भारतीय बैंकिंग का काला सच: कार्यस्थल दबाव के कारण कर्मचारियों की बढ़ती आत्महत्याएं
रिपोर्टों के अनुसार लगभग 500 बैंक कर्मचारियों ने कार्य के दबाव के कारण आत्महत्या कर ली है
भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में पिछले एक दशक में कार्य के बढ़ते बोझ ने कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाला है।
हाल के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 500 बैंक कर्मचारियों ने आत्महत्या कर ली है, जो कार्य की असहनीय स्थितियों का परिणाम है।
बैंक कर्मचारियों के यूनियनों का मानना है कि उनके पास कर्मचारियों के ऐसे दर्जनों पत्र है जिनमें कर्मचारी ने जिक्र किया है कि कैसे उनपर धोखाधड़ी करने का दबाव डाला जाता है ताकि लक्ष्यों को प्राप्त करने की झूठी तस्वीर पेश की जा सके।
ये पत्र कर्मचारियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार और धोखाधड़ी से भरे पड़े हैं।
इस लेख में हम उन समस्याओं का विश्लेषण करेंगे, जो बैंक कर्मचारियों के साथ हो रही हैं, और यह कैसे ग्राहकों और बैंकिंग प्रणाली को भी प्रभावित कर रही हैं।
कार्य का बोझ और मानसिक स्वास्थ्य
बैंकिंग क्षेत्र में कर्मचारियों पर अत्यधिक कार्यभार और दुर्व्यवहार की स्थिति ने उन्हें निराशा और तनाव की ओर धकेल दिया है।
एक युवा बैंक कर्मचारी ने अपनी शादी की सालगिरह पर आत्महत्या का प्रयास किया जब उसके वरिष्ठ अधिकारी ने उसे करियर बर्बाद करने की धमकी दी। इसी तरह, अन्य बैंक कर्मचारियों ने भी कार्य से संबंधित दबाव के कारण आत्महत्या करने का कदम उठाया है।
फरवरी 2024 में गुजरात में यूनियन बैंक के एक मुख्य प्रबंधक ने आत्महत्या की, जिसमें उसने कार्य संस्कृति और लक्ष्यों का उल्लेख किया।
इसके बाद तमिलनाडु में यूको बैंक के एक शाखा प्रबंधक ने भी आत्महत्या की, जो कार्य से संबंधित दबाव के कारण हुआ। आत्महत्या से पहले इस प्रबंधक ने अपने पत्र में जिक्र किया कि ‘ कर्मचारियों को असंभव से टारगेट पूरा करने के लिए आतंकित किया जाता है। ऐसा नहीं होना चाहिए अन्यथा मेरे जैसे और लोग आत्महत्या करने पर मजबूर होंगे’।
पिछले हफ्ते ही मुंबई में एक बैंक मैनेजर सुशांत चक्रवर्ती ने अटल सेतु से समुन्द्र में छलांग लगा कर आत्महत्या कर ली। उनकी पत्नी ने बताया ‘पति बैंक द्वारा दिए जा रहे टारगेट से काफी प्रेशर में थे और तनाव की वजह से उन्होंने खुद की जान ले ली’।
एक अनुमान के अनुसार कार्य से संबंधित समस्याओं के कारण पिछले एक दशक में भारत में कम से कम 500 बैंक कर्मचारियों को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा है।
इस प्रकार की घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि बैंकिंग क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य एक गंभीर समस्या है।
वरिष्ठ अधिकारियों का दुर्व्यवहार
कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। कई बैंक कर्मचारियों ने अपने पत्रों में वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न का उल्लेख किया है।
कुछ मामलों में, कर्मचारियों ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले दर्ज किए हैं। यूनियनों ने कहा कि प्रबंधक किसी भी तरह से बैंक के व्यवसायिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कर्मचारियों पर दबाव डालते हैं।
