मैराथन मीटिंग के बाद आर्डनेंस फ़ैक्ट्रियों में 12 से शुरू होने वाली देशव्यापी अनिश्चितकालीन हड़ताल टली
भारतीय सेना के लिए बम गोले, बारूद, टैंक बनाने वाली 41 आर्डनेंस फ़ैक्ट्रियों में 12 अक्टूबर को निर्धारित अनिश्चितकालीन हड़ताल स्थगित हो गई है।
शुक्रवार को ट्रेड यूनियन नेताओं और सरकार के नुमाइंदों के बीच मुख्य लेबर कमिश्नर की मध्यस्थता में चली मैराथन बातचीत में ये निर्णय हुआ।
शुक्रवार की शाम ऑल इंडिया डिफ़ेंस इम्प्लाईज़ फ़ेडरेशन (एआईडीईएफ़) ने एक सर्कुलर जारी कर 82000 कर्मचारियों को इसकी सूचना दी है।
वार्ता में एआईडीईएफ़, इंडियन नेशनल डिफ़ेंस वर्कर्स फ़ेडरेशंस (आईएनडीडब्ल्यूएफ़), भारतीय प्रतिरक्षा मज़दूर संघ (बीपीएमएस), नेशनल प्रोग्रेसिव डिफ़ेंस एम्प्लाइज़ फ़ेडरेशन (एनपीडीईएफ़) के प्रतिनिधि और डिफ़ेंस प्रोडक्शन के ज्वाइंट सेक्रेटरी पुनीत अग्रवाल मौजूद थे।
सर्कुलर में कहा गया है कि केंद्रीय मुख्य लेबर कमिश्नर की मध्यस्थता में हुई मीटिंग में तय हुआ है कि औद्योगिक विवाद 1947 के सेक्शन 33(1) के तहत सरकार निगमीकरण की प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाएगी।
सर्कुलर में कहा गया है कि सभी फ़ैक्ट्रियों में गेट मीटिंग कर इस समझौते के बारे में कर्मचारियों को बताया जाएगा।
शुक्रवार को मीटिंग सुबह 11.30 से लेकर शाम 4.30 बजे तक (पांच घंटे) चली जिसमें तय हुआ कि फ़ेडरेशनों की तीन सूत्रीय मांग पर डिफ़ेंस सेक्रेटरी और इजीओएम के बीच आगे बातचीत जारी रहेगी।
जबतक मांग पत्र (चार्टर ऑफ़ डिमांड) पर बातचीत चलेगी औद्योगिक विवाद अधिनियम के सेक्शन 33(1) के तहत सरकार निगमीकरण पर आगे नहीं बढ़ेगी।
मीटिंग में यूनियनों ने कहा कि आर्डनेंस फ़ैक्ट्रियों के निगमीकरण को सरकार वापस ले। लेकिन रक्षा मंत्रालय के अधिकारी इस बात पर अड़े रहे कि ये सरकार का नीतिगत फ़ैसला है और इसलिए बातचीत केवल कर्मचारियों की सेवा शर्तों पर ही होनी चाहिए।
जब फ़ैडरेशनें भी अपनी मांग पर अड़ गईं तो ये तय हुआ कि चार अगस्त को मांग पत्र के साथ दी गई हड़ताल की नोटिस पर रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी और इजीओएम के स्तर की बातचीत किए जाने की ज़रूरत है।
इस दौरान औद्योगिक विवाद अधिनियम प्रबंधन पर लागू होगा।
क्या है सेक्शन 33(1)
औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के सेक्शन 33(1) के तहत वार्ता जारी रहने के दौरान कर्मचारियों की सेवा शर्तों में बदलाव नहीं हो सकता।
बातचीत के दौरान कोई कोई भी नियोक्ता विवाद से जुड़े किसी भी मामले में, विवाद से संबंधित किसी भी कर्मचारी के ख़िलाफ़ पूर्वाग्रह से संबंधित कोई कार्यवाही नहीं करेगा। वार्ता शुरू होने से पहले जो सेवा शर्तें थीं, वो बरकरार रखी जाएंगी।
इस संबंध में न तो वार्ताकार अधिकारी, न लेबर कोर्ट या ट्रिब्यूनल या नेशनल ट्रिब्यूनल के सामने किसी कार्यवाही को आगे बढ़ाया जाएगा।
यूनियनों का पक्ष
यूनियन नेताओं का कहना है कि भारत सरकार और रक्षा मंत्रालय ने देश की रक्षा की रीढ़ 41 आर्डनेंस फ़ैक्ट्रियों के आर्डनेंस फ़ैक्ट्री बोर्ड (ओएफ़बी) के निगमीकरण का एकतरफ़ा फैसला ले लिया जबकि अलग अलग रक्षा मंत्रियों और डिफ़ेंस प्रोडक्शन के सचिवों ने ऐसा न करने का वादा किया था।
कई मौकों पर सरकार ने निगमीकरण का फ़ैसला लिया लेकिन यूनियनों को विश्वास में लेकर उन्होंने हमेशा अपने फैसले बदले।
अगर सरकार अपने फ़ैसले पर आगे बढ़ती है तो हज़ारों कर्मचारियों की सेवा शर्तों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और रक्षा उत्पादन जैसे बेहद संवेदनशील मसले पर भी उलटा असर होगा।
यूनियनों की मांग है कि निगमीकरण के फ़ैसले को सरकार तुरंत वापस ले और एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन हो जो इन आयुध कारखानों की क्षमता और उत्पादन बढ़ाने पर एक विस्तृत अध्ययन करे।
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