उत्तराखंड: भोजनमाताओं का विधानसभा घेराव, वेतन-पीएफ-बोनस जैसी मांगों को लेकर किया प्रदर्शन
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भोजन माताओं के दो संगठनों ने हाल में उत्तराखंड विधानसभा की तरफ कूच किया। हालांकि रास्ते में ही उन्हें पुलिस के द्वारा रोक दिया गया जिसके बाद भोजन माताओं ने सड़क पर ही प्रदर्शन किया।
एडीएम देहरादून ने 1-5 सितम्बर के बीच मुख्यमंत्री से यूनियन प्रतिनिधियों की वार्ता करवाने का आश्वासन दिया।
प्रदर्शन में यूनियन की अध्यक्ष हंसी गर्जोला ने कहा कि भोजनमाताएं 18-19 वर्षों से सरकारी विद्यालयों में खाना बनाने का काम बहुत-बहुत मेहनत व साफ-सफाई के साथ करती हैं। भोजनमाताओं से खाना बनाने के अतिरिक्त चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का काम, सफाई कर्मचारी का काम , माली का काम आदि काम मात्र 2 हजार रुपये प्रतिमाह में करवाये जाते हैं। उस पर भी हमें मात्र 11 माह का मानदेय ही दिया जाता है।
उन्होंने आगे बताया कि लॉकडाउन के समय में हमसे 12 महीने काम लिया गया लेकिन मानदेय 11 माह का ही दिया गया। इतने सारे काम करने के बावजूद सरकार हमको न्यूनतम वेतनमान तक नहीं दे रही है। सरकार हमसे एक प्रकार से बेगार करवा रही है।
यूनियन की महामंत्री रजनी जोशी ने कहा कि हम भोजनमाताएं बहुत गरीब परिवारों से आती हैं। कई भोजनमाता विधवा, परित्यकता हैं। हम भोजनमाताओं पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी है। इस बढ़ती महंगाई के दौर में मात्र 2000 रू0 में कैसे कोई अपना परिवार चला सकता है।
रजनी जोशी ने आगे कहा कि पहाड़ों में छूआ-छूत के कारण मासिक धर्म के समय विद्यालयों में आने पर रोक है। ऐसे में हमें किसी दूसरी महिला को अपने स्थान पर पांच दिन खाना बनाने भेजना होता है। जिसका हमें उसको कम से कम 250 रू0 पांच दिन का देना होता है। इस वजह से भोजनमाताओं का न्यूनतम मानदेय घटकर प्रतिमाह का 1,750 रू0 हो जाता है। स्कूलों में जातीय उत्पीड़न भी हम भोजनमाताओं को झेलना होता है।
यूनियन की देहरादून ब्लॉक अध्यक्ष अनिता ने कहा कि भोजनमाताओं के बीमार होने पर उन्हें कोई अवकाश नहीं मिलता है। अगर हम किसी भी कारण से अवकाश लेते हैं तो हमें विद्यालय से निकालने की धमकी दी जाती है। स्कूलों में 51वें बच्चे पर दूसरी भोजनमाता रखने का प्रावधान है। 50 बच्चों के लिए खाना बनाने, बर्तन धोने इत्यादि काम अकेली भोजनमाता के लिए काफी कष्टकर होता है। उस पर भी हमारे ऊपर लगातार निकाले जाने का खतरा रहता है।
भोजनमाताओं व यूनियन के लंबे संघर्षों के बाद उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे जी ने किसी भी भोजनमाता को स्कूलों से न निकाले जाने व भोजनमाताओं का मानदेय 2 हजार से बढ़ा कर 5 हजार रु0 किये जाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा है। लेकिन वह भी कब लागू होगा इस पर कोई बात नहीं की जा रही है।
प्रगतिशील भोजनमाता यूनियन की हरिद्वार जिले की संयोजिका दीपा ने कहा कि भोजनमाताओं का काम बेहद कुशलता का काम है। होना तो यह चाहिए कि हमें केन्द्र व राज्य सरकार के मापदंडों के तहत कुशल श्रेणी के मजदूरों के बराबर वेतन व अन्य सुविधाएं मिले। परंतु इस वक्त हमें अकुशल श्रेणी के मजदूरों के लिए घोषित न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता। हमें ईएसआई, पीएफ, पेंशन, प्रसूति अवकाश जैसी सुविधाएं भी नहीं दी जाती। जबकि केरल, पडुचेरी, तमिलनाडु व अन्य कई राज्यों में भोजनमताओं को उत्तराखंड की भोजनमाताओं से कई गुना ज्यादा वेतन मिलता है।
यूनियन ने मांग सामने रखी है कि-
-भोजनमाताओं को न्यूनतम वेतन 18 हजार रूपये प्रतिमाह दिया जाये।
-सभी भोजनमाताओं की स्थाई नियुक्ति की जाये व उन्हें सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाये।
-स्कूलों में 26वें विद्यार्थी पर दूसरी भोजनमाता रखी जाये।
-भोजनमाताओं को ई.एस.आई., पीएफ,पेंशन, प्रसूति अवकाश जैसी सुविधाएं दी जायें।
-भोजनमाताओं का स्कूलों में होने वाला उत्पीड़न बंद किया जाये।
-भोजनमाताओं को धुंए से मुक्त किया जाये।
-भोजनमाताओं के खाना बनाने का काम गैर सरकारी संगठन को सौंपना बंद किया जाये।
-वेतन, बोनस समय पर दिया जाये।
-बच्चे कम होने व पाल्य का स्कूलों में न पढ़ने की स्थिति में भी भोजनमाता को न हटाया जाये।
यूनियन ने यह भी बात सामने रखी है कि अगर सरकार द्वारा उनकी मांगों पर गंभीरतापूर्वक विचार कर इन्हें हल नहीं किया गया तो वे उग्र आंदोलन करने को बाध्य होंगे, जिसकी जिम्मेदार सरकार होगी।
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