कुछ मामलों में मृतक के परिवार ने वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया, जिनमें से कुछ को गिरफ्तार भी किया गया।
ग्राहकों पर प्रभाव
यूनियन का तर्क है कि प्रबंधक व्यापारिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए निरंतर दबाव डालते हैं, जिससे कर्मचारी कमजोर और वरिष्ठ प्रबंधन की कृपा पर निर्भर हो जाते हैं।
यह विषाक्त वातावरण ग्राहकों पर भी असर डालता है, जो आंतरिक समस्याओं के परिणामों से नहीं बच पाते।
इस तरह के आंतरिक संकट का प्रभाव ग्राहकों पर भी पड़ रहा है। 2013 की एक शोध रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि 2004 और 2012 के बीच बैंकों द्वारा किए गए बीमा उत्पादों की धोखाधड़ीपूर्ण बिक्री ने बैंकों के ग्राहकों से 1.5 लाख करोड़ रुपये की लूट की थी।
‘The Reporters’ Collective ‘ की एक हालिया खोजी रिपोर्ट से पता चला है कि यह संगठित लूट अभी भी न सिर्फ जारी है बल्कि पहले से भी ज्यादा बढ़ गई है।
हाल ही में किए गए शोध ने दिखाया है कि धोखाधड़ीपूर्ण प्रथाएँ अभी भी प्रचलित हैं, जिससे ग्राहकों का विश्वास बैंकिंग प्रणाली में कम हो रहा है।
डेढ़ साल में, दो दर्जन से अधिक बैंक कर्मचारियों ने एक मिडिया संस्थान को ऐसे कई घोटालों के बारे में बताया, कुछ ने तो सबूत भी पेश किए।
उन्होंने बताया कि कैसे प्रबंधक मामले की पूरी जानकारी होने के बाद भी कुछ नहीं करता। कुछ पत्रों में भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ जानकारी दी गई, जिन पर किकबैक लेने या धोखाधड़ी को बढ़ावा देने का आरोप था।
धोखाधड़ी प्रथाओं की जांच
बैंकिंग प्रथाओं की जांच में प्रणालीगत मुद्दे सामने आए हैं। कई कर्मचारियों ने वर्णन किया है कि प्रबंधक प्रदर्शन को नैतिक आचरण पर प्राथमिकता देते हैं, जिससे डर और आतंक का एक वातावरण बनता है।
आर्टिकल 14 की समीक्षा के अनुसार, 100 से अधिक पत्रों में कर्मचारियों और यूनियनों ने प्रबंधन को अभद्रता और विभिन्न बैंकों में अनैतिक प्रथाओं के सामान्यीकरण का विवरण दिया है।
साक्ष्यों से स्पष्ट होता है कि बैंकिंग संस्कृति कर्मचारी दमन और असंतोष को बढ़ावा देती है, जो व्यापक धोखाधड़ी का कारण बनती है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) और उल्लेखित बैंकों ने कर्मचारियों के उत्पीड़न और धोखाधड़ी के आरोपों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है।
कामकाजी वातावरण
बैंक कर्मचारियों के बीच सामान्य शिकायतें उत्पीड़न, अपमान, और अमानवीय व्यवहार से संबंधित हैं।
इससे उनके कामकाजी जीवन में असंतुलन और स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं, जिनमें अवसाद और चिंता शामिल हैं।
एक कर्मचारी ने लिखा कि उसके क्षेत्रीय प्रबंधक ने उसे काम पर वापस आने के लिए धमकी दी, जो इस संकट की गंभीरता को दर्शाता है।
एक कर्मचारी ने अपने पत्र में आरोप लगाया कि उसके क्षेत्रीय प्रबंधक ने उसे शाम 7 बजे घर जाने की अनुमति मांगने पर जान से मारने की धमकी दी थी।
कुछ कर्मचारियों को व्यक्तिगत त्रासदियों के दौरान छुट्टी नहीं दी गई, जिससे कार्यस्थल संस्कृति की कठोरता का पता चलता है।
