तमिलनाडु : गार्मेंट वर्कर्स के महंगाई भत्ते में सरकारी हिस्सा आधा किया, यूनियनों ने जताई आपत्ति
तमिलनाडु सरकार ने गारमेंट इंडस्ट्री में कार्यरत मज़दूरों के लिए महंगाई भत्ता (डीए) सम्बन्धी अपनी पिछली अधिसूचना को पलटते हुए नई अधिसूचना के तहत अपनी हिस्सेदारी को आधा कर दिया है।
यह एक बड़ा बदलाव है और पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत किए गए दावों के बिल्कुल उलट है।
सरकार के इस फैसले के बाद मज़दूरों के बीच इस बात को लेकर हलचल देखने को मिल रही है।
गारमेंट एंड फैशन वर्कर्स यूनियन (GAFWU) की अध्यक्ष सुजाता मोदी ने सरकार इस ऐलान के बाद कहा कि, ” इस फरमान के बाद वित्तीय वर्ष (मार्च-अंत 2025 तक) के लिए प्रति माह डीए अब 4,070 रुपये होगा, जबकि पहली अधिसूचना के तहत डीए गणना के अनुसार यह 8,130 रुपये बनता। सरकार ने मज़दूरों के सामने एक अजीब सी स्थिति पैदा कर दी है, जबकि सात महीने पहले सुप्रीम कोर्ट में इसके लिए हामी भरी गई थी।”
चेन्नई स्थित यह यूनियन 2010 से ही गारमेंट मज़दूरों के लिए समय-समय पर न्यूनतम वेतन संशोधन के लिए लड़ाई लड़ रही है।
यूनियन सरकार द्वारा 31 मई, 2024 को दिये गए उनके नए आदेश के अनुसार डीए में कटौती का विरोध कर रही है। उनकी मांग है कि 6 नवंबर, 2023 को सरकार द्वारा दी गई प्रारंभिक अधिसूचना को बिना किसी बदलाव के बहाल किया जाए।
गौरतलब है कि राज्य में स्थित यह उद्योग पूरी तरह से वैश्विक बाजारों के साथ एकीकृत है. इन उद्योगों में कार्य करने वाले अधिकांश मज़दूर महिलाएं हैं और उनमें भी ज्यादातार भूमिहीन प्रवासी, दलित और अन्य सामाजिक रूप से वंचित समुदायों से आते हैं।
इन मज़दूरों को मालिक अपनी शर्तों के साथ रखते हैं. जयदातार मज़दूर ठेकेदारों के अधीन होते हैं और इनके पास नौकरी की बेहद कम या कोई सुरक्षा नहीं होती. इन मज़दूरों से गुलामों जैसा काम लिया जाता है।
उधर स्वयं को सामाजिक न्याय और महिलाओं को हक़ देने वाली सरकार बताने वाली DMK सरकार की भारी आलोचना हो रही है।
मालूम हो कि गारमेंट इंडस्ट्री में रेडीमेड गारमेंट निर्यातक, बड़े संगठित घरेलू निर्माता और साथ ही छोटे और मध्यम उद्यम से लेकर कुछ मशीनों वाली घर-आधारित इकाइयाँ शामिल हैं।
यह एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है जो लाखों लोगों को रोजगार देता है और बड़े पैमाने पर एक निर्दयी प्रतिस्पर्धी वैश्विक बाजार के लिए उत्पादन करता है।
तमिलनाडु में नियोक्ताओं की ओर से गंभीर विरोध और मुकदमेबाजी की वजह से इस उद्योग ने 2014 से न्यूनतम मजदूरी में संशोधन नहीं देखा है।
ख़बरों की माने तो सुप्रीम कोर्ट में नियोक्ताओं, राज्य सरकार और GAFWU के बीच एक मामला चल रहा था. जिसमें राज्य सरकार को पिछले साल मजदूरी संशोधित करने के लिए अधिसूचना जारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
सरकार द्वारा लाई गई नई अधिसूचना में ‘मूल’ अनुशंसित वृद्धि दर को बिना बदले (नवंबर 2023 के जीओ के अनुसार) डीए गणना को दो तरीकों से बदल दिया है।
