जेल जाने से पहले ही मारुति यूनियन के पूर्व मज़दूर नेता की करंट लगने से मौत
मारुति आंदोलन में नौकरी से निकाले गए और आजीवन कारावास भुगत रहे मज़दूर नेता पवन दहिया की 21 फ़रवरी को करंट लगने से मौत हो गई। वो सोनीपत के कवाली गांव के रहने वाले थे।
बीते एक साल से वो पेरोल पर बाहर थे और 23 फ़रवरी को ही उन्हें वापस जेल जाना था। वो मारुति के मानेसर प्लांट में पहली बार बनी यूनियन में सेक्रेटरी के पद पर रहे थे।
गौरतलब है कि 2012 से ही पवन समेत 13 मज़दूर नेता जेल की सज़ा भुगत रहे हैं और बीते साल पेरोल पर छूटकर घर आए थे, जिसके बाद लॉकडाउन लग जाने से वो अभी तक घर पर ही थे।
मारुति आंदोलन के नेताओं में से एक रामनिवास ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि बीते रविवार की शाम पवन दहिया अपने खेत पर गए थे, जहां ट्यूबवेल से सिंचाई का काम चल रहा था। मोटर को हटाने के दौरान ही उन्हें करंट लगा और उनकी मौके पर ही मौत हो गई।
पवन दहिया का एक नौ साल का बेटा है। घर में उनकी पत्नी और उनके भाई हैं। उनके पिता बचपन में ही गुजर गए थे।
पवन दहिया मारुति यूनियन के उन 13 लोगों में शामिल थे जिन्हें 2011 में हुए आंदोलन के दौरान एक मैनेजर की मौत के मामले में आजीवन कारावास (20 साल )की सज़ा हुई थी।
हरियाणा की स्थानीय अदालत से मिली इस सज़ा को सुप्रीम कोर्ट भी ख़ारिज कर चुका है। दोबारा इस मामले को चंडीगढ़ हाईकोर्ट में ले जाया गया था और इन मज़दूर नेताओं को ज़मानत पर छुड़ाने की कानूनी कार्यवाही की जा रही थी।
रामनिवास ने बताया कि ज़मानत में पहली फ़ाइल पवन दहिया की ही लगाई गई थी और इसकी सुनवाई 16 मार्च को होनी है, इसी बीच ये दुर्घटना घट गई।
मानेसर प्लांट में नई यूनियन चुन कर आई है उसकी 23 फ़रवरी को मीटिंग भी थी जिसमें उन्होंने शामिल होने की इच्छा ज़ाहिर की थी। हालांकि उन्हें जेल वापस जाने से पहले कोरोना टेस्ट भी कराना था।
रामनिवास कहते हैं कि ‘पवन पूरे एक साल घर पर भी थे। कोई दिक्कत नहीं थी, सब ठीक ठाक ही चल रहा था। बल्कि वो वापस जेल जाने की तैयारी भी कर रहे थे। ज़मानत की पहली अपील भी उन्हीं के लिए की गई थी।’
कोरोना से पहले बाहर आए इन सभी नेताओं को फ़रवरी से लेकर मार्च तक अंदर जाना था। जब पवन दहिया की मौत की ख़बर आई तो उनके बाकी साथी भी जेल से बाहर ही थे।
मौत की ख़बर सुनकर दूसरे दिन मारुति प्लांट की यूनियन बॉडी, उनके साथी और मारुति के वर्कर भी भारी संख्या में पहुंचे थे।
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