‘ सैमसंग की हड़ताल पुरे देश में मज़दूर आंदोलनों के भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण हड़ताल ‘ : CITU

‘ सैमसंग की हड़ताल पुरे देश में मज़दूर आंदोलनों के भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण हड़ताल ‘ : CITU

तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में सैमसंग इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स के मज़दूर पिछले 30 दिनों से हड़ताल पर हैं।

सैमसंग इंडिया वर्कर्स यूनियन (SIWU) के बैनर तले ( जो सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (CITU) द्वारा समर्थित है ) यह हड़ताल यूनियन की पंजीकरण और मान्यता की मांग को लेकर हो रही है।

दो दिन पहले तमिलनाडु के तीन मंत्रियों उद्योग मंत्री (टी.आर.बी. राजा), सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्री (टी.एम. अन्बरासन), और श्रम कल्याण मंत्री (सी.वी. गणेशन) ने घोषणा की कि सैमसंग केमज़दूरों और प्रबंधन के बीच एक समझौता हो गया है।

लेकिन यूनियन का कहना है कि मज़दूरों की असल मांगें अब भी अनसुनी हैं।

हड़ताली मज़दूरों के यूनियन का कहना है कि राज्य सरकार के समझौता ज्ञापन में हड़ताल को अवैध करार दिया गया, जबकि SIWU ने सैमसंग इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स के कार्यकारी प्रबंधक और प्रबंधन को 19 अगस्त को हड़ताल की सूचना भेज दी थी जो कानूनी रूप से जरूरी 14 दिनों की अवधि से अधिक थी।

CITU के तमिलनाडु महासचिव ए. सौंदरराजन के अनुसार, यह हड़ताल सिर्फ वेतन या अन्य मामूली मुद्दों पर नहीं है, बल्कि मज़दूरों के संवैधानिक अधिकार, यानी अनुच्छेद 19(1) के तहत संघ बनाने के अधिकार की लड़ाई है।

मज़दूर चाहते हैं कि उनकी यूनियन को मान्यता मिले ताकि वे अपने अधिकारों के लिए सामूहिक रूप से आवाज उठा सकें।

ए. सौंदरराजन ने फ्रंटलाइन से बातचीत करते हुए कहा कि, ‘ समझौते पर उन मज़दूर प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर थे, जिन्होंने न तो हड़ताल में भाग लिया और न ही यूनियन में शामिल हुए थे। इस दौरान तीनों मंत्रियों ने ऐसे बर्ताव किया जैसे वे सैमसंग के प्रवक्ता हों’।

इसके साथ ही इस बातचीत के दौरान सौंदरराजन ने कई और अहम सवालों के जवाब दिए :

 

A. Soundararajan, general secretary of CITU, Tamil Nadu
A. Soundararajan, general secretary of CITU, Tamil Nadu

सैमसंग में यूनियन कैसे बनी?

‘हम पर आरोप लगाया जाता है कि हमने मज़दूरों को उकसाया और यूनियन बनाकर उन पर नेतृत्व थोप दिया। सच्चाई यह है कि मज़दूर खुद यूनियन की इच्छा रखते हैं। मज़दूरों ने यूनियन बनाया और हमे इससे जोड़ा, यही कारण है कि हम इसमें शामिल होते हैं’।

‘सरकार इसे गलत तरीके से प्रस्तुत कर रही है। मज़दूर भेड़-बकरियां नहीं हैं। वे जानते हैं कि हड़ताल से उनका वेतन कटेगा, पुलिस से सामना होगा, और उन्हें नौकरी से निकाला भी जा सकता है’।

सैमसंग के आसपास के कई कारखानों में ट्रेड यूनियन हैं। इस यूनियन को बनाने के दौरान कौन-सी नई चुनौतियाँ सामने आई हैं? सरकार ने मज़दूरों के विरोध पर कैसी प्रतिक्रिया दी है?

‘हमने अन्य जगहों पर भी यही समस्याएँ झेली हैं । कंपनियां यूनियन, CITU या बाहरी लोगों को अनुमति नहीं देतीं। सैमसंग अपनी वैश्विक “नो-यूनियन नीति” के लिए जाना जाता है’।

‘उन्होंने दक्षिण कोरिया में हड़ताल को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन वहाँ के मज़दूर सफल हुए और यूनियन बनाई। भारत में, सैमसंग के नोएडा और चेन्नई में संयंत्र हैं। वे यहाँ यूनियनों को रोकने के लिए आक्रामक तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं’।

‘ जहाँ तक सरकार के प्रतिक्रिया का सवाल है तो सरकार फिलहाल वे सैमसंग के प्रवक्ता के जैसे ही काम कर रहे हैं’।

हड़ताल को अवैध क्यों कहा गया?

हड़ताल की शुरुआत 19 अगस्त को एक आधिकारिक नोटिस देकर की गई थी, जो कानूनी तौर पर आवश्यक 14 दिनों की सूचना अवधि से अधिक थी।

इसके बावजूद, राज्य सरकार ने हड़ताल को अवैध करार दिया है। यह सरकार और कंपनी की मिलीभगत का संकेत है।

सैमसंग आपके यूनियन के नाम का उपयोग करने और SIWU के अध्यक्ष के कर्मचारी न होने पर आपत्ति जताता है। आपका क्या कहना है?