एक, इसने 2010 से 2013 तक डीए वृद्धि की गणना के उद्देश्य से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) को ध्यान में रखते हुए ‘प्रारंभ’ वर्ष को आगे बढ़ा दिया है। और दूसरा इसने चयनित वर्ष के लिए सीपीआई के अलावा इसने सीपीआई में प्रति पॉइंट वृद्धि दर के लिए निर्धारित डीए राशि को 45.95 रुपये से घटाकर 33.94 रुपये कर दिया है।
इसका कुल प्रभाव इस उद्योग में सभी मज़दूरों के लिए डीए में कमी के रूप में आया है, जो पहली अधिसूचना के अनुसार 8,130 रुपये से घटकर नए आदेश में 4,070 रुपये प्रति माह या लगभग आधा हो गया है।
चूंकि न्यूनतम वेतन, मूल वेतन और डीए का कुल योग है, इसलिए यह प्रत्येक मज़दूर के लिए न्यूनतम वेतन में लगभग 4,060 रुपये प्रति माह (दोनों के बीच का अंतर) की कमी के बराबर है।
इससे उन मज़दूरों के लिए बहुत बड़ा अंतर पड़ता है, जो आम तौर पर 8-9 घंटे काम करने के बदले 10,000-12,000 रुपये या उससे कम (333 से 400 रुपये प्रतिदिन) मासिक वेतन कमाते हैं।
किसके दबाव में लिए गए फैसले
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) से संबद्ध और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव टीएम मूर्ति ने कहा, “न्यूनतम वेतन उप-समिति (एक त्रिपक्षीय निकाय) ने न तो डीए में कटौती की सिफारिश की और न ही इसे स्वीकार किया और हमारी सिफारिशों को राज्य सलाहकार बोर्ड के समक्ष रखा गया था. अगर डीए में कटौती की गई है, तो यह गलत है।”
टीएम मूर्ति न्यूनतम वेतन उप-समिति के सदस्य थे।
द न्यूज़ मिनट से बात करते हुए उन्होंने कहा, “नियोक्ता की तरफ से शामिल प्रतिनिधि कुछ कौशल श्रेणियों में तीसरा या उससे भी निचला ग्रेड शामिल करवाने की कोशिश कर रहे थे, जिसका हमने विरोध किया। इससे अप्रत्यक्ष रूप से सभी श्रमिकों का डीए कम हो जाता। लेकिन उन्होंने डीए को कम करने की खुले तौर पर मांग नहीं की।”
इन सब के बीच यह अपरिहार्य प्रश्न उठता है कि डीए में बदलाव किसने किया और किस स्तर के लोग इस फैसले के निर्णायक के तौर पर थे ?
31 मई, 2024 के सरकारी आदेश को पढ़ने से पता चलता है कि प्रधान सचिव/श्रम आयुक्त की अध्यक्षता वाले न्यूनतम मजदूरी (राज्य) सलाहकार बोर्ड को “ऐसे संशोधन से प्रभावित होने वाले व्यक्तियों से” आपत्तियां और सुझाव प्राप्त हुए थे और कुछ संशोधन के साथ उक्त प्रारंभिक अधिसूचना की पुष्टि करने का निर्णय लिया गया।”
श्रम आयुक्त, तमिलनाडु को भेजे गए ईमेल में उत्तर मांगा गया था और डीए गणना में अचानक बदलाव के आधार का खुलासा करने का अनुरोध किया गया था साथ ही ऐसे तय करने के लिए यदि कोई ‘वैज्ञानिक’ पद्धति अपनाई गई थी तो उसको लेकर भी जानकारी मांगी गई थी. लेकिन इस लेख के प्रकाशित होने तक सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है ।
करीब एक महीने पहले जारी किया गया सरकारी आदेश विभाग की वेबसाइट पर भी नहीं डाला गया है और न ही सार्वजनिक डोमेन में कहीं उपलब्ध है।
