ऑर्डनेंस फ़ैक्ट्री कर्मियों की संभावित हड़ताल से सहमी बीजेपी सरकार, डराने पर उतरी
By गौतम मोदी
भारत सरकार द्वारा कल देर रात (बुधवार, 30 जून 2021) पेश किया गया आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश 2021 (ईडीएसओ) श्रमिकों के सामूहिक सौदेबाजी के लोकतांत्रिक अधिकार और हड़ताल करने के उनके अधिकार पर भाजपा सरकार का सबसे हालिया हमला है। एनटीयूआई मोदी सरकार के इस निंदनीय और अलोकतांत्रिक कृत्य की कठोर निंदा करता है।
ऐसे सभी कार्यस्थल जो ‘आवश्यक रक्षा सेवाओं’का या उनके लिए उत्पादन करते हों उनमें ईडीएसओ एक झटके में किसी भी प्रकार के लोकतांत्रिक विरोध को गैरकानूनी घोषित कर देता है जिसमें हड़ताल करने का अधिकार भी शामिल है।
ईडीएसओ का इस प्रकार लागू किया जाना भाजपा सरकार के इरादों और निर्णय लेने की प्रक्रिया के बारे में कई सवाल खड़े करता है। जैसा की होता है, कल दोपहर केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक हुई जिसके बाद एक प्रेस वार्ता हुई। इस प्रेस वार्ता में या किसी भी समय ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई कि सरकार द्वारा ऐसा अध्यादेश जारी किया जाएगा। क्या इसका मतलब यह है कि भाजपा सरकार बिना केंद्रीय मंत्रिमंडल में चर्चा किए अध्यादेश जारी कर रही है? यह सवाल भी उठता है कि आखिर कौन सी संभावित परिस्थितियाँ होंगी जिनकी वजह से अचानक देर रात यह असाधारण और आपातकालीन निर्णय लिया गया?
हकीकत यह है कि भाजपा सरकार मानती कि देश की जनता और मजदूर वर्ग उस पर हमला कर रहे हैं। यह एक ऐसी सरकार है जो विरोध करने वालों के खिलाफ़ द्वेषपूर्ण कार्रवाई करती है। यह एक ऐसी सरकार है जो देश भर में 41 ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों में कार्यरत 80,000 मज़दूरों के खिलाफ़ खड़ी है क्योंकि वह इन फैक्ट्रियों का निजीकरण करना चाहती है।
2014 में सत्ता में आने के बाद से ही भाजपा सरकार ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों का निजीकरण करने का प्रयास करती रही है। अगस्त 2019 में ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मोर्चे के नेतृत्व में सभी ऑर्डनेंस मज़दूरों ने एकजुट हो कर अपने शक्तिशाली हड़ताल से इसे पर रोक लगवा दी थी। 2020 में एक और हड़ताल ना हो इस डर से सरकार ने आगे कार्रवाई नहीं की।
देश जब एक गंभीर वित्तीय स्थिति का सामना कर रहा है और देश की बागडोर एक सरकार के हाथों में है जो महामारी की दूसरी लहर के दौरान मार्गदर्शन करने में पूरी तरह से नाकाम रही है।
ऐसे में पिटी हुई और बदनाम भाजपा सरकार ने सोचा कि ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों के निजीकरण का बिगुल बजा कर वह अपनी छवि सुधार सकती है। सामूहिक समझौतों और बातचीत से मामले को सुलझा लेने के हुनर से भाजपा सरकार बिल्कुल अनाड़ी है, ऐसे में जब ऑर्डनेंस वर्कर्स यूनियनों के संयुक्त मोर्चे का 26 जुलाई 2021 से हड़ताल का नोटिस मिला तो तिलमिला कर सरकार ने ईडीएसओ के माध्यम से मज़दूरों पर कार्रवाई करने का फैसला किया है।
जब मुल्क में पहले से एक अत्यंत कठोर आवश्यक सेवा अनुरक्षण कानून, 1981 (एस्मा) लागू है, जिसमें रक्षा फैक्ट्रियों सहित कई कार्यस्थल शामिल हैं, फिर अलग से इस अध्यादेश की क्या ज़रूरत है? दो महत्तवपूर्ण अंतर हटा दें तो अधिकांश ईडीएसओ एस्मा की ही नकल हैं।
