लेबर कोड के ख़िलाफ़ 19 को दिल्ली में राष्ट्रीय कन्वेंशन, 23 को ब्लैक डे मनाने का आह्वान
कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ सड़क पर बैठे किसानों के बाद, लेबर कोड के ख़िलाफ़ मज़दूर संगठन भी कमर कस कर तैयार हो रहे हैं। आगामी सप्ताह, किसान संगठनों के द्वारा 27 सितम्बर को भारत बंद के आह्वान के अलावा मज़दूरों की ओर से जारी प्रतिरोध का भी गवाह बनने जा रहा है।
श्रम क़ानूनों को ख़त्म कर उन्हें श्रम संहिताएं बनाने के ख़िलाफ़ मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) के बैनर तले दर्जनों ट्रेड यूनियनें 19 सितम्बर को दिल्ली में कन्वेंशन आयोजित कर रही हैं। मासा ने लेबर कोड पारित कराए जाने के एक साल पूरे होने के मौके पर 23 सितम्बर को पूरे देश में काला दिवस मनाने का आह्वान किया है।
मासा की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि ‘पिछले दशकों में मजदूर वर्ग पर हमले लगातार बढ़ते रहे हैं। श्रम कानून में ‘सुधार’, बेलगाम शोषण, जीवन-आजीविका के बढ़ते संकट और मजदूर आंदोलन पर भारी दमन इसके गवाह हैं। पूंजीवाद-साम्राज्यवाद के गहराते संकट और गिरते मुनाफ़ा दर के मद्देनज़र सरकारों द्वारा अपने पूंजीवादी-साम्राज्यवादी आकाओं के लिए लागू की गईं नव-उदारवादी नीतियों का ही यह प्रत्यक्ष परिणाम है।’
इसमें कहा गया है कि ‘भारत में, भाजपा-आरएसएस की मोदी सरकार ने 2014 में केंद्र में सत्ता में आने के बाद से इस प्रक्रिया को अभूतपूर्व रूप से तेज किया है। केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर मजदूर विरोधी ‘सुधारों’ के बाद इसने, अपने ही शब्दों में, कोविड “आपदा को अवसर” में बदलते हुए एक साल पहले संसद में चार नई श्रम संहिताओं अथवा लेबर कोड को पारित कर भारत के मजदूर वर्ग पर सबसे बड़े हमले को अंजाम दिया।’
मासा के नेता और टीयूसीआई के जनरल सेक्रेटरी संजय सिंघवी के अनुसार, “राष्ट्रपति द्वारा हरी झंडी मिल जाने के बाद अब इन 4 संहिताओं के कार्यान्वयन के लिए केवल राज्यों द्वारा संहिताओं पर नियमावली तैयार किए जाने की देर है, जो रिपोर्ट के अनुसार आगामी 1 अक्टूबर तक पूरा हो सकता है।’
मासा के संयोजक अमित का कहना है कि ये श्रम संहिताएं न केवल 44 श्रम कानूनों की मौजूदा प्रणाली को ध्वस्त करेगी, बल्कि मजदूर वर्ग के सबसे बुनियादी अधिकारों और शक्तियों को गंभीर रूप से प्रभावित करेगी या वस्तुतः समाप्त कर देगी जैसे यूनियन गठन, हड़ताल, सामूहिक समझौता, स्थाई नौकरी, सामाजिक सुरक्षा, कार्यस्थल पर सुरक्षा आदि। जहां संगठित क्षेत्र बर्बाद हो जाएगा, वहीं असंगठित क्षेत्र, जिसमें 90% से अधिक मजदूर अनिश्चित परिस्थितियों में कार्यरत हैं और जो पहले से ही ज़्यादातर श्रम कानूनों के दायरे से बाहर है, सबसे बुरी तरह प्रभावित होगा।
मासा के घटक संगठन इंकलाबी मज़दूर केंद्र के श्यामबीर का कहना है कि मजदूरों द्वारा संघर्ष व बलिदान से हासिल किए गए अधिकारों व सुरक्षाओं के छिन जाने से मजदूर वर्ग को पूंजी की नंगी तानाशाही के अंतर्गत सदियों पीछे धकेल दिया जाएगा, जहां उजरती-गुलामी की वास्तविकता पूर्णतः उजागर होगी। वस्तुतः सभी क्षेत्रों में हड़ताल पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने हेतु लाया गया ‘आवश्यक रक्षा सेवा अधिनियम, 2021’ इसका एक ज्वलंत उदाहरण है।
मासा ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि अपनी फासीवादी नीति के तहत मोदी सरकार ने 3 काले कृषि कानूनों, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और ‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ को भी पारित करवाया है, ताकि कृषि, शिक्षा और देश की सभी सार्वजनिक संपत्तियों को कॉर्पोरेट को सौंपा जा सके।
कॉरपोरेट-पक्षीय कृषि कानूनों के खिलाफ जुझारू व निर्णायक संघर्ष में डटे किसानों के संघर्ष को समर्थन देने के साथ ही मासा ने 23 सितंबर को संसद में लेबर कोड पारित होने के एक वर्ष पूरे होने पर ‘ब्लैक डे’ के रूप में मनाने की अपील की है।
मासा की ओर से 19 सितम्बर को शाम छह बजे से दिल्ली के गांधी पीस फाउंडेशन के सभागार में लेबर कोड पर एक राष्ट्रीय कन्वेंशन का आयोजन किया गया है।
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