ध्यान देने वाली बात ये है कि विसंगतियां यहीं खत्म नहीं होती हैं। 26 फरवरी, 2024 को श्रम विभाग ने 1 अप्रैल, 2024 से 72 अनुसूचित रोजगारों के लिए वार्षिक डीए संशोधन की घोषणा की, जिसमें से एक गारमेंट उद्योग भी था।
इसने आधिकारिक तौर पर इस वित्तीय वर्ष के लिए उद्योग में मज़दूरों के लिए डीए 5,495 रुपये तय किया, जो इसकी पिछली सिलाई मजदूरी अधिसूचना (2014 में, या 10 साल पहले) में निर्दिष्ट गणना पद्धति पर आधारित है। यह डीए पहले से ही 4,070 रुपये के डीए से अधिक है, जिसका अर्थ है नई अधिसूचना को बिना जानकारी दिए ही लागू कर दिया गया है।
बनियन के महासचिव जी संपत और सीआईटीयू के पोथु थोझिलालार संघम ने तिरुपुर में कहा “न केवल पहली अधिसूचना की तुलना में डीए कम किया गया है, बल्कि यह अब 2014 की अधिसूचना के अनुसार मौजूदा डीए से लगभग 2000 रुपये कम है। यह श्रमिकों के साथ बहुत बड़ा अन्याय है।”
तमिलनाडु सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव/प्रधान सचिव को लिखे पत्र में गारमेंट एंड फैशन वर्कर्स यूनियन (GAFWU) की अध्यक्ष सुजाता मोदी ने नवीनतम आदेश को “मनमाना और पूर्वनिर्धारित” बताया है।
मज़दूरों के अधिकारों की खुलेआम हकमारी
इस फैसले के बाद यह पूरी तरह से साफ़ है कि वर्तमान डीएमके सरकार ने ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधित्व के बावजूद ‘टेलरिंग’ और ‘होजरी और निटवियर’ उद्योगों के बीच चल रहे इस कशमकश को दूर करने के लिए कुछ नहीं किया है।
इससे पहले पिछली एआईएडीएमके सरकार ने 2016 में ऐसी ही एक अधिसूचना पेश की और 2018 में बिना किसी परामर्श के ऐसे लागू भी कर दिया ,जिसके बाद होजरी और निटवियर क्षेत्र में न्यूनतम मजदूरी में और भी गिरावट आई।
ट्रेड यूनियन सूत्रों ने आरोप लगाया है कि “यह विभाजन स्पष्ट रूप से तिरुपुर स्थित राजनीतिक रूप से प्रभावशाली निटवियर परिधान निर्यातकों की लॉबी के इशारे पर किया गया था, ताकि उनकी मजदूरी लागत कम रहे”।
दिलचस्प बात यह है कि टेलरिंग उद्योग में डीए को घटाकर 4,070 रुपये प्रति माह करने से यह 31 जनवरी, 2024 की प्रारंभिक अधिसूचना के अनुसार होजरी और निटवियर निर्माण उद्योग में मज़दूरों के पहले के डीए से भी कम हो जाता है।
सीआईटीयू ट्रेड यूनियन नेता संपत ने कहा ” इस सरकार ने लाखों मज़दूरों के साथ घोर विश्वासघात किया है। पिछले साल, हमने श्रम मंत्री और श्रम सचिव से मुलाकात की और कहा कि होजरी/निटवियर उद्योग और टेलरिंग उद्योग के बीच चल रहे इस विवाद को जल्द हल किया जाये जो जिसे पिछली सरकार ने 2018 में अवैध रूप से बनाया था। श्रम सचिव ने तब हमें बताया कि वे अगले संशोधन के आने पर न्यूनतम वेतन समिति में इस मुद्दे को उठाएंगे। लेकिन कुछ नहीं किया गया, इसके बजाय, उन्होंने दो अलग-अलग न्यूनतम वेतन जारी रखे हैं, और अब महंगाई भत्ते में भी कटौती कर दी है।”
श्रम कल्याण और कौशल विकास मंत्री सीवी गणेशन ने टिप्पणी के लिए संपर्क किए जाने पर अभी तक इस मुद्दे को लेकर कोई जवाब नहीं दिया है ।
(द न्यूज़ मिनट की खबर से साभार )
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