लेबर कोड के ख़िलाफ़ 23 सितम्बर को काला दिवस सफल बनाने का आह्वान
लेबर कोड को संसद में जोर ज़बरदस्ती करके पारित कराने के एक साल पूरे होने वाले हैं। इस मौके पर कई ट्रेड यूनियनों ने 23 सितम्बर को पूरे देश में काला दिवस मनाने का आह्वान किया है।
स्वतंत्र ट्रेड यूनियों के मंच मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने आह्वान करते हुए कहा है कि मोदी सरकार के मज़दूर विरोधी पहलू को सामने लाना होगा।
मासा के घटक इंकलाबी मज़दूर केंद्र ने एक विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि 23 सितम्बर को इन श्रम संहिताओं के विरोध में यूनियन सभी मजदूरों के साथ ‘‘काला रिबन‘‘ बांधकर काला दिवस मनाएगी। बेलसोनिका यूनियन अन्य यूनियनों व मजदूर साथियों से भी काला दिवस मनाने का आह्नान भी किया है।
यूनियन ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि मोदी सरकार ने मजदूरों के 29 केन्द्रीय श्रम कानूनों को खत्म कर 4 श्रम संहिताओं में समेटकर एक बड़ा कानूनी हमला बोला है। आजाद भारत में यह मजदूर वर्ग पर सबसे बड़ा हमला है। 4 श्रम सहिताएं लागू होने के बाद पुराने श्रम कानून स्वतः खत्म हो जाएंगे।
इन नई श्रम संहिताओं में मजदूरों को हड़ताल करने के अधिकार पर प्रतिबंध लगाना, स्थाई काम पर अस्थाई नियुक्तियां करना, 8 घंटे के कार्य के अधिकार पर हमला, रात्रि पाली में महिलाओं से कार्य कराने की छूट देना, यूनियन बनाने के अधिकार को सीमित करना आदि मजदूर विरोधी बदलाव इन नई श्रम संहिताओं में किये गये है। एक तरह से हायर एण्ड फाॅयर ‘‘रखो व निकालो‘‘ की खुली छूट पूंजीपति वर्ग को दे दी गई है।
इन श्रम संहिताओं के लागू होने के बाद स्थाई रोजगार पर हमला बढ़ेगा और स्थाई रोजगार पर अस्थाई नियुक्तियों को बढ़ावा दिया जाएगा। एक तरीके से यूनियनों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है। पूंजीपति वर्ग को श्रम की लूट की खुली छूट दे दी गई है।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। मोबाइल पर सीधे और आसानी से पढ़ने के लिए ऐप डाउनलोड करें।)