बैंक ऑफ बड़ौदा (BoB) के एक कर्मचारी ने एक रिश्तेदार की मृत्यु के बाद छुट्टी मांगी, तो उसके क्षेत्रीय प्रबंधक ने व्यवसाय की निरंतरता की आवश्यकता के बारे में एक कठोर टिप्पणी करते हुए अनुरोध को खारिज कर दिया।
सितंबर 2022 में राजस्थान में बैंक ऑफ बड़ौदा (BoB) के कर्मचारी एक क्षेत्रीय प्रबंधक के खिलाफ खड़े हो गए। यूनियन को उस क्षेत्रीय प्रबंधक के बारे में मिली शिकायतों के अनुसार कर्मचारियों को आत्महत्या या इस्तीफा देने के लिए मजबूर करने को वो अपनी उपलब्धि मानता था। उसने कथित तौर पर कहा, “अगर कुछ लोग मर भी जाएं तो भी बैंक पर कोई असर नहीं पड़ेगा।”
यूनियनों के पत्रों में उसके व्यवहार को लेकर कई बातें बताई गई। उसने कथित तौर पर अपनी मां की मृत्यु के बाद एक शाखा प्रमुख को काम पर वापस बुलाया और दिवंगत माता को “बुढ़िया” कहकर संबोधित किया।
यूनियनों के पत्रों में उस पर कर्मचारियों को रात 1 बजे तक कार्यालय में बंधक बनाए रखने और ग्राहकों के खातों से बिना सहमति के बीमा योजनाओं के लिए पैसे डेबिट करने का भी आरोप लगाया गया।
यूनियनों की इस अधिकारी पर लगाम कसने की मांग के जवाब में बैंक ने घोषणा की कि वह उन कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करेगा, जिन्होंने सोशल मीडिया पर इस मामले को उठाया था। उसी दिन, बैंक ने X (पहले ट्विटर) पर घोषणा की कि मामला सौहार्दपूर्वक हल हो गया है।
पांच दिन बाद, राजस्थान के विभिन्न हिस्सों से एक हजार से अधिक बैंक ऑफ बड़ौदा (BoB) कर्मचारी बैंक के जयपुर कार्यालय के बाहर एक प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला। प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले लोगों को अगले स्थानांतरण सत्र में दूरस्थ स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया गया।
प्रदर्शन के छह महीने बाद, बैंक को “ग्रेट प्लेस टू वर्क” के रूप में प्रमाणित किया गया, जो कि ग्रेट प्लेस टू वर्क इंस्टीट्यूट द्वारा दिया गया एक रेटिंग है, जो एक वैश्विक शोध, परामर्श, और प्रशिक्षण फर्म है।
भारत के सबसे बड़े सरकारी बैंक, भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को 2023 में बैंकिंग क्षेत्र में सबसे पसंदीदा कार्यस्थल घोषित किए जाने ( इवेंट मैनेजमेंट फर्म टीम मार्क्समेन द्वारा घोषित) के तीन महीने के बाद चंडीगढ़ में बैंक के कर्मचारियों ने अपने संघ को शिकायत की कि एक उपमहाप्रबंधक ने न केवल कर्मचारियों को इस्तीफा देने की चुनौती दी बल्कि आत्महत्या के लिए भी उकसाया।
लगभग इसी समय अहमदाबाद में सभी कर्मचारियों के एक संघ ने बैंक के स्थानीय प्रशासनिक कार्यालय को एक पत्र लिखते हुए यह चिंता व्यक्त की कि एक कर्मचारी अपने सहायक महाप्रबंधक के कारण अत्यधिक तनाव और डर में है।
एक महीने बाद, चंडीगढ़ के एक BoB कर्मचारी ने प्रबंधन को लिखा कि, ‘उसके क्षेत्रीय प्रबंधक के हाथों जो आघात और अपमान वह झेल रहा था, उससे वह आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो गया है, और यदि वह अपनी जान ले लेता है, तो इसके लिए उस प्रबंधक को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए’।
