न्यूनतम मज़दूरी का ऐलान हो गया, लागू कब होगा?
विभिन्न ट्रेड यूनियनों और फ़ेडरेशनों ने 20 जुलाई को दिल्ली में आम हड़ताल का ऐलान किया है. उसी दिन राष्ट्रीय ट्रक ऑपरेटर्स कांग्रेस ने भी पूरे देश में चक्का जाम का ऐलान किया है और अनुमान है कि 90 लाख ट्रक 20 जुलाई से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जा रहे हैं.
यही नहीं उसी दिन किसान महासभा और किसानों के अन्य संगठनों ने दिल्ली चलो का नारा दिया है.
मज़दूरों की मांग है कि दिल्ली सरकार ने न्यूनतम मज़दूरी का ऐलान कर दिया है लेकिन लागू करने के लिए वो कुछ नहीं कर रही है. इसके अलावा काम की स्थितियां और वेतन विसंगतियों को ठीक करने की मांग भी शामिल है.
जबकि ट्रक आपरेटर्स की मांग है कि टोल को ख़त्म करने का वादा करने के बावजूद मोदी सरकार ने इन चार सालों में इस बारे में न तो कुछ किया है और न ही कुछ करने का कोई इरादा जता रही है. तिस पर डीज़ल के रोजाना दामों में बढ़ोत्तरी ने ट्रांसपोर्ट बिजनेस की बधिया बैठा दी है.
किसान भी उतरेंगे सड़क पर
किसानों का मुद्दा काफी लंबे समय से चल रहा है और उपज का सही दाम न मिलने पर कर्ज में दबे किसान आत्महत्या को मज़बूर हो रहे हैं. उनकी मांग है कि केंद्र और राज्य सरकारें किसानों को लेकर बड़े बड़े वादे तो किए लेकिन पिछले कुछ सालों में उनकी स्थिति और भयावह होती गई है. न्यूनतम समर्थन मूल्य के डेढ़ गुना किए जाने के बाद भी, ये वादे अभी हवा हवाई ही बने हुए हैं.
ऐसा लगता है कि मज़दूर, किसान, ट्रांसपोर्टर की ये एकसाथ हड़ताल सरकार को सोचने पर ज़रूर मज़बूर करेगी. फिलहाल दिल्ली के मज़दूर संगठनों ने बयान जारी कर 20 जुलाई की हड़ताल को सफल बनाने का आह्वान किया है.
न्यूनतम मज़दूरी लागू करने की मांग
बयान में कहा गया है, “अगस्त 2017 में दिल्ली सरकार द्वारा न्यूनतम वेतन बिल पारित किया गया था, जिसे केन्द्र सरकार ने मई 2018 में मंजूरी दे दी, इसके अंतर्गत, दिल्ली में अकुशल मज़दूरों के लिए न्यूनतम वेतन 13,896, अर्धकुशल मज़दूरों के लिए 16,858 रुपये मासिक वेतन निर्धारित किया गया है. इसके अलावा दसवीं फेल के लिए 15, 296 एवं दसवीं पास के लिए 16, 858 रुपये एवं ग्रेजुएट और उच्च शिक्षा प्राप्त के लिए 18,332 रुपये निर्धारित किये गए. इसके साथ ही उपरोक्त न्यूनतम मज़दूरी ना देने वाले फैक्ट्री मालिकों को 20,000 रुपये जुर्माना एवं 3 साल कैद की सजा का प्रावधान किया गया. ”
मज़दूर संगठनों का कहना है कि इस बिल के पारित हो जाने के बाद, इसे हाई कोर्ट में फंसा दिया गया और सरकार की ओर से इसका निपटारा नहीं हो रहा है. मजदूरों का शोषण भी बढ़ता चला गया है. आठ घंटे की काम के जगह 12 से 16 घंटे का काम लिया जा रहा है, और मज़दूरी घटती जा रही है. फैक्टरियों में आग लगने से मौतें हो रहीं हैं. जोकि असल में मुनाफ़े ही होड़ में फैक्टरी मालिकों द्वारा की गई हत्याएं हैं.
सामाजिक सुरक्षा, बढ़ती मेहँगाइ के इस दौर में महंगाई भत्ता, स्थाई नौकरी , स्वास्थ सुविधा , प्रोविडेंट फण्ड से वंचित ये वो तबका है, जो उत्पादन का केंद्र है, और दिल्ली NCR में इसकी तादाद करीब 60 लाख है.
यूनियनों की अन्य मांगों में पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने , पुरुष एवं महिलाओं के बीच वेतन का भेदभाव खत्म करना आदि शामिल है.