पुणे में एलजी कंपनी में यूनियन बनाने की सज़ा, 27 मज़दूरों का ट्रांसफ़र
महाराष्ट्र के पुणे में स्थित एलजी प्लांट में काम करने वाले मज़दूर 2019 से यूनियन बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
मज़दूरों का आरोप है कि कंपनी में रोज़ाना 9 घंटे से अधिक काम कराया जाता है और वेतन के नाम पर वही 8-9 हज़ार दिया जाता है।
मज़दूरों का कहना है कि, “कंपनी के इस दोहरे रवैये के कारण हम यूनियन बना कर लड़ना चाहते हैं। लेकिन कंपनी प्रबंधन को ये बात रास नहीं आई इसलिए उन्होंने हम पर केस कर दिया है।”
एक मज़दूर ने वर्कर्स यूनिटी को फ़ोन पर बताया, “हम मार्च 2019 से यूनियन बनाने के लिए संर्घष कर रहे हैं। तारीख दर तारीख लेबर कोर्ट में सुनवाई चलती है। पर कोई नतीजा नहीं निकल रहा है। और कोरोना के कारण सब कुछ शांत पड़ा हुआ है।”
मज़दूर ने कहा कि, “कंपनी में 550 से अधिक लोग काम करते हैं। इनमें से 497 लोग मज़दूर यूनियन में शामिल हैं। मज़दूरों की एकता को तोड़ने के लिए प्रबंधन ने 15 मज़दूरों पर फर्जी मुकदमा दायर कर के उन्हें काम से निकाल दिया है।”
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यूनियन बनाने में अड़ंगे
उनके अनुसार, “27 मज़दूरों को दूसरे प्लांट में भेज दिया है और जो मज़दूर काम कर रहे हैं। प्रबंधन उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित करता है।”
वहीं एक और मज़दूर ने कहा कि, “कंपनी और मज़दूरों को निकालने के फिराक में थी पर लेबर कोर्ट ने स्टे लगा दिया है। वरना प्रबंधन हमारी एकता को तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ता।”
मज़दूर अपने हक के लिए लड़ रहे हैं। लेकिन सरकारें उनके अधिकारों को खत्म करने में जुटी हुई है। कंपनी मालिक मज़दूरों का आसानी से शोषण कर सके इसलिए श्रम क़ानूनों को रद्द किया जा रहा है।
कोरोना के बाद लगे लॉकडाउन के बहाने मोदी सरकार ने एक तरफ़ 44 श्रम क़ानूनों को ख़त्म करने का काम किया है दूसरी तरफ़ राज्य सरकारों को अपने यहां श्रम क़ानूनों को पूरी तरह ख़त्म करने का बढ़ावा देने का काम किया है। और इसमें बीजेपी शासित राज्य सबसे आगे हैं।
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