‘देशभर में अधिकांश यूनियनें कंपनी के नाम का उपयोग करती हैं, अगर कुछ अपवादों छोड़ दिया तो। कर्नाटक में जब एसबीआई ने कर्मचारियों द्वारा अपने नाम का उपयोग करने पर आपत्ति जताई, तो अदालत ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाया’।

यूनियन का उद्देश्य अहंकार नहीं, बल्कि मज़दूरों के अधिकारों की रक्षा करना है। अगर जरूरत पड़ी, तो यूनियन का नाम बदला जा सकता है, लेकिन मज़दूरों की मांगों पर समझौता नहीं किया जाएगा।

जहाँ तक यूनियन में बाहरी लोगों की बात है, यह बहस ट्रेड यूनियन अधिनियम के लागू होने के बाद से 98 वर्षों से चल रही है। कंपनियां सुलह के दौरान पेशेवरों का उपयोग करती हैं। कम शिक्षा वाले मज़दूर समान रूप से कैसे बहस कर सकते हैं? अगर मज़दूर किसी ऐसे व्यक्ति को चाहते हैं जो श्रम मामलों में जानकार हो, तो क्या कंपनी इसे अनुमति नहीं देनी चाहिए?

ट्रेड यूनियन अधिनियम खुद बाहरी लोगों को पदाधिकारी के रूप में रखने का प्रावधान करता है (वे यूनियन में आधे पदों पर रह सकते हैं)।

केंद्र सरकार ने 29 श्रम कानूनों को 4 कोडों में संहिताबद्ध किया है। CITU ने कहा कि इससे ‘अधिकारों के संदर्भ में सुरक्षात्मक घटकों का उन्मूलन’ हो गया है। इसका मज़दूर आंदोलनों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?

‘ एक उदाहरण लीजिए वर्तमान में 100 से अधिक मज़दूरों वाले कारखानों को बंदी, छंटनी, या पुनः नियुक्ति के लिए श्रम विभाग से अनुमति लेनी पड़ती है। मोदी सरकार द्वारा लाया गया नया औद्योगिक संबंध कोड इसे 300 मज़दूरों तक बढ़ा देता है’।

‘ श्रीपेरंबुदूर में केवल लगभग 100 कंपनियाँ ही इस सीमा से अधिक हैं। छोटे आपूर्तिकर्ता कानून के दायरे से बाहर हो जाते हैं, जिससे नियोक्ता बिना किसी रोक-टोक के रह जाते हैं। एक कंपनी जिसमें 400 मज़दूर हैं, दो इकाइयों में विभाजित हो सकती है ताकि कानून से बचा जा सके। आप इस एक उदाहरण से समझ सकते हैं कि यह अन्यायपूर्ण है। इससे मज़दूरों के अधिकारों का हनन होगा और उनकी स्थिति और कमजोर हो जाएगी ‘।

सैमसंग मज़दूरों के विरोध का व्यापक तमिलनाडु मज़दूर आंदोलन में क्या महत्व है?

‘ यह हड़ताल मज़दूरों के अनुच्छेद 19(1) के तहत संघ बनाने के संवैधानिक अधिकार से संबंधित है। यह हड़ताल सिर्फ वेतन के बारे में नहीं है, बल्कि सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार के बारे में है। सरकार खुलेआम कंपनी का समर्थन कर रही है।

‘ यूनियन पंजीकरण एक नियमित प्रक्रिया है पिछले महीने 25 यूनियन पंजीकृत हुई थीं। लेकिन सैमसंग का तमिलनाडु सरकार पर दबाव और परिणामस्वरूप श्रम विभाग पर दबाव SIWU के पंजीकरण को रोक रहा है। इसे 45 दिनों के भीतर पंजीकृत करना अनिवार्य है, लेकिन वे देरी कर रहे हैं ‘।

‘ हमें संदेह है कि सरकार ने सैमसंग से 60 दिनों के बाद आपत्ति दर्ज करने को कहा, जिसे स्वीकार भी नहीं किया जाना चाहिए था। कुल मिलाकर देखा जाये तो इस हड़ताल का असर न सिर्फ तमिलनाडु बल्कि देश के बाकि हिस्सों में चल रहे मज़दूर आन्दोलनों पर भी पड़ेगा ‘।

सैमसंग हड़ताल के संबंध में CITU की अगली योजना क्या है?

‘ मज़दूरों कि ये हड़ताल तब तक जारी रहेगी जब तक यूनियन स्थापित नहीं हो जाती। यदि मज़दूर एक या दो महीने और दृढ़ रहें, तो याद रखें यामाहा के मज़दूरों ने अपनी यूनियन बनाने के लिए 63 दिनों तक हड़ताल की थी। सैमसंग को भी अंततः झुकना ही पड़ेगा’।

‘ यह हड़ताल न सिर्फ तमिलनाडु बल्कि पुरे देश में मज़दूर आंदोलनों के भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है, क्योंकि यह सिर्फ एक कंपनी के खिलाफ नहीं, बल्कि मज़दूर अधिकारों की बड़ी लड़ाई का हिस्सा है’ ।

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Abhinav Kumar

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