नियमित और ठेका मज़दूरों के बीच फंसी मज़दूर राजनीति

नियमित और ठेका मज़दूरों के बीच फंसी मज़दूर राजनीति

 By संदीप सोलंकी   

होंडा मोटरसाइकिल स्कूटर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड एचएमएसआई जोकि आईएमटी मानेसर में सेक्टर 3 प्लॉट नंबर 3 में स्थित है। इस कंपनी ने 2005 में अपना प्रोडक्शन यूनिट स्थापित किया था।

आज से लगभग 16 साल पहले यानि 2005 में जब कंपनी की शुरुआत हुई थी तब यहां रेगुलर कर्मचारी की तनख्वाह मात्र 26 सौ रुपए के आसपास थी।

वही अब साल 2021 है में यहां पर नियमित कर्मचारी की सैलरी ₹100000 से अधिक है जबकि ठेका  कर्मचारी जिनको कैजुअल कर्मचारी भी कहा जाता है की सैलरी 16000 से लेकर 20000 तक है।

कंपनी में साल 2006 में कर्मचारियों ने यूनियन बनाने को लेकर हड़ताल की थी उस हड़ताल के दौरान प्रशासनिक कार्यवाही में कर्मचारियों पर पुलिस ने बर्बरता पूर्ण व्यवहार किया जिसमें कई कर्मचारियों को चोटें आई फलस्वरूप कंपनी को कर्मचारियों के आगे झुकना पड़ा और कंपनी में यूनियन का निर्माण हुआ।

यूनियन बनने के बाद कंपनी में नियमित कर्मचारी का वेतन 10,000 से 13000 के बीच हो गया और कैजुअल कर्मचारी का वेतन 3500 रुपए के आसपास था।

हर 3 साल के बाद सेटलमेंट के साथ में रेगुलर कर्मचारियों का वेतन बढ़ता गया जो कि वर्तमान में लाख- सवा लाख रुपए के आसपास है।

हडताल होने के बाद कंपनी प्रबंधन ने रेगुलर कर्मचारियों की भर्ती बंद कर दी जिससे वहां पर ठेका श्रमिकों को बढ़ावा दिया गया एचएमएसआई में रेगुलर कर्मचारी काम ना के बराबर करते हैं।

क्योंकि मैंने दो हजार आठ-नौ में वहां काम किया है जिसकी वजह से मुझे पता है कि यूनियन के नाम पर कैजुअल कर्मचारियों को बरगलाया जाता है और उनको कहा जाता है कि आप रेगुलार करवाया जा रहा हैं।

जबकि ऐसा कुछ भी नहीं होता, आम जनता को भी यह पता होना चाहिए की भारत सरकार या कोई भी निजी कंपनी कैसे 15 से 16 साल के पीरियड के दौरान एक आईटीआई होल्डर को लाख-सवा लाख रुपया  महीना वेतन दे सकती हैं।यह अपने आप में एक शोध का भी विषय है।

कर्मचारियों का दोहन किया जाता है लेकिन उसमें भी कैजुअल कर्मचारी का ज्यादा से ज्यादा शोषण किया जाता हैं।

क्योंकि कंपनी रेगुलर वर्कर को सुपरवाइजर के तहत उसके वर्क एरिया में लगा देती है वहीं ठेका श्रमिकों से बाकि के सभी काम लिये जाते है।

सारे काम ठेका श्रमिक करते हैं जबकि इंसेंटिव रेगुलर कर्मचारी को दिया जाता है।

जिससे बड़ी समस्या ये आती है कि मज़दूर दो श्रेणियों में बंट जाता है एक ठेका श्रमिक दूसरा रेगुलर कर्मचारी।

कंपनी के रेगुलर कर्मचारी बिल्कुल मालिकों की तरह व्यवहार करते हैं क्योंकि यूनियन भी उनका ही साथ देती है कंपनी भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती।

जबकि एक कैजुअल कर्मचारी को किसी भी समय कंपनी बाहर का रास्ता दिखा देती है।

यह समस्या आईएमटी मानेसर की छोटी-बडी सभी कंपनियों में देखने को मिलती हैं।

बड़ी-बडी कंपनियां भी अपने यहां सीमित संख्या में ही रेगुलर कर्मचारियों को रखती है और ज्यादा से ज्यादा ठेका श्रमिक रखती है और साथ में उनको यह भी भरोसा दिलाती हैं कि अगर आप अच्छा काम करेंगे तो आपको शायद हम रेगुलर भी कर ले यह बात सभी प्राइवेट एमएनसी कंपनी पर लागू होती है।

 (एचएमएसआई के पूर्व मज़दूर )

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Abhinav Kumar

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