निजीकरण से लड़ रहे बिजली कर्मचारी यूनियनों ने दिया किसानों को खुला समर्थन
निजीकरण से तीखी लड़ाई लड़ने वाले विद्युत कर्मचारियों के संगठन ने तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली का घेरा डाले किसानों का अपना खुला समर्थन दिया है।
भारतीय विद्युत कर्मचारी संगठन (ईईएफआई) के केरल, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और हरियाणा के सीनियर नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल बुधवार को सिंघु बॉर्डर पहुंचा।
प्रतिनिधिमंडल ने खेती से जुड़े तीनों कानूनों को किसानों के खिलाफ बताया और पूरे देश में उनके खिलाफ चल रहे आंदोलन के साथ एकजुटता दिखाई।
प्रतिनिधि मंडल ने इन कानूनों के साथ ही बिजली संशोधन बिल, 2020 को खत्म किए जाने की मांग की।
प्रतिनिधि मंडल ने ऐलान किया कि किसानों की मांगों के समर्थन में भारतीय विदयुत कर्मचारी संगठन उसके साथ देशव्यापी आंदोलन में शामिल है।
प्रतिनिधि मंडल में पश्चिम बंगाल ईईएफआई के कार्यकारी अध्यक्ष स्वदेष देवरॉय, हरियाणा ईईएफआई के उपाध्यक्ष सुहास लांबा, केरल ईईएफआई के राष्ट्रीय सचिव के जयप्रकाश और कार्यकारी समिति सदस्य एलआर श्रीकुमार, तमिलनाडु ईईएफआई के सलाहकार आर करूमालइयन, ऑल हरियाणा पॉवर कार्पोरेशन के अध्यक्ष सुरेष राठी औरराष्ट्रीय महासचिव नरेश कुमार शामिल थे।
गौरतलब है कि बीते पांच अक्टूबर को विद्युत कर्मचारियों के पूरे दिन के कार्य बहिष्कार से हिली योगी सरकार ने आखिरकार पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के फैसले को स्थगित कर दिया था।
छह अक्टूबर को यूपी पॉवर कारपोरेशन के उच्च अधिकारियों और विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा और इससे जुड़ी अन्य ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियों में निजीकरण रोकने समेत पांच बिंदुओं पर सहमति बनी।
हालांकि सरकार की ओर से इस समझौते में समीक्षा का पेंच जोड़े जाने से निजीकरण का मुद्दा पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है और तीन महीने तक यानी 15 जनवरी तक मासिक समीक्षा किए जाने से आशंका बनी हुई है।
समझौते में उन प्रदर्शनकारी कर्मचारियों के ख़िलाफ़ सारे मुकदमें वापस लेने पर सहमति बनी है जो कार्यबहिष्कार और प्रदर्शन के दौरान उन पर सरकार ने लादे थे।
चार दिनों से रोज़ाना आंशिक कार्यबहिष्कार कर रहे उत्तर प्रदेश के विद्युत कर्मचारियों ने पांच अक्टूबर को पूरे दिन का कार्यबहिष्कार किया था जिसके बाद कुछ शहरों को छोड़कर यूपी के तमाम ज़िलों में अंधेरा छा गया। इसके बाद योगी सरकार को अपने कदम पीछे हटाने पड़े।
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