पहली बात यह कि ईडीएसओ हड़ताल की परिभाषा को और व्यापक बनाती है, काम बंद करने के साथ-साथ इसमें ‘काम धीरे करना या काम करने में देर लगाना, टूल डाउन करना, टोकन हड़ताल, साॅलिडारिटी हड़ताल या सामूहिक आकस्मिक छुट्टी’ [धारा 2 (1) बी] को शामिल करती है। यह एक ऐसी परिभाषा है जो विरोध के किसी भी रूप की मनमानी व्याख्या के लिए रास्ता खोल देती है, जिसमें उन मज़दूरों की हड़ताल भी शामिल है जो ‘आवश्यक रक्षा सेवा’ से इतर हों पर उनके मुद्दे पर एकजुटता दिखाते हुए कार्रवाई कर रहे हों।
दूसरे यह ‘आवश्यक रक्षा सेवाओं’ की परिभाषा भी वृहद है। इसमें रक्षा से जुड़े प्रतिष्ठानों में सभी उत्पादन और सेवा गतिविधियां शामिल हैं [धारा 2 (1) a i और ii]। इसका मतलब यह है कि इसमें किसी ऑर्डनेंस बोर्ड फैक्ट्री में काम करने वाले कैटरिंग मज़दूर भी शामिल होंगे। इससे भी ख़तरनाक बात यह है कि इसमें वे स्टील मज़दूर भी शामिल किए जा सकते हैं जिन्होंने कल हड़ताल की थी।
देश की सभी स्टील मिलों में ऐसी कोई ना कोई चीज़ बनती है जो हथियार बनाने में काम आती है। यदि इसका दायरा बढ़ाने पर कोई आमादा हो तो इसमें लगभग सभी मज़दूरों को शामिल किया जा सकता है। ऐसे में इस सर्वव्यापी काले कानून को उसी दिन आधी रात के अंधेरे में लागू करना जब दिन में स्टील प्लांटों में काम करने वाले देश भर के 150,000+ स्टील मज़दूरों के क्रोध का सामना करना पड़ा हो, केवल एक संयोग नहीं हो सकता।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने कानूनों का हवाला दे कर देश को गर्त में धकेलने के लिए अपने से पहले के प्रधानमंत्री का मज़ाक उड़ाया है और खुद उन्होंने 50 साल पुराना एक कानून खोज निकाला है, जिसकी जड़ें औपनिवेशिक विश्व युद्ध के कानूनों में निहीत हैं। इस काले कानून को और कठोर बना कर अब इसे वे ‘आधुनिकता’ और ‘राष्ट्रीय हित’ में बेचेंगे।
ऐसा भी प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी भाजपा का खुद अपने लागू किए लेबर कोड में विश्वास खत्म हो रहा है। याद रहे ये लेबर कोड सितंबर 2020 में आपा-धापी में संसदीय प्रक्रिया को ताक पर रखते हुए मनमाने ढंग से लागू किए गए थे। सरकान ने पहले ही औद्योगिक संबंध संहिता 2020 के जरिए किसी भी उद्योग ‘सार्वजनिक उपयोगिता के लिए आवश्यक’ उद्योग घोषित करने का अधिकार कार्यकारिणी को सौंप दिया है जो कि किसी भी मज़दूर को प्रभावी रूप से हड़ताल करने से रोक सकता है।
यानि ईडीएसओ लागू करने का एक ही उद्देश्य है: ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों के मज़दूरों के बीच भय फैलाना। बर्खास्त होने का डर। जुर्माना लगाने का डर। आपराधिक कार्रवाई का आरोप लगने का डर। जेल जाने का डर।
सच तो यह है कि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी भाजपा को ऑर्डिनेंस फैक्ट्री के मजदूरों के गुस्से का डर है। वे और उनकी भाजपा एक संघर्षशील, लोकतांत्रिक और एकजुट मजदूर वर्ग से डरते हैं।
एनटीयूआई ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों के मज़दूरों के संघर्ष में कंधे से कंधा मिला कर उनके साथ खड़ा है और अधिकारों की लड़ाई में हमेशा उनके साथ रहेगा। हम मांग करते हैं कि ईडीएसओ को बिना किसी शर्त अविलंब निरस्त किया जाए।
एक भी मज़दूर के अधिकारों का दमन सभी मज़दूरों के अधिकारों का दमन है।
इतिहास गवाह है कि जब-जब मज़दूरों को एकजुट होने या हड़ताल करने से रोकने की कोशिश की गई है तो उन्होंने दमनकारियों की ईंट से ईंट बजा दी है प्रधानमंत्री मोदी और उनकी भाजपा सरकार को इस बात को भूलना नहीं चाहिए। यह अधिकार काले कानूनों की खिलाफत कर दो शताब्दियों के सतत लोकतांत्रिक संघर्ष से जीते गए हैं। यह विरोध जारी रहेगा। यह विरोध बढ़ेगा और यह विरोध और भी ज्यादा मजबूत होगा।
(लेखक एनटीयूआई के महासचिव हैं। मूल लेख को यहां पढ़ा जा सकता है।)
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