बीएमएस का बनारस में प्रदर्शन, दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने कहा- ‘राजनीतिक नौटंकी’

बीएमएस का बनारस में प्रदर्शन, दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने कहा- ‘राजनीतिक नौटंकी’

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण पर भारतीय मजदूर संघ के विरोध प्रदर्शन को दस केंद्रीय श्रम संघों ने राजनीतिक नौटंकी करार दिया है। केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने कहा है, आम हड़ताल के आह्वान के बावजूद आरएसएस समर्थित भारतीय मजदूर संघ ने 26 नवंबर को संयुक्त आंदोलन से दूर रहने का उनका निर्णय खोखले विरोध को दिखाता है।

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के निजीकरण के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र, वाराणसी में बुधवार को बीएमएस ने विरोध प्रदर्शन कर कहा कि इससे राज्य के सैकड़ों कर्मचारियों के साथ-साथ जनता प्रभावित होगी। भारतीय रेलवे, उत्तर प्रदेश राज्य सडक़ परिवहन निगम, डीजल लोकोमोटिव वर्कर्स, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, बैंक और बिजली विभाग के श्रमिकों ने विरोध प्रदर्शन में भाग लिया।

 

यहां बता दें, इस महीने की शुरुआत में हुई अपनी दो दिवसीय बैठक में बीएमएस ने देशव्यापी हड़ताल की चेतावनी देकर कहा था, ‘सरकार श्रम विरोधी नीतियों के तहत सभी सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का निजीकरण कर रही है। वे मजदूरों को उद्योगपतियों का गुलाम बनाना चाहते हैं।’

बीएमएस ने कहा, सरकार सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण को सही ठहराने की कोशिश कर रही है क्योंकि उसे सरकारी मशीनरी चलाने के लिए पैसे की जरूरत है। सरकार को अपने पूर्ववर्तियों द्वारा बनाई गई राष्ट्रीय संपत्ति को बेचने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। बीएमएस ने कहा कि आंदोलन का नारा, ‘सार्वजनिक क्षेत्र बचाओ, भारत बचाओ’ होगा।

न्यूज क्लिक से बातचीत में बीएमएस के सचिव रामकृष्ण पांडे ने कहा, भारतीय रेलवे हमारे देश को एकजुट करने और हमारे लोगों के करोड़ों लोगों के लिए सार्वजनिक परिवहन प्रदान करने वाला सबसे महत्वपूर्ण नेटवर्क बना है। करोड़ों लोगों की आजीविका रेलवे पर निर्भर है। आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के इस आधार को निजीकरण से कमजोर किया जा रहा है।

पांडे ने कहा, सरकार प्राइवेट कंपनियों को डीएलडब्ल्यू, रोडवेज, हवाई अड्डों और बैंकों को देने की भी तैयारी कर रही है, जिससे लाखों परिवारों की आजीविका पर संकट खड़ा हो जाएगा। जो लोग अप्रेंटिस करने के बाद स्थायी नौकरी का सपना देखते थे, वे मामूली मजदूर बने रहेंगे। तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को कहीं नहीं छोड़ा जाएगा। उन्होंने यह भी आशंका जताई कि निजीकरण के लागू होते ही रेलवे में अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारियों को बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है।

वाराणसी में विरोध प्रदर्शन का क्या कारण रहा? इस पर पांडे ने कहा, पीएम मोदी हमारे सांसद हैं और वह सभी समस्याओं को समझते हैं। बड़े उद्योगपति मजदूरों से गुलामों की तरह काम कराएंगे, प्रदर्शन से ये चेताना था।

रेल श्रमिकों को डर है कि वाराणसी का डीएलडब्ल्यू, जो हर दिन एक इंजन का निर्माण करता है, जहां से डीजल और इलेक्ट्रिक लोको 11 देशों को निर्यात किए जाते हैं, निगमीकरण के बाद बीएसएनएल और इंडियन एयरलाइंस जैसे हाल को भोगेंगे।

एक रेल कर्मचारी ने कहा, ‘2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान, वाराणसी में एक रैली में मोदी ने कहा था कि वह किसी से भी ज्यादा रेलवे को प्यार करते हैं, क्योंकि यह रेलवे था जिसने उनकी जिंदगी बना दी। उन्होंने कहा कि जो लोग रेलवे के निजीकरण के बारे में अफवाह फैला रहे हैं, वे गलत सूचना फैला रहे हैं। हालांकि, आज डीएलडब्ल्यू से जुड़े लगभग 6000 कर्मचारी अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। वे बीएसएनएल और इंडियन एयरलाइंस के कर्मचारियों जैसी स्थिति से सामना करने से नहीं डरते, लेकिन 2014 की रैली के बाद पीएम मोदी की चुप्पी ने मन में डर पैदा किया है। ’

संयोग से, वाराणसी में पिछले कुछ समय से नई बिजली दरों के खिलाफ बुनकरों की हड़ताल चल रही है, जिससे बीएमएस अब तक दूर है।

इस बीच, देश भर में आम हड़ताल की तैयारी कर रहे केंद्रीय ट्रेड यूनियन पीएसयू के निजीकरण के खिलाफ बीएमएस के विरोध प्रदर्शन पर संदेह कर रहे हैं, क्योंकि अब तक श्रमिकों द्वारा किसी भी संयुक्त कार्रवाई में बीएमएस ने भागीदारी नहीं की है।

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) के प्रदेश महासचिव प्रेमनाथ राय ने बीएमएस के प्रदर्शन पर कहा, सभी ट्रेड यूनियन 2009 से सरकार के खिलाफ निजीकरण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं और हमने 26 नवंबर को इसी मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया है। 40 से अधिक ट्रेड यूनियनों सेेवा क्षेत्र और औद्योगिक क्षेत्र शामिल हैं। अलबत्ता, उनमें से कोई बीएमएस का हिस्सा नहीं है। राय ने कहा, इस तरह के आंदोलन में मोदी के सत्ता में आने से पहले बीएमएस हमेशा केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के साथा रहा है।

उन्होंने कहा, जब मोदी सरकार के खिलाफ हमारा पहला विरोध हुआ था, बीएमएस बैठक का हिस्सा था, लेकिन आंदोलन से एक दिन पहले, वे अलग हो गए। तभी से वे मोदी सरकार के खिलाफ किसी भी संयुक्त विरोध का हिस्सा नहीं हैं। राय ने कहा, ‘अपनी विश्वसनीयता बचाने के लिए बीएमएस ने वाराणसी में विरोध प्रदर्शन किया था।’

अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) के यूपी महासचिव चंद्रशेखर ने कहा, बीएमएस के पूर्व महासचिव बृजेश पांडे ने वादा किया था कि उनका संघ हमेशा सभी ट्रेड यूनियनों के साथ हर मजदूर विरोधी कानून का विरोध करेगा, लेकिन यह केवल संप्रग शासन के दौरान ही हुआ। फिर उन्होंने कभी भी श्रमिक विरोधी कानूनों के खिलाफ आवाज नहीं उठाई। यहां तक कि 26 नवंबर की आम हड़ताल के आह्वान पर एकजुटता का बयान भी जारी नहीं किया।

 

ashish saxena

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