साढ़े 9 साल बाद मारुति मजदूर रामबिलास को मिली ज़मानत, 10 अन्य मज़दूर नेताओं के लिए उम्मीद बढ़ी
बीते नौ साल चार महीनों से जेल में बंद मारूति सुजुकी वर्कर्स यूनियन के 13 नेताओं , जिन्हें उम्र कैद की सज़ा दी गई थी, में से पहली ज़मानत रामबिलास को मिली है। 24 नवंबर को रामबिलास को चंडीगढ़ उच्च न्यायालय से ज़मानत मिली।
और अब बाकी मज़दूर नेताओं के ज़मानत पर रिहा होने की उम्मीद बढ़ गई है।
ग़ौरतलब है कि मारुति मानेसर प्लांट के मज़दूरों ने जून 2011 में यूनियन बनाने की मांग पर संघर्ष शुरू किया था। यूनियन की बुनियादी मांग के पीछे सम्मानजनक काम की शर्तें हासिल करने के कई पहलु छिपे थे।
मज़दूरों के जुझारू संघर्ष ने इस आन्दोलन को हरियाणा ही नहीं पूरे देश में मज़दूर शक्ति और एकता का प्रतीक बना दिया।
जुलाई 2012 में कंपनी में मज़दूरों और कंपनी बाउंसरों के टकराव और एक मैनेजर की मौत के बाद 546 स्थायी और 1800 ठेका मज़दूरों को बिना जांच काम से निकाल दिया गया और सभी यूनियन नेताओं सहित 213 लोगों पर संगीन धाराओं में एफ़आईआर दर्ज कर दी गई।
इतनी बड़ी संख्या में नेतृत्वकारी वर्करों के जेल में जाने के बावजूद मारुति का आंदोलन चलता रहा और इसके लिए बाहर मौजूद मज़दूर नेताओं की ‘प्रोविजनल कमेटी’ बनाई गई।
साल 2012 में गिरफ्तार किए गए 147 मजदूरों को जहां 2017 में, 5 साल जेल काटने के बाद, गुड़गांव सेशन कोर्ट द्वारा बाइज्ज़त बरी किया गया वहीं उसी केस में 12 सदस्यीय यूनियन बॉडी के सभी सदस्यों और एक मज़दूर जियालाल को उम्र कैद की सजा सुना दी गई।
लेबर एक्टिविस्ट नयन कहते हैं कि ‘मारुती मज़दूरों पर किया गया बर्बर हमला, सत्ता द्वारा सभी मजदूरों को सबक सिखाने के लिए किया गया था, ताकि अन्याय और शोषण के खिलाफ कोई और सिर ना उठा पाए। कांग्रेस से लेकर भाजपा, पुलिस से लेकर न्याय व्यवस्था, सभी कंपनी राज के सामने नकमस्तक रहे।’
टीयूसीआई के महासचिव और वरिष्ठ वकील संजय सिंघवी का कहना है कि ये मुकदमा ऊपरी अदालों में बहुत देर तक नहीं टिकेगा क्योंकि ये अभी तय ही नहीं हुआ कि मैनेजर की मौत कैसे हुई है और उसमें इन मज़दूरों का क्या हाथ है।’
हालांकि मारुति मज़दूरों के संघर्ष के कारण आखिरकार कंपनी को यूनियन की मान्यता देनी पड़ी। यूनियन को अपने इशारे पर नचाने की कोशिश भी हुई लेकिन अंततः स्वतंत्र यूनियन के गठन और कंपनी की ओर से इसे मान्यता मिलने में कामयाबी हासिल हुई।
इस दौरान मजदूरों ने जेल, फैक्ट्री और समाज में एकताबद्ध तरीके से संघर्ष जारी रखा। उम्र कैद झेल रहे मज़दूर नेताओं और उनके परिवारों ने अपना हौसला नहीं खोया। 2021 में इनमें से दो का निधन हो गया।
पवन एक दुर्घटना में और जियालाल कैंसर के शिकार हो कर जान गवां बैठे।
बर्खास्त स्थायी मजदूरों का बड़ा हिस्सा – 360 मज़दूर – आज भी लेबर कोर्ट में संघर्ष कर रहा है। कंपनी के अंदर कार्यरत मज़दूरों और यूनियन की ओर से उम्रकैद भुगत रहे मज़दूर नेताओं के परिजनों को लगातार आर्थिक और अन्य मदद मुहैया कराई जाती रही।
यूनियन ने साढ़े 9 सालों बाद अपने साथी की रिहाई पर खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा है कि ‘बाकी 10 गिरफ्तार मारुति मजदूरों की रिहाई, झूठे मुकद्दमों को ख़ारिज करवाने और सभी बर्ख़ास्त मज़दूरों की पुनर्बहाली के संघर्ष को जारी रखने का दृढ़निश्चय और बुलंद हुआ है।’
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