2023 में UCO बैंक के दिल्ली क्षेत्र के कर्मचारियों का अपने क्षेत्रीय प्रबंधक के प्रति इतनी निराशा थी कि उन्होंने उसके व्यवहार को दर्ज करते हुए 41 पन्नों की एक पुस्तकिका निकाली और प्रबंधन से हस्तक्षेप करने की मांग की।
उत्तर प्रदेश (UP) के आर्यावर्त बैंक के एक कर्मचारी ने अपने भाई की मौत के कारण छुट्टी मांगी, तो उसके क्षेत्रीय प्रबंधक ने उसे व्हाट्सएप पर कहा, “आपकी शाखा का व्यवसाय स्थिति अच्छी नहीं है। छुट्टी नहीं दी जा सकती।”
UP में एक BoB कर्मचारी की दादी की मृत्यु के मद्देनजर स्वीकृत छुट्टी को रद्द करते हुए उसके वरिष्ठ ने कहा, ‘नानी-दादी मरती रहेंगी, काम पर ध्यान दो’।
कैनरा बैंक, पुणे सर्कल में क्षेत्रीय कार्यालयों ने अगस्त 2022 से छह महीने तक सभी सार्वजनिक छुट्टियों पर काम करने के लिए कर्मचारियों को निर्देशित करते हुए एक पत्र जारी किया, वह भी बिना किसी मुआवजे के।
प्रमोशन का खेल
यूनियन नेताओं का कहना है कि प्रबंधक सफल व्यावसायिक अभियानों को प्रदर्शित करके पदोन्नति में बढ़त हासिल करते हैं, जिससे आतंक के इस चक्र को और बढ़ावा मिलता है।
परिणामस्वरूप, कर्मचारी अनैतिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए मजबूर महसूस करते हैं ताकि असंभव लक्ष्यों को पूरा किया जा सके।
अशिष मिश्रा जो ‘वी बैंकर एसोसिएशन’ ( उत्तर प्रदेश में बैंक कर्मचारियों का एक ट्रेड यूनियन) के महासचिव हैं बतातें हैं, ‘जब मैनेजर बैंक के व्यापार अभियानों में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो वे पदोन्नति की दौड़ में दूसरों के मुकाबले आगे होते हैं , इसलिए वो अपने अधीनस्थों को धमकी देने में जरा भी नहीं हिचकिचाते बल्कि वो इसे काम को पूरा करने का एक प्रभावी तरीका मानते है। यह दबाव फिर धोखाधड़ी को बढ़ावा देता हैं ‘।
आर्टिकल 14 से बात करते हुए बैंकों में हो रहे धोखाधड़ी को लेकर एक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के शाखा प्रमुख ने कहा, ‘ शाम को हम वापस आते हैं और सोचते हैं कि हमें कल किस गलत काम को करना पड़ेगा’।
जो लोग भी इस तरह के धोखाधड़ी में शामिल नहीं होते उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी जाती हैं।
एक युवा अधिकारी ने कहा कि ‘ उसके प्रबंधक ने उसे अवैध कार्यों को न करने के लिए बांग्लादेश सीमा के पास एक गांव में स्थानांतरित करने की धमकी दी’।
एक अन्य बैंक ने एक अधिकारी को अपने अपमानजनक प्रबंधक के खिलाफ बोलने पर पाकिस्तान सीमा के पास एक गांव में स्थानांतरित कर दिया। आर्टिकल 14 ने कई ऐसे कर्मचारियों से बात की है जिन्हें सजा के तौर पर ऐसे स्थानांतरण दिए गए हैं।
अनियमितता उजागर करने के परिणाम
बैंक ऑफ इंडिया कर्मचारी मिश्रा बताते हैं 2022 में उन्हें भी एक अनियमितता उजागर करने के बाद ऐसे ही स्थानांतरित कर दिया गया था।
उन्होंने अदालत में अपने स्थानांतरण को चुनौती दी, जिसने जून 2023 में उनके पक्ष में फैसला सुनाया और तीन वरिष्ठ बैंक अधिकारियों पर श्रम कानूनों के उल्लंघन में उनके स्थानांतरण के लिए मुकदमा करने का आदेश दिया।
जून 2023 में, वी बैंकर एसोसिएशन ने एक और कानूनी जीत हासिल की, जब सुप्रीम कोर्ट ने संघ के राष्ट्रीय समन्वयक कमलेश चतुर्वेदी की निलंबन को पलट दिया।
उनके नियोक्ता पंजाब नेशनल बैंक (PNB) ने 2016 में उनकी सेवानिवृत्ति से एक दिन पहले उन्हें निलंबित कर दिया, जिससे उन्हें पेंशन और ग्रेच्युटी से वंचित कर दिया गया।
