हीरो मोटरकॉर्प में वेतन समझौता: परमानेंट वर्करों के वेतन में 18,500 रुपये की वृद्धि, ठेका मज़दूरों को 1500 से 2500 रु.
सुजुकी, बेलसोनिका और मारुति के बाद अब ख़बर आ रही है कि गुड़गांव स्थित हीरो मोटोकॉर्प लि. में भी वेतन समझौता सम्पन्न हो गया है।
तीन साल के लिए हुए इस समझौते के तहत स्थायी कर्मचारियों के वेतन में 18,500 रुपये की बढ़ोत्तरी हुई है।
कुछ मायनों में ये पिछली बार के समझौते से बेहतर है क्योंकि पिछली बार का समझौता लगभग 12,500 रु. का हुआ था।
2018 से 2021 के लिए मान्य इस समझौते के तहत वर्करों की संतानों के विवाह पर मिलने वाली राशि को 11 हज़ार से बढ़ाकर 21 हज़ार कर दिया गया है।
जबकि वर्कर के विवाह पर दी जाने वाली शगुन राशि को 2100 से बढ़ाकर 5100 कर दिया गया है।
वर्करों के बच्चों को इंटर्नशिप और लैपटॉप
वर्करों के बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए मैनेजमेंट वर्करों के बच्चों को इंटर्नशिप पर रखने और इंटर में 95% से अधिक अंक लाने पर लैपटाप देने पर राज़ी हो गया।
नाइट शिफ़्ट का भत्ता 130 रु. से बढ़ाकर 160 रु. और शट डाउन भत्ता 125 रु. से बढ़ाकर 200 रुपये कर दिया गया है।
मेडिकल की सुविधाओं में बढ़ोत्तरी हुई है-
1) मेडिकल हेल्थ चेकअप
34 वर्ष आयु तक तीन वर्ष में एक बार।
35 से 50 वर्ष आयु तक दो वर्ष में एक बार।
50 वर्ष से अधिक प्रति वर्ष।
2) लंबी अवधि बीमारी पर मिलने वाली राशि को 20,000 रु. से बढ़ाकर 25,000 रु. एक वर्ष के लिए किया गया है।
लोन की राशि बढ़ी, प्रक्रियाओं में ढील
आकस्मित लोन राशि में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई लेकिन चुकाने की अवधि 12 माह से बढ़ाकर 15 माह किया गया है।
शिक्षा और विवाह लोन को 5 लाख रु. से बढ़ाकर 7.50 लाख रु. किया गया है।
होम लोन में रियायत दी गई है। पहले साल के लिए 2 लाख 10 हज़ार/5 लाख रु. से बढ़ाकर सवा दो लाख रु. /8 लाख रु., दूसरे साल 2 लाख 10 हज़ार से बढ़ाकर ढाई लाख रु., तीसरे साल सवा दो लाख से बढ़ाकर पौने तीन लाख रु. और चौथे साल डेढ़ लाख रुपये की गई है।
DA में पहले 2.31 पैसे प्रति अंक मिलते थे अब यह 3.50 पैसे प्रति अंक मिलेंगे।
मौत पर मुआवज़े में वढ़ोत्तरी
मौत पर मुआवज़ा बढ़ाया गया है। यानी फैमिली को 3,000 से बढ़ाकर 6,000 रुपये और वर्कर की मौत पर 22,000 रुपये मिलेंगे।
अगर किसी वर्कर की मृत्यु होती है तो उसकी पत्नी को 31,000 प्रति माह वर्कर की सेवानिवृत्त तक दिया जाएगा।
पूर्व में मिलने वाली दो बच्चों की पढ़ाई की राशि को इसी में समायोजित कर दिया गया है।
GLIC और GPA की राशि को रिवाइज़ किया जाएगा।
उपस्थित अवार्ड में कुछ इस तरह रियायत बढ़ाई गई है-
1) बिना अनुपस्थिति 600 से बढ़ाकर 700
2) आधे दिन की अनुपस्थिति पर 350 से बढ़ाकर 400
3) आधे से एक दिन की अनुपस्थिति पर 300 से बढ़ाकर 350
4) एक से डेढ़ दिन की अनुपस्थिति पर 200 से बढ़ाकर 250 की गई है।
छुट्टियों की स्थिति-
1-) पहले 6 छुट्टी तक 2,500 रु. अब 3 छुट्टी तक 4,000 रु. और 4 से 6 छुट्टी तक 3,000 रु.।
2) पहले 6 से 12 छुट्टी तक 2,000, अब 7 से 12 छुट्टी तक 2,500 रु.।
3) पहले 12 से 18 छुट्टी तक 1,500 अब 13 से 18 छुट्टी तक 2,000 रु.।
EL इनकैशमेंट पहले बीच में भुनाने पर बेसिक और डीए पर मिलती थी अब कुल वेतन पर होगी।
गाड़ियों का इन्सेन्टिव 650 रु. भी मेडिकल अलाउंस में समायोजित किया।
दिलचस्प है कि ये समझौते केवल प्लांट के 1300 परमानेंट कर्मचारियों पर ही लागू होगा।
जबकि प्लांट में 3,000 अस्थायी, ठेका, अप्रेंटिस, अकुशल वर्कर हैं।
कहा जा रहा है कि इस समझौते के अनुसार इन्हें कुछ भी नहीं मिलने जा रहा है। इस बात से अस्थायी वर्करों में थोड़ी नाराज़गी भी है।
ठेका वर्करों के वेतन में 1500 से 2500 रु. की बढ़ोत्तरी
इस प्लांट के पूर्व कर्मचारी और वर्तमान में टर्मिनेट चल रहे पूर्व महासचिव भीमराव ने कहा कि ठेका कर्मी चाहते थे कि उनके वेतन वृद्धि का भी एजेंडा बने।
भीम राव ने कहा कि ठेका मज़दूरों की इस बार वेतन वृद्धि 1500 से 2500 रुपये प्रतिमाह हुई है।
नाम न छापने की शर्त पर एक मज़दूर प्रतिनिधि ने बताया कि समझौता वार्ता के दौरान मैनेजमेंट से ठेका मज़दूरों की वेतन वृद्धि भी परमानेंट के बराबर करने और पुराने वर्करों को परमानेंट किए जाने की बात रखी गई थी।
मज़दूरों के बीच काम कर रहे एक सामाजिक कार्यकर्ता का कहना है कि ठेका मज़दूरों से काम अधिक लिया जाता। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट का भी फैसला है कि सबको समान काम और समान वेतन मिलना चाहिए।
उनके अनुसार, “और वेतन वृद्धि के मसले पर भी मैनेजमेंट को यही रवैया अपनाना चाहिए। ऐसा न कर मैनेजमेंट ठेका और परमानेंट मज़दूरों के बीच भेद करने की कोशिश करता है।”
लेकिन ठेका मज़दूरों के मामले में पूरे देश में मालिक वर्ग का सौतेला रवैया है।
जबकि पूरे देश में ठेका वर्करों की भावना है कि उन्हें भले ही परमानेंट न किया जाए लेकिन वेतन समान तो देना चाहिए।
और असल बात है कि जितने मामूली वेतन पर ठेका मज़दूरों से काम कराया जाता है, उसमें एक सभ्य तरीके से गुजारा करना बेहद मुश्किल है।
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