अपने जूते के फीते बांध रहे हैं लोग’ मशहूर कविता लिखने वाले मज़दूरों के कवि श्रीहर्ष नहीं रहे
कवि के जाने के बाद भी उनके शब्द रह जाते हैं जनचेतना जगाने के लिए और आंदोलन भी लेता है सहारा कवि के शब्दों का समय आने पर, वह कवि अगर जनता का कवि हुआ तो युगों -युगों तक जिन्दा रहते हैं उसके बोल।
निम्लिखित पंक्तियों को देखिये, ये पंक्तियां महज चंद शब्द नहीं हैं। ये पंक्तियाँ मानों किसी क्रांति का आह्वान है। लेकिन कवि श्रीहर्ष अब नहीं रहे हमारे बीच।
“सोचना -बोलना जरूरी है
जो देखते हैं लिखना जरूरी है
ऐसे समय में ज़िंदा रहना ज़रूरी है
डर कर मरने से पहले
ज़िंदा रहना ज़रूरी है…”
उक्त पंक्तियों के रचैयता प्रसिद्ध जनवादी कवि श्री हर्ष का शुक्रवार को दोपहर राजस्थान के बीकानेर स्थित उनके निवास पर निधन हो गया। वे 88 साल के थे और पिछले काफ़ी दिनों से बीमार चल रहे थे। उन्हें पिछले कुछ दिनों से साँस की तकलीफ़ थी।
श्री हर्ष कोलकाता के साहित्य जगत के एक जाने-माने व्यक्ति थे। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से ही हिंदी में एम.ए. किया था। कोलकाता में अपनी नौकरी के प्रारंभिक दिनों से ही वे ‘वातायन’ पत्रिका के स्थानीय प्रतिनिधि के रूप में भी काम करते थे। कोलकाता प्रवास के दौरान ही वे यहाँ के कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़ गए और हिंदी भाषी शिक्षकों के आंदोलन में विशेष तौर पर सक्रिय रहे। कवि श्रीहर्ष ने पश्चिम बंगाल के साहित्य समाज में गरिमामय पहचान और प्रतिष्ठा अर्जित की।
उन्होंने कोलकाता के साहित्यकारों की रचनाओं के संकलन महानगर 66 का भी संपादन किया। श्रीहर्ष की कविताओं के कई संकलन प्रकाशित हुए हैं। ‘समय के पहले’, ‘राजा की सवारी’, ‘रोशनी की तलाश’, ‘मछलियां ठहरे तालाब की’, ‘घर का सच’ उनके कविता संकलन हैं । इनके अलावा उनकी कहानियों का भी एक संकलन प्रकाशित हुआ —’आदमी और आदमी’।
उनके छोटे भाई और कवि सरल विशारद ने बताया कि श्रीहर्ष ने देहदान का निर्णय ले रखा था। उनकी उस इच्छा का सम्मान करते हुए रविवार 10 दिसंबर को सुबह उनके निवास स्थान बेनीसर बारी से शव यात्रा सरदार मेडिकल कॉलेज, बीकानेर के एनाटोमी विभाग जाएगी और परिजनों, मित्रों, परिचितों और पार्टी साथियों की उपस्थिति में देह वहां सुपुर्द की जाएगी।
कवि श्रीहर्ष के निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है, कई कवि और जनवादी एक्टिविस्टों ने उन्हें याद करते हुए श्रद्धांजलि दी है।
कवि महेंद्र ने श्रीहर्ष के निधन के बाद अपने फेसबुक पटल पर लिखा है:-
“अलविदा श्रमिक वर्ग के संचित क्रोध के कवि
साथी श्रीहर्ष
आज सुबह साथी सरल विशारद से सूचना मिली कि श्री हर्ष नहीं रहे। वे पिछले कुछ वर्षों से अस्वस्थ थे, उम्र दराज भी। किन्तु कविता के मोर्चे पर सचेत -सक्रिय। श्रीहर्ष कलकत्ता के श्रमिकों की आवाज़ थे। यह आवाज़ प्रतिरोध और आन्दोलन की आवाज़ थी। किन्तु नारेबाजी नहीं, उससे कहीं अधिक ताकतवर। अधिक गंभीर और अधिक मुखर।
हम 1972 में मिले। जब कलकत्ता में सिद्धार्थ शंकरराय का अर्द्ध फासिस्टी दमन मजदूरों को ही नहीं, युवकों और कवि -कलाकारों को भी अपने बूटोंतले कुचल रहा था।
पश्चिम बंगाल छोड़ कर मजदूर अपने अपने अंचलों में लौट रहे थे। श्री हर्ष ने कविता लिखी -‘अपने जूतों के फीते बाँध रहे हैं लोग ‘, उनकी कविता में जो ताप था, उत्तर भारत के कवियों के पास नहीं था।
समय ने करवट बदली . …. अध्यापक की नौकरी से सेवा निवृत्त होने के बाद वे कलकत्ता से अपने गृह नगर बीकानेर आ गए। किन्तु ह्रदय के अन्दर एक ज्वाला धधकती रही, निरंतर।
“अभिव्यक्ति ” के अप्रेल, 2022 अंक में प्रकाशित उनकी कविता के अंश के साथ संचित क्रोध और जनवादी मूल्यों के लिए आजीवन संघर्षरत साथी श्रीहर्ष को क्रांतिकारी सलाम ! हज़ारों हज़ार नमन !”
जनकवि श्रीहर्ष को वर्कर्स यूनिटी की ओर से श्रद्धांजलि, क्रांतिकारी सलाम!
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