इंडियन रेलवे इंप्लाइज फेडरेशन (आईआरईएफ) ट्रेड यूनियन कोऑर्डिनेशन सेंटर (टीयूसीसी) से अलग होकर भाकपा माले (लिबरेशन) के श्रमिक महासंघ आल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स (ऐक्टू ) का हिस्सा बन गया।
आईआरईएफ का रूप तो बदल गया, लेकिन रेल की राजनीति में उसके तेवर कैसे होंगे और चुनौतियां क्या होंगी, इसको लेकर तरह तरह की अटकलें जारी हैं।
आईआरईएफ़ के नेता सर्वजीत सिंह की अगुवाई में मुख्य काम रेल कोच फैक्ट्रियों (आरसीएफ़) में रहा है, जहां रेल यूनियनों के चुनाव की व्यवस्था फिलहाल तक नहीं है।
यहां एक परिषद बनाई जाती है, जिसमें सभी प्रमुख यूनियनों के प्रतिनिधि मौजूद रहते हैं।
यह अलग बात है कि आरसीएफ़ में आईआरईएफ़ मजबूत रही है। वहीं इस फ़ेडरेशन के साथ कई अन्य ज़ोन की यूनियनें भी जुड़ी रही हैं, जिनमें से कुछ ने अब किनारा कर लिया है।
वेस्ट सेंट्रल रेलवे की यूनियन तो अब बीएमएस के भारतीय रेल मजदूर संघ में शामिल हो चुकी है, जबकि पूर्वोत्तर रेलवे कार्मिक यूनियन ने आईआरईएफ़ से नाता तोड़ लिया है।
लिहाजा अब आईआरईएफ़ को उन ज़ोन में नई यूनियन बनाने या सक्रिय करने में खासी मेहनत करना होगी।
साथ ही उन यूनियनों के प्रचार और दुष्प्रचार का भी सामना करना होगा, जिनका साथ कभी रहा है।
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भाकपा माले से जुड़़े होने का नुकसान भी
रेलवे के प्रतिद्वंद्वी नेताओं में आम धारणा है कि भाकपा माले नक्सली संगठन है। हालांकि माले एक संसदीय पार्टी है और हर चुनावों में हिस्सा लेती है।
बिहार में माले के कई विधायक भी रहे हैं और इस लोकसभा चुनाव में भी उसने अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं।
फिर भी पीआरकेयू के अध्यक्ष रमाकांत सिंह का दावा है कि ये माओवादी दल है। इसी तरह की धारणा विरोधी यूनियनों के अन्य नेताओं की भी है, जो हिंसा की बात कहकर एक्टू को नकारने का प्रचार करना शुरू कर चुके हैं।
‘वर्कर्स यूनिटी’ से बातचीत में एक्टू के रेलवे फ्रंट की जिम्मेदारी संभाल रहे डॉ. कमल ऊसरी ने कहा कि ‘रमैया कट्टा को किसी भी बड़ी जिम्मेदारी के लिए नहीं चुना गया।’
ईस्ट कोस्ट रेलवे, पूर्व दक्षिण रेलवे, दक्षिण रेलवे से सुभाशिष बागची, एस मुनिराजू, के नागेश्वर राव चुने गए हैं। सम्मेलन में आईआरईएफ का महामंत्री एक्टू से संबद्ध नार्थ सेंट्रल रेलवे वर्कर्स यूनियन के महामंत्री मनोज पांडे को चुना गया।’
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रमैया कट्टा के समर्थकों में नाराजगी
आईआरईएफ़ के जनरल सेक्रेटरी रहे रमैया कट्टा को एक्टू से हाथ मिलाने के बाद बाहर कर दिया गया। इसकी भनक उन्हें सम्मेलन में हुए चुनाव से पहले तक नहीं लगी। जबकि दोनों दिन की कार्यवाही में वे मौजूद रहे।
ऐसे में रमैया समर्थक इस बात से ख़फ़ा होकर वापस हुए कि एक साजिश रची गई सर्वजीत गुट और एक्टू की ओर से।
इसका असर आईआरईएफ़ के दक्षिण भारत में काम पर बड़ा असर होने की संभावना है। हालांकि एक्टू से जुड़े कुछ अन्य संगठन दक्षिण भारतीय राज्यों में सक्रिय हैं।
सूत्रों का कहना है कि रमैया कट्टा आईआरईएफ़ के मौजूदा स्वरूप को लेकर कोर्ट की शरण में भी जा सकते हैं।
हालांकि इसका कोई असर शायद न पड़े, क्योंकि वे सम्मेलन के भागीदार रहे और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से नई टीम का चुनाव हुआ।
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टीयूसीसी बना सकती है नया फेडरेशन
आईआरईएफ़ के अलग हो जाने के बाद कई ज़ोन की यूनियनों को लेकर टीयूसीसी नया फ़ेडरेशन बना सकती है, इसके संकेत मिल रहे हैं।
वहीं एक सूरत ये भी हो सकती है कि कुछ यूनियनें सीधे संबद्ध रहें।
इसकी वजह ये हो सकती है कि टीयूसीसी बीएमएस के बनाए कन्फ़ेडरेशन ऑफ सेंट्रल ट्रेड यूनियंस (कन्सेंट) का हिस्सा ही नहीं है, दूसरे नंबर की हैसियत रखती है।
कन्सेंट का ढांचा निचले स्तर पर साझा बनाने का भी इरादा है।
ऐसे में उन यूनियनों को एक ही ज़ोन मेें तालमेल बनाने की मजबूरी हो जाएगी, जो पहले से अलग हैं।
हालांकि व्यवहारिक तौर पर इसका नतीजा क्या निकलेगा, कहना मुश्किल है।
इस प्रैक्टिस के होने पर आईआरईएफ़ का एआईआरएफ़, एनएफ़आईआर और कन्सेंट के तीन मोर्चों से घिरना लगभग तय है।
वैकल्पिक मोर्चा बनने की उम्मीद
आईआरईएफ़ के मौजूदा नेतृत्व में वामपंथी भाकपा माले लिबरेशन का वैचारिक दबदबा कायम हो चुका है, जो देर-सबेर संगठन और गतिविधियों में झलकेगा।
इससे पहले फ़ेडरेशन वैचारिक तौर पर खाली था।
नए नेतृत्व ने तय किया है कि रेलवे के ट्रेड यूनियन आंदोलन में अवसरवादी, नौकरशाही की संस्कृति समाप्त करते हुए लोकतांत्रिक और भरोसेमंद विकल्प बनाएगा।
ये विकल्प भारतीय रेल को बचाने के लिए श्रमिकों को लामबंद करेगा, साथ ही पुरानी पेंशन स्कीम, श्रमिक अधिकार और जनवाद के मुद्दों पर संघर्ष करेगा।
इलाहाबाद में 30-31 मार्च को हुए सम्मेलन में वैकल्पिक दृष्टि और वैकल्पिक रेल श्रमिक आंदोलन, राष्ट्रीय राजनीतिक स्थिति पर विचार किया गया।
इसके साथ ही रेल कर्मचारियों के आंदोलन की भूमिका, अंतरराष्ट्रीय रेल मजदूर संघर्ष, फासीवाद, रेलवे में ठेका मजदूरी, रेल मजदूरों के संघर्ष की रूपरेखा के लिए तीन वर्षीय योजना पर विचार विमर्श किया गया।
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