दिल्ली: CASR द्वारा आयोजित जनसभा में वक्ताओं ने कहा-लोकतंत्र के पक्ष में उठे आवाजों को दबाने की साजिश
गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी UAPA जैसे कठोर कानून के तहत राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग का मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है।
गुरुवार, 12 जनवरी को राज्य दमन के खिलाफ़ अभियान (CASR) द्वारा दिल्ली में आयोजित एक जन-सुनवाई कार्यक्रम में दिल्ली विश्विद्यालय के प्रोफेसर सरोज गिरि ने आरोप लगाया कि असल में भीमा कोरेगांव और सीएए-एनआरसी मामले में कैद सभी राजनीतिक बंदियों को कॉर्पोरेट लूट के हित में प्रताड़ित किया जा रहा है।
CASR द्वारा जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार, प्रो. गिरि का कहना है कि एलगार परिषद की घटना और भीमा कोरेगांव हिंसा के बीच कोई संबंध नहीं था जिसका खुलासा कई अंतरराष्ट्रीय फोरेंसिक रिपोर्टों से साबित हो चूका है।
ज्ञात हो कि 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव लड़ाई के 200 साल पूरे होने के मौके पर एक कार्यक्रम में हिंसा भड़क गई थी।
इस दौरान पुलिस वालों ने आंसू गैस के गोले दागे थे और लाठी चार्ज भी किया था। पुलिस ने दावा किया था कि शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक के पास अगले दिन हिंसा हुई थी। हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए थे।
इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और 10 पुलिसकर्मियों सहित कई घायल हो गए थे। भीमा-कोरेगांव में झड़पों के बाद जनवरी में राज्यव्यापी बंद के दौरान पुलिस ने 162 लोगों के खिलाफ 58 मामले दर्ज किए थे।
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उसी तरह साल 2020 में दिल्ली दंगे की साजिश रचने के आरोप में खालिद सैफी को गिरफ्तार किया गया था। जिस पर उनकी पत्नी नरगिस सैफी का कहना है कि सैफी पर गलत तरीके से ‘दिल्ली दंगे’ 2020 की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था।
नरगिस सैफी ने कहा कि जब मुस्लिम समुदय का कोई भी व्यक्ति अपने और अपने परिवार के लिए संघर्ष करता है तो यह बात तत्कालीन सरकार को यह बिलकुल रास नहीं आता। यही कारण है कि खालिद सैफी जैसी सभी लोकतांत्रिक ताकतों को सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है।
एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों के आरोप में एक और राजनीतिक बंदी हनी बाबू को जुलाई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और अभी वह नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं।
इन अभी मसलों पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू की पत्नी जेनी रोवेना का कहना है कि ओबीसी के अधिकारों के लिए विश्वविद्यालयों में उनकी सक्रियता के कारण हनी पर बिना किसी सबूत के एल्गार परिषद नामक संगठन का हिस्सा होने का गलत आरोप लगाया गया था।
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उन्होंने बताया कि कैसे एलगार परिषद ने फासीवाद के खिलाफ शपथ ली और फासीवाद के खिलाफ संघर्ष में दलित, बहुजन, मुस्लिम और आदिवासियों को एकजुट करने की जरूरत थी, लेकिन बिना किसी सबूत के माओवादियों द्वारा वित्तपोषित एक षड्यंत्रकारी संगठन होने का आरोप लगाया गया।
प्रोफेसर सरोज गिरि का यह भी आरोप है कि हजारों आदिवासी यूएपीए के तहत जेल में बंद हैं और इस तरह की क़ैद का कारण अडानी, अंबानी, ज़िंदल और टाटा आदि जैसे बड़े कॉर्पोरेट्स के लालच से उपजा है, जो भारत की प्राकृतिक संपदा को लूट रहे हैं और उन्हें राज्य द्वारा सरंक्षण प्राप्त है।
भीमा-कोरगांव मामले में अप्रैल 2020 में गिरफ्तार किये गए प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे को बीते, 26 नवम्बर 2022 को नवी मुंबई स्थित तलोजा जेल से रिहा कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने तेलतुंबडे को मिली जमानत को चुनौती देने वाली राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) की अर्जी को खारिज कर दिया।
ज्ञात हो कि बीते 18 नवम्बर को बॉम्बे हाईकोर्ट ने तेलतुंबडे जमानत दे दी थी। लेकिन कोर्ट ने एनआईए के निवेदन पर अपने फैसले पर रोक लगा दी है ताकि जांच एजेंसी का पक्ष जान सके।
उनके स्वास्थ की जानकारी देते हुए डीयू के प्रोफेसर जी.एन. साईंबाबा की साथी वसंता का सवाल है कि अक्टूबर 2022 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कैसे साईंबाबा को बरी कर दिया था? लेकिन बिना किसी ज़मानत के जेल में बंद रहना जारी है, क्योंकि हाई कोर्ट के फैसले को तुरंत सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। वसंता ने बताया कि 90% विकलांग साईंबाबा की हिरासत में सेहत लगातार और भी बिगड़ रही है।
भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार अन्य आरोपियों में से एक जानी मानी मजदूर नेत्री और वकील सुधा भारद्वाज को भी 9 दिसंबर 2021 में तीन साल से अधिक जेल की कैद के बाद ज़मानत दे दी गयी थी। रिहा होने के बाद ज़मानत की शर्तों के कारण उन्हें आज भी मुंबई छोड़कर जाने की इजाज़त नहीं है। उन्हें 28 अगस्त, 2018 को गिरफ्तार किया गया था।
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UAPA जैसे कठोर कानून के तहत राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग को लेकर दिल्ली के एचकेएस सुरजीत भवन में गुरुवार, 12 जनवरी को “साजिश के मामलों की साजिश” नामक के एक जनसभा आयोजित की गयी।
यह कार्यक्रम राज्य दमन के खिलाफ़ अभियान (CASR) के बैनर तले भीमा कोरेगांव और सीएए-एनआरसी मामले में घटनाक्रमों पर चर्चा के लिए आयोजित हुई थी। जिसमें एलगार परिषद की घटना और भीमा कोरेगांव हिंसा के बीच के संबंधों पर खुली चर्चा की गयी।
कार्यक्रम में शामिल सभी लोगों ने भीमा कोरेगांव और सीएए-एनआरसी मामलों के तहत गलत तरीके से कैद सभी राजनीतिक कैदियों की तत्काल रिहाई और सभी लोकतांत्रिक, प्रगतिशील कार्यकर्ताओं पर फासीवादी दमन को रोकने की मांग की।
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