सैमसंग फैक्ट्री हड़ताल: ” दिन के 16 घंटे फैक्ट्री के लिए , फिर भी ना सम्मान – ना अधिकार “

सैमसंग फैक्ट्री हड़ताल: ” दिन के 16 घंटे फैक्ट्री के लिए , फिर भी ना सम्मान – ना अधिकार “

By Sushmita V

9 सितम्बर से चेन्नई के बाहरी इलाके श्रीपेरंबदूर में स्थित सैमसंग इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स फैक्ट्री के 1500 मज़दूर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठे हैं। हड़ताल का तात्कालिक कारण प्रबंधन द्वारा यूनियन के सदस्यों को धमकाना और हिंसा की धमकियाँ देना था।

सैमसंग फैक्ट्री में मज़दूरों के ऐसे हड़ताल के हालात लंबे समय से बन रहा था क्योंकि फैक्ट्री में काम करने की परिस्थितियाँ बेहद खराब थीं। काम के घंटे बहुत लंबे होते थे और मज़दूरों के लिए ओवरटाइम अनिवार्य कर दिया गया था।

स्थाई मज़दूरों से 25,000 रुपये मासिक वेतन पर काम लिया जा रहा था जो अन्य फैक्ट्रियों में स्थायी मज़दूरों की तुलना में कम था।

मज़दूरों ने कहा कि उनकी शिकायतों के निवारण के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी, उन्हें परिवार की आपात स्थितियों के लिए छुट्टी नहीं मिलती थी, और कई बारी प्रबंधन सजा के रूप में कई दिनों तक उन्हें एक कमरे में बंद कर पूरे दिन अकेला बिठा देती थी।

मज़दूरों के अनुसार, इन सब मसलों पर प्रबंधन ने लगातार मज़दूरों से किसी भी तरह के बातचीत से इनकार कर दिया, जिससे उन्हें 3 महीने पहले सेंटर ऑफ इंडिया ट्रेड यूनियन्स (CITU) के नेतृत्व में एक यूनियन बनाने पर मजबूर होना पड़ा। यूनियन का पंजीकरण पिछले 80 दिनों से लंबित है, जबकि यह कानूनी रूप से अधिकतम 45 दिनों के भीतर हो जाना चाहिए था।

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पुलिस पर भी मज़दूरों को धमकाने का आरोप

इस बीच, प्रबंधन ने यूनियन के कारण मज़दूरों को धमकाना शुरू कर दिया। प्रबंधन ने मज़दूरों के परिवारों तक जाकर उन्हें धमकाया और यूनियन छोड़ने का दबाव डाला। फैक्ट्री में खुलेआम हिंसा की धमकियाँ देकर उन्होंने यूनियन के खिलाफ युद्ध जैसा माहौल बना दिया। इसके जवाब में मज़दूरों ने हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया।

सैमसंग इंडिया वर्कर्स यूनियन (SIWU) के अध्यक्ष और CITU के राज्य सचिव कॉमरेड मुथुकुमार ने बताया कि, ‘ 9 सितंबर को फैक्ट्री में हिंसा और धमकियों की स्थिति इतनी गंभीर थी कि हड़ताल शुरू करना आवश्यक हो गया। अन्यथा, मज़दूरों को हिंसा में उकसाया जा सकता था या हिंसा में फँसाया जा सकता था, जिससे मज़दूरों के लिए गंभीर परिणाम हो सकते थे। पुलिस में शिकायत दर्ज कराना भी विकल्प नहीं था क्योंकि पुलिस के भी प्रबंधन का ही समर्थन करने की उम्मीद थी’।

उधर सैमसंग ने CITU पर अवैध हड़ताल शुरू करने का मुकदमा दायर किया है। पुलिस ने भी सैमसंग की मदद करते हुए हड़ताल करने वाले मज़दूरों को धमकाया।

16 सितंबर को, पुलिस ने 100 से अधिक मज़दूरों को हिरासत में ले लिया, जो जिला कलेक्टर कार्यालय तक मार्च करने के लिए एकत्र हुए थे।

मार्च की अनुमति अंतिम क्षण में रद्द कर दी गई थी। पुलिस ने यूनियन अध्यक्ष मुथुकुमार को भी अवैध रूप से हिरासत में लिया। उनका फोन और बाइक जब्त कर लिया गया और किसी को नहीं बताया कि उन्हें कहाँ रखा गया है।

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फोटो क्रेडिट : संतोष कुमार

कम उत्पादन क्षमता पर चल रही फैक्ट्री

हड़ताल के कारण फैक्ट्री का उत्पादन गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है। हड़ताल की शुरुआत में, फैक्ट्री में 1760 स्थायी मज़दूर उत्पादन में लगे हुए थे और लगभग 30 अनुबंध वाले मज़दूर लोडिंग और अनलोडिंग में कार्यरत थे।

हड़ताल शुरू होने के बाद, लोडिंग और अनलोडिंग में लगे मज़दूरों को उत्पादन के लिए बुलाया गया। मुख्य संयंत्र केवल असेंबली करता है, और क्षेत्र की विभिन्न फैक्ट्रियों से पुर्जे आपूर्ति किए जाते हैं।

आपूर्तिकर्ता फैक्ट्रियों के मज़दूरों को भी उत्पादन में मदद के लिए बुलाया गया है। इन प्रयासों के बावजूद, मुथुकुमार के अनुसार, उत्पादन केवल 20% क्षमता पर चल रहा है।

कई हड़ताली मज़दूर पिछले 10-15 वर्षों से सैमसंग में काम कर रहे हैं। तीन महीने पहले उनका यूनियन बनाने का निर्णय काम की असहनीय स्थितियों का परिणाम था।

