फिल्म उद्योग में महिलाओं की बदतर हालत, रिपोर्ट से उजागर हुई मलयालम फिल्म उद्योग की काली सच्चाई
“महिलाओं के साथ हो रहे अन्याय पर हेमा समिति की रिपोर्ट: मलयालम फिल्म उद्योग में ‘कास्टिंग काउच’ का खुलासा”
2017 में एक अभिनेत्री के अपहरण और यौन शोषण के मामले के सामने आने के बाद केरल सरकार ने मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं की समस्याओं पर गौर करने के लिए हेमा समिति का गठन किया था।
अब, इस समिति की रिपोर्ट में फिल्म उद्योग में महिलाओं की स्थिति पर चिंताजनक तथ्य सामने आए हैं। रिपोर्ट में ‘कास्टिंग काउच’ जैसी घटनाओं की पुष्टि की गई है और महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय का पर्दाफाश किया गया है।
रिपोर्ट में खुलासे
जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट में मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं के खिलाफ होने वाले शोषण और उत्पीड़न की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है।
रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि इस उद्योग में महिला अभिनेत्रियों को काम के बदले अक्सर ‘समझौता’ करने का दबाव डाला जाता है।
पुरुष वर्चस्ववादी इस उद्योग में यौन शोषण और उत्पीड़न का सामना करने वाली महिलाओं को मुंह बंद रखने की धमकी दी जाती है।
मालूम हो 13 अगस्त को इस मामले में सुनवाई के दौरान केरल हाईकोर्ट ने रिपोर्ट को जारी करने के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद ये रिपोर्ट पीड़ितों और अभियुक्तों के नाम के बिना जारी की गई है।
समिति ने सरकार को 295 पन्नों की एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें से संवेदनशील जानकारियां हटाकर 235 पन्ने की रिपोर्ट जारी की गई है।
रिपोर्ट में यौन शोषण, अवैध प्रतिबंध, भेदभाव, नशीली दवाओं और शराब के दुरुपयोग, वेतन में असमानता, और अमानवीय कार्य परिस्थितियों की कहानियां सामने आई हैं।
यह रिपोर्ट दिसंबर 2019 में सरकार को सौंपी गई थी, लेकिन इसे करीब पांच साल बाद 19 अगस्त को जारी किया गया है।
यौन शोषण और कार्य परिस्थितियों पर चिंताएं
हेमा समिति की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि यदि अभिनेत्रियां यौन संबंध (सेक्सुअल फेवर) से इनकार करती हैं, तो उन्हें प्रोजेक्ट से बाहर कर दिया जाता है।
इनकार करने वाली महिलाओं को एक ही शॉट को बार-बार देने के लिए मजबूर किया जाता है।
रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि महिला कलाकारों को बेहद कष्टकर परिस्थितियों में काम करना पड़ता है।
फिल्म उद्योग में जो आंतरिक शिकायत समिति है वो भी सिर्फ नाममात्र की है, महिलाओं की शिकायत सुनने वाला कोई तंत्र नहीं है।
कई महिलाओं की आपबीती बताती है की उद्योग की चमक केवल सतही है, असल में यहां का माहौल बिलकुल नरक जैसा है।
रिपोर्ट में यह आरोप लगाया गया है कि मुट्ठी भर निर्माता, निर्देशक, अभिनेता और प्रोडक्शन कंट्रोलर मिलकर एक गिरोह चला रहे हैं, जो मलयालम सिनेमा उद्योग को नियंत्रित कर रहे हैं।
मलयालम फिल्म उद्योग में कुछ प्रमुख निर्माता-निर्देशक और कलाकार ऐसे हैं, जो किसी का करियर बनाने या बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि महिला कलाकारों को नशे में धुत पुरुषों द्वारा उनके कमरों के दरवाजे खटखटाने जैसी हरकतों का सामना करना पड़ता है।
यहां जो महिलाएं समझौता करने के लिए तैयार हो जाती हैं, उन्हें ‘कोड नाम’ दिया जाता है, और जो नहीं तैयार होतीं, उन्हें काम से वंचित रखा जाता है।
रिपोर्ट की सिफारिशें
रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं की समस्याओं को हल करने के लिए एक सख्त कानून बनाया जाए और इसके तहत एक ट्रिब्यूनल का गठन किया जाए।
इस ट्रिब्यूनल को एक सिविल कोर्ट के रूप में कार्य करना चाहिए, जिसका नेतृत्व एक महिला सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश करें जिनको कम से कम पांच ट्रायल का अनुभव हो।
नए कानून में महिलाओं के लिए सुरक्षित आवास और परिवहन विकल्प, शौचालय और चेंजिंग रूम की सुविधा, फिल्म सेट पर नशीली दवाओं और शराब पर प्रतिबंध, और विशेष रूप से जूनियर कलाकारों के लिए कार्य अनुबंधों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने का प्रावधान होना चाहिए।
डब्लूसीसी की प्रतिक्रिया
मलयालम सिनेमा उद्योग में महिला पेशेवरों के संगठन वूमेन इन सिनेमा कलेक्टिव (डब्लूसीसी) ने हेमा समिति की रिपोर्ट का स्वागत किया है और उम्मीद जताई है कि सरकार इस रिपोर्ट की सिफारिशों का अध्ययन कर उन पर त्वरित कार्रवाई करेगी।
हेमा समिति की रिपोर्ट ने मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं के खिलाफ हो रहे शोषण और उत्पीड़न की वास्तविकता को सामने लाया है।
यह रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि फिल्म उद्योग में महिलाओं को एक सुरक्षित और समान कार्य वातावरण प्रदान करने के लिए त्वरित और सख्त कदम उठाने की जरूरत है।
उम्मीद है कि सरकार इन सिफारिशों को गंभीरता से लेगी और महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाएगी।
( हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर से इनपुट के साथ )
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