टीकरी बॉर्डरः किसानों के मंच पर 13 को औद्योगिक मज़दूर और ट्रेड यूनियनें
मोदी सरकार द्वारा लाये गये कृषि कानूनों और लेबर कोड के ख़िलाफ़ ट्रेड यूनियनें 13 मार्च को टिकरी बॉर्डर पर किसानों के साथ एक मंच पर आयेंगी।
क़रीब दो दर्जन ट्रेड यूनियनों के मंच मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) के संयोजकों में से एक संतोष कुमार ने बताया कि “तीनों खेती कानूनों खिलाफ किसानों ने जो संघर्ष शुरू किया है, वह सिर्फ किसानों के खिलाफ ही नहीं है। बल्कि मजदूरों समेत समूची मनुष्य जाति के खिलाफ है , यह कानून बहुत ही क्रूरतापूर्ण ढंग से मोदी सरकार ने WTO के फरमान को को लागू करते हुए जमीनों, फसलों ,अनाजों और मंडियों के ऊपर देशीविदेशी कॉर्पोरेटों का कब्जा करने के लिए बनाए हैं।”
मालूम हो कि मौजूदा केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानूनों व चार लेबर कोड पास किये हैं,जिनका किसानों और मज़दूरों द्वारा भारी विरोध हो रहा है। इससे पहले केन्द्र सरकार ने 44 श्रम कानूनों को समाप्त करके 4 लेबर कोड बनाकर मज़दूरों के विरोध के बावजूद 1 अप्रैल से लागू होने जा रहा है।
संतोष कुमार का कहना है कि यह कानून भारत को देशी-विदेशी कॉरपोरेट घरानों के लिए और भी ज्यादा सस्ती दर पे मंडी उपलब्ध करने का दस्तावेज है। साथ ही 81 करोड लोगों को जो सस्ता राशन मुहैया करने वाली जो छोटी मोटी सार्वजनिक प्रणालियां हैं उनको भी यह कानून पूरी तरह से बर्बाद कर देगा।
मासा ने अपने साझा बयान में कहा कि “तीनों काले कृषि कानूनों के खिलाफ किसान लगातार पिछले कई महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर धरना देकर बैठे हुए हैं लेकिन तानाशाह मोदी सरकार उनकी आवाज को अनसुना करके आंदोलन को तोड़ने की साजिश कर रही है। और किसानों व उनका समर्थन करने वाले लोगों , युवाओं,छात्रों, महिलाओं, पत्रकारों पर देशद्रोह व यूएपीए जैसे काले कानून को लगाकर जेलों में बंद कर रही है ,जनवादी अधिकारों पर हमले कर रही है।”
मासा के घटक और इंकलाबी मज़दूर केंद्र के नेता श्यामवीर के मुताबिक एक तरफ तीन खेती कानून पास कर दिए गये और दूसरी तरफ श्रम कानूनों को खत्म कर भारत को बंधुआ मजदूरों की मंडी बनाने वाले नए कानून पास कर दिए गए।
नये श्रम कानूनों में मज़दूरों की न्यूनतम मज़दूरी और सारे सामाजिक सुरक्षा का आधार भी खत्म कर दिया गया है। 8 घंटे की जगह 12-12 घंटे का कार्यदिवस का प्रस्ताव दिया गया है।
ट्रेड यूनियन नेताओं ने कहा कि मौजुदा सरकार मेहनतकश जनता पर चौतरफा हमला कर रही है। जनता के पक्ष में बातें करने वाले लोगों को झूठे मुकदमों में फंसा कर जेलों में भरा जा रहा है। ये आंदोलन जनता की शिक्षा,स्वास्थ्य,रोजगार और जनतांत्रिक मुल्यों को भी बचाने की लड़ाई हैं।
यूनियनों से जुड़े नेताओं ने मज़दूर, किसान और इंसाफपंसद लोगों से यह आह्वान किया कि इस आंदोलन में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें क्योंकि ये हम सब का साझा संघर्ष है।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)