चतुर्वेदी ने आर्टिकल 14 को फोन पर बताया कि प्रबंधन उन्हें एक उदाहरण बनाना चाहता था। उन्हें निलंबन को वापस लेने का प्रस्ताव दिया गया और शर्त रखा गया कि उन्हें एक लिखित माफी लिखनी होगी और ट्रेड यूनियन गतिविधियों को छोड़ना होगा ,जिसे उन्होंने सिरे से ख़ारिज कर दिया।
चतुर्वेदी ने सुप्रीम कोर्ट में जीत हासिल की। वो बताते हैं उनके खिलाफ केस लड़ने के लिए PNB ने भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता हायर किया था।
वो कहते हैं, ‘ जो लोग इस दमनकारी प्रणाली को चुनौती देते हैं, उन्हें अक्सर गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ता है, जिसमें दूरदराज के स्थानों पर दंडात्मक स्थानांतरण या झूठे आरोपों में फंसा दिया जाना बेहद आम है, ताकि असहमति को चुप कराया जा सके’।
नियामक निकायों की भूमिका
आरबीआई, जो भारत में बैंकों का सर्वोच्च नियामक निकाय है, बैंकिंग आश्वासन प्रणालियों में कमजोरियों की उपस्थिति को स्वीकार करता है। इनमें अनुपालन पहचान में असफलता, आंतरिक ऑडिट की कमी और जवाबदेही का अभाव शामिल हैं, जो धोखाधड़ी के लिए एक वातावरण बनाने में योगदान करते हैं।
आरबीआई और बैंकों ने कर्मचारियों के उत्पीड़न और धोखाधड़ी के आरोपों पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी है। इस विषय पर कई बार प्रश्न पूछे जाने के बाद भी कोई उत्तर नहीं मिला, जो यह दर्शाता है कि प्रबंधन इस समस्या को गंभीरता से नहीं ले रहा है।
‘अस्थायी चपरासियों को भी बीमा बेचने के लिए मज़बूर किया जाता हैं’
इस समस्या को बढ़ाते हुए, विभिन्न बैंकों के कर्मचारियों ने रिपोर्ट किया है कि उन्हें दबाव में बीमा नीतियों की बिक्री के लिए मजबूर किया जा रहा है, अक्सर ग्राहकों की अनुमति के बिना।
अगस्त 2023 में, देश के तीसरे सबसे बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के ऋणदाता, पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी), ने एक शाखा के अंशकालिक सफाई कर्मचारी को आवास ऋणों के लिए लीड नहीं बनाने पर शो-कॉज नोटिस जारी कर दिया।
बैंक कर्मचारियों की संघ द्वारा एक क्षेत्रीय प्रबंधक को लिखे गए पत्र में उल्लेख किया गया कि कैसे पिछले वर्ष राजस्थान मरुधरा ग्रामीण बैंक ने कथित तौर पर अपने अस्थायी चपरासियों को दो बीमा नीतियां बेचने के लिए मजबूर किया गया। साथ ही यह भी कहा गया कि अगर वो बीमा बेचने में सफल नहीं हुए तो उन्हें ये खुद खरीदना होगा।
भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में वर्तमान संकट एक बहु-आयामी मुद्दा है जो प्रबंधन प्रथाओं, कर्मचारी कल्याण, और नियामक निरीक्षण में प्रणालीगत विफलताओं को शामिल करता है।
जैसे-जैसे असाधारण लक्ष्यों को पूरा करने का दबाव बढ़ता है, कर्मचारियों पर मानसिक दबाव के कारण दुखद परिणाम सामने आते हैं, जो सुधार की तत्काल आवश्यकता को उजागर करता है।
आंकड़ों के पीछे की मानव कहानियाँ इस उद्योग में नैतिक प्रथाओं और अपने कार्यबल की भलाई को प्राथमिकता देने के लिए एक संस्कृति बदलाव की आवश्यकता को दर्शाती हैं।
( Article 14 की खबर से साभार )
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