उत्तर भारत में किसानों की बग़ावत तो दक्षिण भारत में मज़दूर असंतोष से सांसत में मोदी सरकार
By संदीप राउज़ी
मोदी सरकार की मुसीबतें दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं। एक तरफ़ उत्तर भारत में किसानों की बग़ावत का सामना करना पड़ रहा है तो दूसरी तरफ़ दक्षिण भारत के बैंगलोर औद्योगिक इलाक़े में मज़दूर असंतोष के कारण एप्पल और ट्योटा जैसी बड़ी कंपनियों में उत्पादन लगभग ठप पड़ा है।
बीते 23 दिनों से किसान दिल्ली के बॉर्डर पर घेरा डालकर बैठे हैं और तीन कृषि क़ानूनों और बिजली संशोधन बिल 2020 को तुरंत रद्द किए जाने की मांग कर रहे हैं। सरकार ने शुरू में उनसे पांच – छह दौर की बात करने की कोशिश की लेकिन मोदी सरकार के अड़ियल रवैये से ये वार्ता लगभग टूट चुकी है।
मोदी ने किसान आंदोलन को तोड़ने के लिए अपने सारे हथियार चला दिए हैं। मोदी के मंत्री इन किसानों को देशद्रोही और अन्य लांछन लगाकर बदनाम करने के काम में जुट गए हैं। गोदी मीडिया किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए जी जान से मनगढंत कहानियां बनाकर जनता को सरकार के पक्ष में गोलबंद करने की कोशिश कर रही है।
सरकार के इशारे पर सुप्रीम कोर्ट ने भी इसमें दखल देना शुरू कर दिया है, हालांकि वो अभी किसानों के पक्ष में दिख रहा है लेकिन कृषि बिलों पर न्यायाधीशों की चुप्पी कुछ और इशारा कर रही है। और ऐसा दिख रहा है कि मोदी सरकार किसानों के सामने हथियार डालने से फिलहाल इनकार कर दिया है।
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लेकिन मोदी की मुसीबत सिर्फ यहीं ख़त्म नहीं होती है। दक्षिण भारत में मज़दूर असंतोष उग्र होता जा रहा है। बीते 12 दिसम्बर को बैंगलुरु के नज़दीक कोलार औद्योगिक क्षेत्र में 2000 वर्करों ने एप्पल फ़ोन बनाने वाली कंपनी में उग्र पर्दर्शन किया। इस कंपनी में क़रीब 12,000 वर्कर काम करते हैं और तबसे यहां उत्पादन ठप पड़ा हुआ है।
यहां वर्करों की सैलरी लॉकडाउन के बाद से ही आधे से भी अधिक काटी जा रही थी और ऊपर से उनकी सैलरी भुगतान में देरी की जा रही थी। इसे लेकर कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने मज़दूरों के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है।
वहीं कर्नाटक स्थित टोयोटा के बिदादी प्लांट में इनोवा और फॉर्च्यूनर जैसी लक्ज़री गाड़ियां बनाने वाली कंपनी के 3700 वर्कर 40 दिनों से आंदोलन कर रहे हैं। निवेश को आकर्षित करने के नाम पर कर्नाटक की मोदी सरकार ने मज़दूरों को अपराधी घोषित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है।
प्लांट में प्रबंधन द्वारा लॉकआउट घोषित किए 35 दिन हो गए हैं और अबतक 65 मज़दूरों को निलंबित किया जा चुका है। प्लांट में करीब 6000 मज़दूर काम करते हैं जिसमें से 3500 मज़दूर यूनियन का हिस्सा हैं और इस धरने में शुरू से रहे हैं।
अभी श्रमिक सड़क के ऊपर जहां बैठे हैं वहां उन्होंने अपना टेंट और पंडाल लगा रखा था जिसे प्रबंधन ने उखड़वा दिया। ये हरकत प्रबंधन ने उस वक्त की जब मजदूर दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को समर्थन देने बैंगलोर गए थे।
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दरअसल प्लांट के अंदर काम के बढ़ते दबाव और प्रबंधन के अड़ियल रवैए के ख़िलाफ़ 9 नवंबर को प्रबंधन से बात करने के लिए कुछ मजदूर इक्कठा हुए मगर प्रबंधन ने बात काटने से इंकार कर दिया।
लंच के वक्त मजदूरों ने प्रबंधन से फिर बात करने की कोशिश की तो प्रबंधन ने प्लांट में छुट्टी करते हुए सेकंड शिफ़्ट बंद कर दिया। उसके बाद करीब 2000 मज़दूर प्लांट के अंदर ही वार्ता की मांग को लेकर रात भर बैठ गए। 10 नवंबर को प्रबंधन ने प्लांट में लॉकआउट कर दिया। तबसे धरना जारी है।
इसी बीच बीजेपी सरकार ने कर्नाटक रोडवेज़ कार्पोरेशन के आंशिक निजीकरण की बात भी शुरू कर दी है जिसके ख़िलाफ़ पिछले साल ही कई महीनों तक हड़ताल चली थी। इसलिए रोडवेज़ कर्मचारी यूनियन भी सरकार के ख़िलाफ़ अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है।
कर्नाटक बीजेपी सरकार ने ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट में हाइब्रिड मॉडल लागू करने पर विचार कर रही है जिसके कारण 40 प्रतिशत हिस्सेदारी प्राईवेट ऑपरेटरों के हिस्से चली जाएगी।
इसके लिए ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर ने प्राईवेट ऑपरेटरों से भी मीटिंग करनी शुरू कर दी है।
यही नहीं तमिलनाडु के कोयंबटूर औद्योगिक इलाके में फ़ाउंड्रीज़ एसोसिएशन ने 16 दिसम्बर से अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा कर दी है। कोयंबटूर तिरुपुर औद्योगिक इलाके में सरकार के नए नियमों के कारण उद्योग प्रभावित हुए हैं और लॉरी में नए स्टिकर लगाने को लेकर 4.7 लाख लॉरी मालिकों ने 27 दिसम्बर से हड़ताल की घोषणा कर दी है।
जीपीएस, ल्युमिनेशन स्टिकर, जीपीएस, ब्रेक आदि लगाने को अनिवार्य किए जाने और इसे एक ही कंपनी से खरीदे जाने की अनिवार्यता से लॉरी मालिक परेशान हैं क्योंकि उन्हें क़ीमत का तीनगुना पैसा देना पड़ रहा है।
ऐसा लगता है कि मोदी सरकार अपनी नीतियों की वजह से ही किसानों और मज़दूरों को सड़क पर उतारने का काम कर रही है। अभी किसानों और मज़दूरों का आंदोलन इलाकाई और संगठनात्मक रूप से भले अलग अलग हों लेकिन सरकार का रवैया ऐसा ही रहा तो दोनों के बीच एक कोआर्डिनेशन भी बन सकता है, जिसके बाद मोदी के संभाले ये नहीं संभलने वाला।
वैसे भी बीएसएनएल, एलआईसी, बैंक, कोल इंडिया, आर्डनेंस फ़ैक्ट्री, रेलवे कारखाने, रेलवे यूनियनें सरकार के निजीकरण की ज़बरदस्ती नीति लागू करने के ख़िलाफ़ आंदोलनरत हैं।
अगर इन सेक्टरों की यूनियनों ने अपना मोर्चा खोल दिया तो लॉकडाउन में ध्वस्त हुई अर्थव्यवस्था का उबर पाना हाल के दिनों में सिर्फ सपना रह जाएगा।
(लेखक वर्कर्स यूनिटी के संपादक हैं।)
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