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फोटो क्रेडिट : संतोष कुमार

लंबे काम के घंटे और कम वेतन बना विवाद का कारण

उनका कार्य दिवस 9 घंटे का था, और इसके अतिरिक्त, 2 घंटे का अनिवार्य ओवरटाइम भी होता था। ओवरटाइम शाम 7 बजे समाप्त होता था और कंपनी बस 7:30 बजे छोड़ती थी, जिससे दूर-दराज के गाँवों में आने-जाने में लगभग 2.5 घंटे लगते थे।

मुथुकुमार सवाल पूछते हैं कि, “यात्रा को ध्यान में रखते हुए, मज़दूर अपने दिन के 16 घंटे फैक्ट्री के काम को दे रहा था। बाकी 8 घंटों में वह सोए, खाए या अपने परिवार के साथ समय बिताए?”

एक हड़ताली मज़दूर ने कहा, ” कोरोना महामारी से पहले, हमें मांग के अनुसार शनिवार को काम पर बुलाया जाता था। आमतौर पर, हम हर दूसरे शनिवार को काम करते थे। लेकिन महामारी के बाद, हमें हर शनिवार काम करना पड़ता था”।

“हमने प्रबंधन से पुरानी व्यवस्था को बहाल करने की मांग की, लेकिन प्रबंधन हमारी मांग को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था। फिर, सभी शनिवार को काम करने के लिए मुआवजे के रूप में हमने वेतन वृद्धि की मांग की, जिसे उन्होंने भी खारिज कर दिया। इससे हमें यूनियन बनाने की प्रेरणा मिली।”

‘शिकायत करने पर कमरे में बंद कर दिया जाता था’

एक अन्य मज़दूर ने कहा, “हमारे पास शिकायत करने का कोई तरीका नहीं था। हमने प्रबंधन से पूछा कि हमें वह छुट्टियाँ क्यों नहीं मिलतीं जो कर्मचारियों को मिलती हैं। इसके जवाब में, पिछले दो वर्षों से, प्रबंधन ने कर्मचारियों और मज़दूरों के लिए अलग-अलग छुट्टी कैलेंडर बनाना शुरू कर दिया।”

गोपाल (बदला हुआ नाम) नामक एक मज़दूर ने बताया कि, ” अगर कोई मज़दूर शिकायत करता या सवाल उठाता तो उसे सजा दी जाती। मुझे दो हफ्तों तक पूरे कार्य दिवस एक कमरे में अकेला बैठा दिया गया”।

“वहाँ एक कांच की खिड़की थी जिससे फैक्ट्री में आने-जाने वाले मुझे देख सकते थे, जिससे मुझे एक अपराधी जैसा महसूस हुआ। वहाँ बैठने के दौरान, मुझे खुद भी लगने लगा कि मैंने कुछ गलत किया है। वास्तव में मेरी गलती सिर्फ इतनी थी कि मैंने एक अपशब्द बोलने वाले सुपरवाइजर के खिलाफ एचआर में शिकायत कर दी थी”।

मज़दूरों ने बताया, ” प्रबंधन खुलेआम कहता था कि उन्हें हमारी परवाह नहीं है, वे केवल मुनाफे को अधिकतम करने की परवाह करते हैं। जिसके बाद प्रबंधन के इस अड़ियल रवैये को देखते हुए, हमने कानूनी मदद पाने के लिए यूनियन का गठन किया “।

हालाँकि, यूनियन बनाने के बाद मज़दूरों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी है।

एक मज़दूर ने बताया, “हमें पता चला कि अगर किसी सेवा में कार्यरत मज़दूर की मृत्यु हो जाती है, तो कंपनी को 25 लाख रुपये का भुगतान करना होता है। पिछले कुछ वर्षों में तीन मज़दूरों की मृत्यु हो चुकी है। परिवार दूर-दराज के गाँवों में रहते थे, और हमने पाया कि कंपनी ने उन्हें केवल 7 लाख रुपये दिए थे। लेकिन जैसे ही हमें पता चला, कंपनी ने बाकी राशि चुपचाप भुगतान कर दी।”

मुख्यधारा के मीडिया ने हड़ताल की आलोचना करते हुए कहा है कि, ‘ यह हड़ताल तमिलनाडु के इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में प्रभुत्व को खतरे में डालता है और राष्ट्रीय स्तर पर इसे प्रधानमंत्री मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ योजना पर एक काली छाया बताया है’।

मुथुकुमार कहते हैं, ” ऐसे निवेश का क्या फायदा जो केवल कॉरपोरेट्स को ही लाभ पहुंचाए? ट्रेड यूनियन आंदोलन, आर्थिक वृद्धि और श्रमिकों की नौकरी की सुरक्षा के लिए संघर्ष करते हुए, देश में अधिक समान आर्थिक विकास के लिए सच में काम कर रहे हैं।”

सैमसंग मज़दूरों की मांगें :-

. तीन वर्षों में मासिक वेतन को 25,000 से बढ़ाकर 36,000 करना,
. मज़दूर यूनियन की मान्यता,
. कार्य घंटे कम करना, जिसमें शनिवार को छुट्टी देना भी शामिल है।

सैमसंग के मज़दूर लंबे समय से कम वेतन पर काम कर रहे थे। लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा तकलीफ तब हुई जब उन्हें यह महसूस हुआ कि उनके साथ अपमानजनक और अन्यायपूर्ण व्यवहार किया जा रहा है, और उन्हें सम्मान से वंचित किया जा रहा है।

(Sushmita V एक सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं और वर्कर्स यूनिटी तमिल के साथ काम करती हैं )

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Abhinav Kumar

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