मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन का 11वां स्थापना दिवस
By रामनिवास
एक मार्च 2022 को आज मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन अपना 11 वां स्थापना दिवस मना रही है। मारुति मजदूरों के लिए स्थापना दिवस के अपने अलग ही मायने हैं क्योंकि यूनियन की स्थापना को लेकर मारुति कारखाने में बहुत बड़ा संघर्ष हुआ। संघर्ष की लौ जगाने वाले पहले अगुवा नेताओं को प्रबंधन के दबाव के चलते नौकरी छोड़कर जाना पड़ा।
मजदूरों के ऊपर दबाव बनाकर मारुति प्रबंधन ने 44 अगुवा साथियों को 16-16 लाख या उससे कुछ ज्यादा रुपए देकर जबरन रिजाइन करवाया गया। मंशा बिल्कुल साफ थी कि यह लोग अगर चले जाएंगे तो मजदूरों के लिए एक बहुत बड़ा सदमा होगा, मजदूर इसको गद्दारी के रूप में लेंगे और फिर से खड़ा होने का प्रयास नहीं करेंगे।
एक हद तक कुछ ऐसा हुआ भी लेकिन अपने संघर्ष के चलते जो वर्गीय चेतना उत्पन्न हुई थी उससे लोगों का आपसी विश्वास बहुत मजबूत बन गया था। सभी ने सोच लिया था कि अगर नौकरी करनी है तो अपने यूनियन के झंडे के नीचे करनी है अन्यथा गुलामी की नौकरी करने का कोई मतलब नहीं बनता।
फिर से मजदूर एकजुट हुए, नए सिरे से यूनियन पंजीकरण की फाइल का आवेदन किया गया। इस बार नई कार्यकारिणी में जो लोग आए उनके ऊपर दबाव भी था और अविश्वास भी, कि कहीं पहले अगुवा मजदूरों की तरह यह लोग भी पैसा लेकर ना चले जाएं।
कारखाने में काम करने वाले मजदूर बार-बार एक ही बात को दोहराते थे कि अगर हमारे साथ धोखा हुआ तो हम किसी को छोड़ेंगे नहीं। इस दबाव के चलते सभी नेतागण बड़ी सजगता से एक-एक कदम फूंक कर रख रहे थे।
मजदूरों ने अपनी सुविधाओं को छोड़कर जब उन्हें यह बोला कि इस कारखाने में काम करने वाले सभी मजदूरों को एक समान सुविधाएं व वेतन मिलना चाहिए, प्लांट से ठेकेदारी प्रथा खत्म होनी चाहिए तो इन नेताओं को उसके कानूनी प्रावधान का नहीं पता था कि क्या एक कारखाने से इस प्रकार ठेका प्रथा खत्म किया जा सकती है या उसका कानूनी प्रावधान क्या है?
लेकिन उन्होंने प्रबंधन के सामने इस बात को प्रमुखता से उठाया और इस बात पर अडिग रहे कि जब तक सभी मजदूरों को एक समान सुविधाएं व वेतन नहीं मिलेगा तब तक वह स्थाई श्रमिकों की किसी अन्य बात के ऊपर चर्चा नहीं करेंगे और अंततः अपनी इन्हीं बातों पर डटे रहे।
18 जुलाई के षड्यंत्र के तहत जेल चले गए। आज जब हम यह 11 वां स्थापना दिवस मना रहे हैं तो हमें अपने उन साथियों की याद आती है, जिनमें से हमारे एक साथी पवन दहिया हमारे बीच में नहीं रहे, जिनका आज जन्मदिन है।
एक तरफ मारुति के मजदूरों में स्थापना दिवस का उत्साह है, खुशियां हैं, वह अपने स्थापना दिवस को बड़े उत्साह के साथ मनाएंगे दूसरी तरफ एक इकलौता परिवार जिसने अपने मुखिया को खो दिया है, उनके बीच क्या भावनाएं रही होंगी यह हम सोच भी नहीं सकते।
किस प्रकार से छोटे-छोटे बच्चे अपने पिता को याद कर रहे होंगे, एक पत्नी अपने जीवन साथी के बिना कैसे अपनी जिंदगी को बीताएगी? यह सब बातें आज हमारे मन में चल रही हैं।
बेशक मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन अपने साथियों के कंधे के साथ कंधा मिलाकर चलती आई है और आज के इस दिन भी जरूर अपने साथी को याद करेगी।
यह लेख लिखने का मकसद भी यही है कि हम अपने साथियों को यूं ही भूल न जाएं। उनकी कुर्बानियों को व्यर्थ जाया ना जाने दें। उनके परिवार से हमारी मार्मिक भावनाएं जुड़ी हैं, यह दर्शाने का एकमात्र रास्ता यह सन्देश है ताकि अन्य मजदूर भी चाहे वह किसी भी कारखाने के रहे हैं अपने अगुवा साथियों के प्रति संवेदनशील रहें क्योंकि जिस दौर में शुरुआत करनी होती है उस दौर में यह अगुवाई करने वाले मजदूर बड़ी मुश्किल से मिलते हैं।
ज्यादातर कारखानों में उन्हें बलिदान देना ही पड़ता है या तो उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाता है या उन पर इतना दबाव बना दिया जाता है कि वो खुद नौकरी छोड़कर चले जाएं। यह संदेश, यह खुशी पवन दहिया के नाम। क्रांतिकारी लाल सलाम, पवन भाई अमर रहे।
(राम निवास 2012 में मारुति संघर्ष के लिए बनी और अबतक पीड़ित मज़दूरों के लिए संघर्षरत मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन, प्रोविजनल कमेटी के अहम सदस्य हैं)
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