजगारी का दंश झेल रहे उत्तर प्रदेश में यह संशोधन बेरोजगारी को और बढ़ाने का काम करेगा। अभी उद्योगों में कार्यरत करीब 33 परसेंट मजदूरों की छटंनी हो जाएगी, जो 8 घंटे की तीन शिफ्ट में आज काम कर रहे हैं। कानून के पारित हो जाने के बाद भारी संख्या में मज़दूरों को छंटनी का शिकार होना पड़ेगा’।
” यह कानून काम के घंटे 8 करने के इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के कन्वेंशन, जिसका भारत सरकार भी हस्ताक्षर कर्ता है, का सरासर उल्लंघन है।”
मालूम हो कि कोरोना महामारी के समय भी योगी सरकार ने इसे लागू करने का प्रयास किया था। जिसके बाद राज्य भर के मज़दूर संगठन इसके खिलाफ लामबंद हो गए थे और सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा था।
मज़दूर संगठनों और वर्कर्स फ्रंट ने उस वक़्त इलाहाबाद हाईकोर्ट में इसके खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की। जिसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने योगी सरकार को लताड़ते हुए तुरंत इसे वापस लेने का आदेश दिया था।
दिनकर कपूर ने बताया कि, ” यह बेहद चिंताजनक है कि उत्तर प्रदेश में न्यूनतम मजदूरी का वेज रिवीजन 2019 से ही लंबित पड़ा हुआ है और इसे पूरा करने को सरकार तैयार नहीं है। जिसकी वजह से उत्तर प्रदेश में न्यूनतम मजदूरी केंद्र सरकार के सापेक्ष बेहद कम है”।
“यही नहीं असंगठित मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा के लिए 2008 में कानून बना है। प्रदेश में ई-श्रम पोर्टल पर 8 करोड़ से ज्यादा असंगठित मजदूरों का पंजीकरण हुआ है। उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए कोई भी योजना सरकार चलाने को तैयार नहीं है,लेकिन मज़दूरों की हकमारी के कानून बिना उनकी बात सुने बना दी जा रही है।”
मज़दूर संगठनों द्वारा आगे की कार्रवाई की जानकारी देते हुए कपूर ने बताया कि, ” इस मजदूर विरोधी संशोधन कानूनों के संबंध में सभी ट्रेड यूनियन संगठनों से बात की जाएगी और उत्तर प्रदेश में इसे वापस कराने के लिए अभियान चलाया जाएगा”।
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